Monday 24 December 2018

सूरह फ़त्ह -48 - سورتہ الفتح (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह फ़त्ह -48 - سورتہ الفتح 
(मुकम्मल)

"बेशक हमने आप को खुल्लम खुल्ला फ़तह दी, ताकि अल्लाह तअला आप की अगली पिछली सभी खताएँ मुआफ़ कर दे. और आप पर अपने एहसानात की तकमील कर दे. और आप को सीधे रस्ते पर ले चले. अल्लाह आपको ऐसा ग़लबा दे जिस में इज्ज़त ही इज्ज़त हो."
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (1-3)

ग़ौर  तलब है कि अल्लाह ने मुहम्मद को इस लिए खुल्लम खुल्ला फ़तह दी कि उनकी ख़ताएँ उसको मुआफ़ करना था.
उसे अपने एहसानात की तकमील करने की जल्दी जो थी, 
मक्र की इन्तेहा है.
मुहम्मद का माफ़ीउज़ज़मीर इस बात की गवाही देता है कि वह ख़तावार थे जिसे अनजाने में ख़ुद वह तस्लीम करते हैं. 
मुहम्मद को तो मुहम्मदी अल्लाह ने मुआफ़ कर दिया मगर 
बन्दे मुहम्मद को कभी मुआफ़ नहीं करेंगे.
फ़तह के नशे में चूर मुहम्मद खुल्लम खुल्ला अल्लाह बन गए थे, 
इस बात की गवाह उनकी बहुत सी आयतें हैं. 

"मगर वह अल्लाह ऐसा है जिसने मुसलमानों के दिलों में तहम्मुल पैदा किया है ताकि इनके पहले ईमान के साथ, इनका ईमान और ज़्यादः हो और आसमानों और ज़मीन का लश्कर सब अल्लाह का ही है और अल्लाह बड़ा जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है, ताकि अल्लाह मुसलमान मरदों और मुसलमान औरतों को ऐसी बहिश्त में दाख़िल करे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, जिनमें हमेशा को रहेंगे, और ताकि इनके गुनाह दर गुज़र कर दे. और ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है. और ताकि अल्लाह मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों को, और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को अज़ाब दे जो अल्लाह के साथ बुरे बुरे गुमान रखते थे. उन पर बुरा वक़्त पड़ने वाला है और अल्लाह उन पर गज़ब नाक होगा."
 सूरह फ़त्ह - 48 आयत (4-6)

"ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है." 
इस जुमले पर ग़ौर  किया जाए कि वह अल्लाह जो अपनी कायनात में पल झपकते ही जो चाहे कर दे बस "कुन" कहने की देर है, उसके नज़दीक फ़तह मक्का बड़ी कामयाबी है. 
मुहम्मद अन्दर से ख़ुद को अल्लाह बनाए हुए हैं.
इस फ़तह के बाद मुसलमानों का ईमान और पुख़्ता हो गया 
कि वह सब्र वाले लुटेरे बन गए और लूट का माल मुहम्मद के हवाले कर दिया करते थे और जो कुछ वह उन्हें हाथ उठा कर दे दिया कयते उसी में वह सब्र कर लिया करते. मुहम्मद मुसलमानों को अल्लाह का लश्कर करार देते हैं और यक़ीन दिलाते है 
कि उनकी तरह ही अल्लाह के सिपाही आसमानों पर हैं.
जब तक मुसलमान अपने अल्लाह की इन बातों पर यक़ीन करते रहेंगे, 
तालीम ए जदीद भी उनका भला नहीं कर सकती.

"जो लोग आपसे बैत कर रहे हैं, वह अल्लाह से बैत कर रहे हैं. अल्लाह का हाथ उनके हाथ पर है. फिर जो शख़्स अहेद तोड़ेगा ,इको इसका वबाल इसी के सर होगा, जो पूरा करेगा उसको अल्लाह अनक़रीब बड़ा उज्र देगा.
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (10)

आख़िर बंदे मुहम्मद ने इशारा कर ही दिया कि वही पाक परवर दिगार है, 
मगर एक धमकी के साथ.

"अगली दस आयातों में जंगों से मिला माले ग़नीमत पर अल्लाह का हुक्म मुहम्मद पर नाज़िल होता रहता है. दर अस्ल इस जंग में देहाती नव मुस्लिमों ने शिरकत करने से आनाकानी की थी. उनको उम्मीद नहीं थी कि मुहम्मद मक्का पर फ़तेह पाएँगे, बिल ख़ुसूस क़ुरैशियों  पर. अगर फ़तेह हो भी गई तो वह अपने क़बीले पर रिआयत बरतेंगे और उनको लूटेंगे नहीं. ग़रज़ उनको इस जंग से माले ग़नीमत का कोई ख़ास फ़ायदा मिलता नज़र नहीं आया, इस लिए जंग में शिरकत से वह बचते रहे. मगर मुहम्मद को मिली कामयाबी के बाद वह मुसलमानों का दामन थामने लगे कि अल्लाह से इनके हक़ में वह दुआ करें. अल्लाह दिलों का हाल जानने वाला? अपने रसूल से कहता है कि इनको टरकाओ, ये तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ बद गुमानी रखते थे. अंधे, लंगड़े और बीमारों को छोड़ कर बाक़ी किसी को जंग से जान चुराने की इजाज़त नहीं थी. मुहम्मद ऐसे लोगों पर फ़ौरन लअन तअन शुरू कर देते, दोज़ख़ उसके सामने लाकर पेश कर देते."
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (11-15)

