Monday 3 December 2018

Q 1 सूरह शूरा-42 -سورتہ سورا

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह शूरा-42 -سورتہ سورا 


बेटे ने कहा अब्बा अब्बा फफीम खाएँगे. बाप बोला बेटा पहले अफ़ीम कहना तो सीखो. ये रही अल्लाह की फफीम - - -
"हा मीम"
सूरह शूरा - 42 आयत (1) 
ये मुसलमानों की फफीम है जिसके कोई मानी नहीं है, 
न मुसलमानों का कोई बाप ऐसा है जो इन्हें अफ़ीम कहना सिखलाए 
और अफ़ीम के नाक़िस इस्तेमाल से आगाह करे, 
गोया पूरी क़ौम फफीम के नशे में धुत्त पड़ी हुई है. 
यही 'हा-मीम या फफीम' का शिकार साठ साल पहले पूरी चीन क़ौम थी, 
वहाँ उनका बाप पैदा हुवा और अफ़ीम के मुज़िर असरात को बतलाया 
और अफ़ीम फ़सलों को तबाह किया. 
आज मज़हबों से चीन नजात पा चुका है और दुन्या का सुर्ख़रू तरीन मुल्क बनने की दर पर है. 
योरोप में कार्ल मार्क्स ने कहा मज़हब अफ़ीम का नशा है' 
जिस का इलाज क़ौमो के लिए ज़रूरी है'' 
नतीजतन दुन्या ने इस नशे को समझा और इससे उनको छुटकारा मिला. 
बद नसीब हिदुस्तान और मुस्लिम दुन्या इस के पंजे में फंसी हुई है. 
मुसलमानों का कोई रहनुमा पैदा होना मुश्किल है, 
इनको ख़ुद जागना होगा. 

"ऐन सीन क़ाफ़"
सूरह शूरा - 42 आयत (2)
ये भी फफीम की तरह हुरूफ़ मुक़त्तेआत है. बस अफ़ीम का ही हम सर सर कहिए.  

"इसी तरह ज़बरदस्त हिकमत वाला अल्लाह आप की तरफ़ और आप के पहले नबियों की तरफ़ वह्यी भेजता रहा. कुछ बईद नहीं कि आसमान अपने ऊपर से फट पड़ें और फ़रिश्ते अपने रब की तस्बीह और तमहीद करते हैं और ज़मीन वालों के लिए माफ़ी माँगते हैं और हम ने आप पर ये क़ुरआन अरबी वह्यी के जारीए नाज़िल किया है ताकि आप मक्का में रहने वालों को और जो लोग इसके आस पास हैं, उनको डराएँ और जमा होने वाले दिन से डराएँ."
सूरह शूरा - 42 आयत (3-7)
ये अल्लाह मुस्लिम ज़ेहनों पर नाजायज़ बाप की तरह मुसल्लत रहता है. 
एक ख़्वाह मख़्वाह का डर मुसलमानों को कचोके लगाता रहता है. 
इनका ज़ालिम अल्लाह इन पर कोई भी ज़ुल्म कर सकता है, 
कुछ नहीं तो आसमान ही इनके सर पर फाड़ कर गिरा दे. 
कौन इन्हें समझाए कि आसमान कोई छत जैसी चीज़ नहीं, 
ये हद्दे नज़र है. 
यह आयतें समझाती हैं कि इंसान का वजूद ही धरती पर एक गुनाह है, 
जिसके लिए मुसलमान बे मार की तौबा किया करता है, 
यह इतना बड़ा मुजरिम है कि इसके लिए फ़रिश्ते भी दुआ किया करते हैं, 
इस तरह से इनका खेवन हार ले दे के अल्लाह के रसूल ही बचते है.
अल्लाह ने अरबी में  क़ुरआन इस लिए भेजा था कि इससे अरबियों को डराया जाए, 
बद क़िस्मती ये है कि इसे हिंदी भी झेल रहे है.

"आप जानदार चीज़ों को बेजान से निकल देते हैं, (जैसे मुर्गी से अंडा) और बेजान चीज़ों को जानदार से निकलते हैं (अंडे से चूजा)"
सूरह शूरा - 42 आयत  (9)

क़ुरआनी अल्लाह यानी मुहम्मद की, यह मशहूर जिहालत जो बार बार इस कलाम पाक को नापाक करती है. 
मुसलमानों ! 
क्या इक्कीसवीं सदी में भी तुम ऐसी आयातों पर भरोसा करते हो जो साबित करती हैं कि अंडे बेजान होते है ?

कलामे दीगराँ  - - -
"पाएमाली से पहले क़िब्र और ठोकर से पहले घमंड होता है. 
बे इज्ज़ाती उन्हीं की होती है जिन्हें इज्ज़त का नशा होता है, 
मगर नरम लोगों में समझ होती है,"
"यहूदी  मसलक "
इसे कहते हैं कलाम पाक 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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