Thursday 27 December 2018

सूरह क़ाफ़- 50 - سورتہ ق (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह क़ाफ़- 50 -  سورتہ ق
(मुकम्मल)

क़सम है  क़ुरआन मजीद की, बल्कि इनको इस बात का तअज्जुब हुवा कि "इनके पास इन्हीं में से कोई डराने वाला आ गया. सो काफ़िर कहने लगे कि ये अजीब बात है.
 - - - अल्लाह अपनी तख़लीक़ को बार बार दोहराता है कि ज़मीन, आसमान, सितारे, पहाड़, पेड़ और फसलें सब उह्की करामात से हुए. 
जो ज़रीआ बीनाई और दानाई है".
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (1-7)
अल्लाह ने अपनी किताब की इतनी जोर की क़सम बिला किसी वजह की खाई. अरबी ज़बान में "बल्कि " का इतेमाल ऐसे ही होता है तो अरबी अल्लाह की क़वायद पर अफ़सोस होता है. 
ये बात अकसर क़ुरआन  में आती है जिसे हम अहले ज़बान उर्दू को खटकती है. 
मुझे लगता है मुहम्मद की उम्मियत का इसमें दख़्ल है. 
ये डराने वाला किरदार अरबी का लफ़ज़ी तरजुमा है.
उनके पास आगाह, तंबीह या ख़बरदार करने वाले अलफ़ाज़ शायद काफ़ी न रहे हों. भला काफ़िर ओ मुनकिर को इस बात पर नए सिरे से यक़ीन करने की क्या ज़रुरत है कि अल्लाह की क़ुदरत से ही इस कायनात का कारोबार चल रहा है. 
इनका कब दावा था कि ये ज़मीन और आसमान इनकी देवी देवताओं ने बनाया. वह तो बानिए कायनात का तसव्वर करने में नाकाम रहने के बाद उसको एक शक्ल देकर उसमें उसको सजा कर उसकी ही पूजा करते हैं. 
इस मामूली सी बात को ख़ुद नादान मुसलमान नहीं समझते. 
संत कबीर ने यादे इलाही को मर्कज़ियत देने के लिए "सालिग राम की बटिया " बना कर ईश्वर को उसमे समेटा ताकि ध्यान उस पर क़ायम रहे. 
ओलिमा क़ुरआन मुसलमानों को इस तरह समझाते हैं गोया उस वक्त के काफ़िरों का दावा था कि सब कुछ उनके बुतों की माया थी जो ज़मीन ओ आसमान में है.

"क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं? हमने इंसान को पैदा किया, इसके दिल में जो ख़याल आते हैं, इन्हें हम जानते हैं. और हम इंसान के इतने क़रीब हैं कि इसकी रगे-गर्दन से भी ज़्यादः."
"जब दो अख्ज़ करने वाले फ़रिश्ते अख्ज़ करते हैं जो कि दाएँ और बाएँ तरफ़ बैठे रहते हैं. वह कोई लफ्ज़ मुँह से निकलने नहीं पाता मगर इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
जब अल्लाह इंसान के रगे गर्दन के क़रीब रहता है और दिलों की बातें जानता है तो उसने बन्दों के दाएँ बाएँ अख्ज़ करने वाले फ़रिश्तों को अपनी मुलाज़मत में क्यूँ रख छोड़े है? ये तो अल्लाह नहीं इंसान जैसा लग रहा है कि जिसको दो गवाहों की ज़रुरत होती है. अल्लाह बे वक़ूफ़ इंसान जैसी बातें भी करता है 
"क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं?" 
या 
"इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
क़ुरआन  में जाहिल मुहम्मद की जेहालत साफ़ साफ़ झलती है 
मगर मुसलमानों की आँखों पर पर्दा पड़ा हुवा है.