"जो लोग पीछे रह गए थे वह अनक़रीब जब (तुम ख़ैबर) की ग़नीमत लेने चलोगे, कहेगे कि हम को भी इजाज़त दो कि हम तुम्हारे साथ चलें. वह लोग यूँ चाहते हैं कि अल्लाह के हुक्म को बदल डालें. आप कह दीजिए कि हरगिज़ हमारे साथ नहीं चल सकते. अल्लाह तअला ने पहले से यूँ फ़रमा दिया था. इनके पीछे रहने वाले देहातियों से कह दीजिए कि तुम लोग लड़ने के लिए बुलाए जाओगे, जो सख़्त  लड़ने वाले होंगे,"
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (16)

मुलाहिज़ा हो मुहम्मद कहते हैं "जब (तुम ख़ैबर) की ग़नीमत लेने चलोगे" 
ये है मुहम्मद की जंगी फ़ितरत, 
लगता है जैसे ख़ैबार में ग़नीमत की अशर्फियाँ इनके बाप दादे गाड कर आए हों. 
ये शख़्स कोई इंसान भी नहीं जिसको ओलिमा हराम जादे मशहूर किए हुए हैं-
मोह्सिने-इंसानियत ?
जंगों से हज़ारो घर तबाह ओ बरबाद हो जाते हैं, उम्र भर की जमा पूँजी लुट जाती है, बस्तियों में ख़ून की नदियाँ बहती हैं. मुहम्मद के लिए ये मशगला ठहरा,
क्या मुहम्मदी अल्लाह की कोई हक़ीक़त हो सकती है कि घुटे मुहम्मद की तरह वह साज़ बाज़ की बातें करता है ?

"अल्लाह ने तुम से बहुत सी ग़नीमातों का वादा कर रखा है, जिनको तुम लोगे. सरे दस्त ये दे दी है. और लोगों के हाथ तुम से रोक दिए हैं, और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर दाल दे"
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (20)

मुसलमानों! समझो कि तुम्हारा नबी दीन के लिए नहीं लड़ता लड़ाता था, 
बल्कि अवाम को लूटने के लिए अल्लाह के नाम पर लोगों को उकसाता था.    
अल्लाह का पैग़ामबर लड़ाकुओं को समझा रहा है कि जो कुछ मिल रहा है, रख लो. उनसे रसूल बना ग़ासिब, अल्लाह का वादा दोहराता है, 
मुस्तक़बिल में मालामाल हो जाओगे. 
सब्र और किनाअत को मक्कारी के आड़ में छिपाते हुए कहता है 
"और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर डाल दे"
एक बड़ी आबादी को टेढ़ी और बोसीदा सड़क पर लाकर, 
उनके साथ खिलवाड़ कर गया.

"और अगर तुम से ये काफ़िर लड़ते तो ज़रूर पीठ दिखा कर भागते, फिर इनको कोई यार मिलता न मदद गार. अल्लाह ने कुफ़्फ़ार से यही दस्तूर कर रखा है जो पहले से चला आ रहा है, आप अल्लाह के दस्तूर में कोई रद्दो-बदल नहीं कर सकते."
सूरह फ़त्ह - 48 आयत (23) 

जंग हदीबिया में मुहम्मद ने मक्का के जाने माने काफ़िरों को रिहा कर दिया जिसकी वजह से इन्हें मदनी मुसलमानों की मुज़ाहमत का सामना करना पड़ा, 
बस कि मुहम्मद पर अल्लाह की वह्यियों का दौरा पड़ा और आयात नाज़िल हुईं.
अल्लाह के दस्तूर के चलते मुस्लमान आज दुन्या में अपना काला मुँह भी दिखने के लायक़ नहीं रह गए, कुफ़्फ़ार की पीठ देखते देखते.

*ऐ मज़लूम क़ौम ! क्या ये क़ुरआनी आयतें तुमको नज़र नहीं आतीं जो मुहम्मद की छल-कपट को साफ़ साफ़ दर्शाती हैं. ?
*अपने पड़ोस पकिस्तान के अवाम की जो हालत हो रही है कि मुल्क छोड़ कर गए हुए लोग आठ आठ आँसू रो रहे हैं, इन्हीं आयतों की बेबरकती है उन पर, क्या इस सच्चाई को तुम समझ नहीं पा रहे हो?
पूरी दुन्या में मुसलमानों को शक व शुबहा की नज़र से देखा जा रहा है, 
क्या सारी दुन्या ग़लत है और तुम ही सहीह हो?
*मुल्क और ग़ैर मुमालिक में मुसलमानों की रोज़ी रोटी तंग हुई जा रही है, 
क्या तुम्हारे समझ में नहीं आता?
*तुम्हारे समझ में सब आता है कि तुम सबसे पहले इंसान हो, 
बाद में मुसलमान, हिन्दू और ईसाई वग़ैरह. 
तुमको हक़ शिनाश नहीं दिखाई दे रहे हैं, 
आलावा इन अपनी माओं के ख़सम आलिमान दीन औए उनके मज़हबी गुंडों के.
**वक़्त आ गया है कि अब आँखें खोलो, जागो और बहादर बनो. 
तुम्हारा कुछ भी नहीं बदलेगा, बस बदलेगा ईमान कि अल्लाह, उसका रसूल, उसकी किताब, मफ़रूज़ा हश्र, वह मफरूज़ा जन्नत और दोज़ख़
ये सब फिततीन मुहम्मद की ज़ेहनी पैदावार है. 
इनकी भरपूर मुख़ालिफ़त ही आज का ईमान होगा. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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