Friday 21 December 2018

सूरह मुहम्मद -47 -سورتہ محمّد (क़िस्त 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह मुहम्मद -47 -سورتہ محمّد 
(क़िस्त 1)

इस्लामी तरीक़े चाहे वह अहम् हों चाहे ग़ैर अहम्, इंसानों के लिए ग़ैर ज़रूरी तसल्लुत बन गए हैं. उनको क़ायम रखना आज कितना मज़ाक बन गया है कि हर जगह उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है. उन्हीं में एक थोपन है पाकी, यानी शुद्ध शरीर. 
कपड़े या जिस्म पर गन्दगी की एक छींट भी पड़ जाए तो नापाकी आ जाती है. मुसलमान हर जगह पेशाब करने से पहले पानी या खुश्क मिटटी का टुकड़ा ढूँढा करता है कि वह पेशाब करने के बाद इस्तेंजा (लिंग शोधन) कर सके .आज के युग में ये बात कहीं कहीं कितनी अटपटी लगती है, ख़ास कर नए समाज की ख़ास जगहों पर. 
इस वज़ू नुमा पाकी के सिवा जिस्म और कपड़ों की सफ़ाई की कहीं कोई हिदायत नहीं. आम तौर पर मुसलमान जुमा जुमा नहाते हैं. जिस्म पर मैल जम जाती है और कपड़ों से बदबू आने लगती है.
कपड़े साफ़ी हो जाएँ मगर इसमें पाकी बनी रहे.
इसी तरह माँ बाप बच्चों को सिखलाते है सलाम करना, 
उसके बाद मुल्ला जी समझाते हैं  कि दिन में जितनी बार भी मिलो सलाम करो, शिद्दत ये कि घर में माँ बाप से हर हर मुलाक़ात पर सलाम करो. 
ये जहाँ लागू हो जाता है, वहां सलाम एक मज़ाक़ बन जाता है. 
इसी पर कहा गया है
"लोंडी ने सीखा सलाम, सुब्ह देखी न शाम." 

मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -

"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (1-2)

मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है जो इस बात को मानने के लिए मजबूर कर रही है कि जो ग़ैर फ़ितरी है. 
क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है, ये इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. 
कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की ख़ुदाई है? 
किस क़द्र ये पयंबरी झूट बोलने  पर आमादः है.

"सो तुम्हारा जब कुफ़फ़ार  से मुकाबला हो जाए तो उनकी गर्दनें मार दो, यहाँ तक कि जब तुम इनकी ख़ूब खूँरेजी कर चुको तो ख़ूब मज़बूत बाँध लो, फिर इसके बाद या तो बिला मावज़ा छोड़ दो या मावज़ा लेकर, जब तक कि लड़ने वाले अपना हथियार न रख दें, ये हुक्म बजा लाना. अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम ले लेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे. जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाते हैं, अल्लाह इनके आमाल हरगिज़ ज़ाया नहीं करेगा." 
सूरह मुहम्मद - 47आयत (3-4)

ऐसे अल्लाह और ऐसी पैग़मबरी पर आज इक्कीसवीं सदी में लअनत भेजिए, जो अज़हान इक्कीसवीं सदी तक नहीं पहुँचे वह इस नाजायज़ अल्लह की नाजायज़ औलादें तालिबानी हैं. 
ऐसे जुनूनियों के साथ ऐसा सुलूक जायज़ होगा कि नाजायज़ अल्लाह का क़ानून उसकी औलादों पर नाफ़िज़ हो. 
इस्लामी अल्लाह के अलावा कोई ख़ुदा ऐसा कह सकता है क्या "अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम ले लेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे." 
मुसलमानों! ऐसे अल्लाह और ऐसे रसूल की राहें जिस क़द्र जल्द हो सके छोड़ दो. 

"ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा. और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिए तबाही है और इनके आमल को अल्लाह तअला ज़ाया कर देगा, ये इस सबब से हुवा कि उन्हों ने अल्लाह के उतारे हुए हुक्म को ना पसंद किया, सो अल्लाह ने उनके आमाल को अकारत किया."
सूरह मुहम्मद - 47आयत (7-9)

दुन्या का हर हुक्मराँ जंग में सब जायज़ समझ कर ही हुकूमत कर पाता है. 
अशोक महान ने अपनी हुक्मरानी में एक लाख इंसानी जानों की कुर्बानी ली थी, 
जंग को जीत जाने के बाद उसके एहसास ए हुक्मरानी ने शिकस्त मान ली, 
कि क्या राजपाट की बुन्यादों में हिंसा होती है? 
उसे ऐसा झटका लगा कि वह बैरागी हो गया, बौध धर्म को अपना लिया. 
वह क़ातिल हुक्मरान से महात्मा बन गया 
और इस्लामी महात्मा को देखिए कि क़त्ल ओ ख़ून  का पैग़ाम  दे रहे हैं, 
वह भी  अल्लाह के पैग़ामबर  बन  कर.
अल्लाह इंसानों से मदद चाहता है ? 
मदद के तलबगार तो मुहम्मद हैं,
जो दर पर्दा अल्लाह बने बैठे हैं.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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