Saturday 15 December 2018

Hindu Dharm Darshan 258



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (63)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> परमेश्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता पिता जैसे गुरु जनों की पूजा करना 
तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारारिक तपश्या है. 
>> मनुष्य को चाहिए कि कर्म फल की इच्छा किए बिना विविध प्रकार के यज्ञ, तप तथा दान को 'तत्' शब्द कह कर संपन्न करे. 
ऐसी दिव्य क्रियाओं का उद्देश्य भव-बंधन से मुक्त होता है. 
>>> हे पार्थ ! श्रद्धा के बिना यज्ञ, दान, या तप के रूप में जो भी किया जाता है,
वह नश्वर है. वह 'असत्त' कहलाता है और इस जन्म और अगले जन्म --- 
दोनों में ही व्यर्थ जाता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 17  श्लोक - 14 - 25 -28  
गीता की गाथा को नए नज़रिए से परखने की ज़रुरत है.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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