Monday 17 December 2018

सूरह अह्क़ाफ़-46 -سورتہ الا حقاف (क़िस्त 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अह्क़ाफ़-46 -سورتہ الا حقاف
(क़िस्त 1)

"यह किताब अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाले  की तरफ़ से भेजी गई है."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत (2)

ज़बरदस्त यानी जब्र करने वाला, जो ज़बरदस्त हो वह अल्लाह कैसे हो सकता है? इंसानी हिकमतो से अल्लाह बे ख़बर है, वरना मुहम्मद को ऐसी सज़ा देता कि पैग़मबरी छोड़ कर वह बकरियाँ चराने वापस चले जाते, 
दाई हलीमा के पास. 
अल्लाह अगर है तो शफीक़ बाप की मानिंद होगा.

"जो लोग काफ़िर हैं, उनको जिस चीज़ से डराया जाता है, वह उससे बे रुखी करते हैं"
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (3)

सबसे बड़ा काफ़िर मुसलमान होता है जो ख़ुदा की मख़लूक़ को काफ़िर, मुशरिक, मुकिर और मुल्हिद समझता है. 
इरतेक़ाई मरहलों को पार करता हुवा कारवाँ पुर फ़रेब वहदानियत के चपेट में आकर मुसलमान बना तो दुन्या की तमाम बरकतें उस पर हराम हो गई. जिन्होंने बे रुखी बरती वह सुर्ख़रू हैं.

"आप कहिए कि ये तो बताओ कि जिस चीज़ की तुम अल्लाह को छोड़ कर, इबादत करते हो, मुझको  दिखलाओ कि उन्होंने कौन सी ज़मीन पैदा की है? या उसका आसमान के साथ कुछ साझा है. मेरे पास कोई किताब जो पहले की हो, या कोई मज़मून मनक़ूल लाओ अगर तुम सच्चे हो? और जब हमारी खुली खुली आयतें उन लोगों के सामने पढ़ी जाती हैं तो ये मुनकिर लोग उसकी सच्ची बात की निस्बत, जब कि ये उन तक पहुँचती है, ये कहते हैं, ये सरीह जादू है."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (4-7)

ज़मीन ओ आसमान को पैदा करने वाली कोई भी ताक़त हो मगर मुहम्मदी अल्लाह जैसा अहमक़ लाल बुझक्कड़ नहीं हो सकता. मुहम्मद अपनी किताबे-वाहियात को दुन्या के बड़े बड़े ग्रंथों के आगे रख कर पशेमान तो न हुए मगर इसको रटने वाले आज मिटटी के मोल हो रहे है, पस्मान्दा क़ौम  का नाम इनको दिया जा रहा है. इसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के साझीदार मुहम्मद पर आती है.

"क्या ये लोग कहते हैं कि इसको इसने अपनी तरफ़ से बना लिया है? कह दीजिए कि इसको अगर मैंने अपनी तरफ़ से बना लिया है तो तुम लोग मुझे अल्लाह से बिलकुल नहीं बचा सकते. वह ख़ूब जानता है कि तुम  क़ुरआन में जो बातें बता रहे हो, मेरे और तुम्हारे दरमियान वह काफ़ी गवाह है, और  वह मग्फ़िरत वाला और रहमत वाला है."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (8)
ये मुहम्मद का मेराजे अय्यारी है.

"और आप कह दीजिए कि तुम मुझको ये तो बताओ कि ये  क़ुरआन मिन जानिब अल्लाह हो और तुम इसके मुनकिर हो और बनी इस्राईल में से कोई गवाह इस जैसी किताब पर गवाही देकर ईमान ले आवे और तुम तकब्बुर में ही रहो. बेशक अल्लाह बे इन्साफ़ लोगों को हिदायत नहीं करता."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (10)

दो एक लाख़ैरे  यहूदी मुसलमान हो गए थे तो उनको बुनियाद बना कर ख़ुद को अल्लाह का रसूल साबित करना चाहते हैं. मुहम्मद की बकवास किताब को न तस्लीम करना लोगों की बे इंसाफी ठहरी? आज भी इन बातों को पढ़ कर उम्मी रसूल से सिर्फ़ नफ़रत बढ़ती है. उस वक़्त लोग पागल समझ कर टाल जाया करते थे.

"और हमने इंसान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है. इसकी माँ ने इसको बड़ी मशक्क़त के साथ पेट में रख्खा है, और बड़ी मशक्क़त के साथ इसको जना और इसका दूध छुड़ाना तीस महीने में है, यहाँ तक कि जब वह अपनी जवानी तक पहुँच जाता है और चालीस बरस को पहुँचता है तो कहता है, ऐ मेरे परवर दिगार मुझ को इस पर हमेशगी दीजे  कि मैं आपकी इन नेमत का शुक्र अदा किया करूँ जो आपने मुझको और मेरे माँ बाप को अता फ़रमाई."
सूरह अहक़ाफ़ 46 आयत  (15)

अल्लाह हमल से लेकर चालीस साल की उम्र तक इंसान से मुहम्मद के प्रोग्रामिंग के हिसाब से जिलाता है, साथ में उसकी हिदायतें भी उनके सबक में हैं. क्या आयतें किसी सनकी की बकवास नहीं लगती?

कलामे दीगराँ  - - -
"ज़्यादः रौशनी इंसान को अँधा बना देती है, अलफ़ाज़ बहरा बना देते हैं, लज्ज़तें ज़बान को बे ज़ायक़ा कर देती हैं और क़ीमती अश्या लालच में डाल देती हैं, इस लिए समझदार लोग ज़मीर की तरफ़ मुतावज्जो होते हैं, न कि  नफ्स की तरफ़"
"ताओ"

इस कहते हैं कलाम पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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