"और हर शख़्स मैदाने-हश्र में यूँ आएगा कि इसको एक फ़रिश्ता हमराह लाएगा और दूसरा इसके अमल का गवाह होगा. पहला अर्ज़ करेगा कि ये रोज़ नामचा है जो मेरे पास तैयार है. शैतान जो इसके पास रहता था, कहेगा हमने इसको जबरन गुमराह नहीं किया था, ये ख़ुद दूर दराज़ की गुमराही में रहता था."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (15-27)
अल्लाह मुस्तकबिल बईद की अपनी काररवाई की इत्तेला मुहम्मद को देता है कि वह ऐसा कहेंगे और हम उसका जवाब इस तरह देंगे.
मुहम्मद तरह तरह की ड्रामा निगारी क़ुरआन की हर सूरह में अलग अलग तरह से करते हैं, ग़ौर  करें कि खरबों इन्सान के साथ उनके दो गुना फ़रिश्ते और हर के साथ एक अदद शैतान होगा, मगर मुक़दमा सिर्फ़ एक अल्लाह सुनेगा? 
अल्लाह की हिकमत के लिए हर काम मुमकिन है, 
इसके लिए इतना बड़ा झूट गढ़ा ही इस तरह से है. 
अकसर मुहम्मद "दूर दराज़ की गुमराही" का इस्तेमाल करते हैं,
ये गुमराही की कौन सी सिंफ होती है?

"अल्लाह इरशाद करेगा, मेरे सामने झगड़े की बातें मत करो. मैं तो पहले ही तुम्हारे पास वईद भेज चुका हूँ. "
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (28)

मुसलमानों तुम्हारा अल्लाह क्या इस तरह का शिद्दत पसंद है?
अपने माँ के पेट से निकले हुए मुहम्मद तुम्हारे अल्लाह बन गए हैं, 
जागो! बहुत देर हो चुकी है फिर भी अभी वक़्त है.

"हम बन्दों पर ज़ुल्म करने वाले नहीं, दोज़ख़ से जिस दिन पूछेंगे कि तू भर गई, वह कहेगी कि कुछ और जगह खाली है."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (30)

इस्लामी पैग़ामबर तो उम्मी था ही, 
क्या उसकी पूरी उम्मत भी उम्मी ही है कि उसका अल्लाह बन्दों का मदद गार नहीं, उसे तो दोज़ख़ से कहीं ज़्यादः लगाव है कि उसकी भूख को पूछ रहा है, क्यूँकि वह उससे वादा जो किए हुए है कि उसका पेट व भरेगा.

"और जन्नत मुत्तक़ियों के लिए, कि कुछ दूर न रहेगी."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (31)
क्यूँकि मुत्तक़ियों के लिए वहाँ शराब, कबाब और शबाब मुफ्त होंगे. 
इतना ही नहीं इग्लाम बाज़ी भी मयस्सर होगी जिस अमल को इस दुन्या में करने से शर्मिंदगी होती थी.
ऐसी जन्नत पर लअनत है और इसकी चाहत रखने वालों पर भी धिक्कार.

"और रुजू होने वाला दिल लेकर आएगा. इस जन्नत में सलामती के साथ दाख़िल हो जाओ यह दिन है हमेशा रहने का."
सूरह क़ाफ़ -50 आयत (34).

दुन्या की तमाम नेमतों को छोड़ क़र, अपने दूसरे ज़रुरी मिशन को ताक पर रख क़र मुहम्मदी अल्लाह की तरफ़ रुजू हो जाओ ताकि मुहम्मद और अरबियों की गुलामी क़ायम रहे.

"और सुन लो कि जिस दिन एक पुकारने वाला पास ही से पुकारेगा, जिस दिन इस चीखने को बिल यक़ीन सब सुन लेंगे, ये दिन होगा निकलने का. हम ही जलाते हैं, हम ही मारते हैं और हमारी तरफ़ फिर लौट कर आओगे"
सूरह क़ाफ़ -50 आयत  (42-44)

मुसलमानों! तुम भोले भाले हो, या अहमक़ ? 
कि जिस अल्लाह को तुम पूजते हो वह जो जलाता है और मारता है?  
या फिर कलमा इ शहादत पढ़ लो तो तुमको जन्नत में दाख़िल क़र देगा ??

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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