Monday 1 April 2019

सूरह तारिक़ - 86 = سورتہ الطارق (वस्समाए वत्तारके)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह तारिक़ - 86 = سورتہ الطارق
(वस्समाए वत्तारके) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"क़सम है आसमान की और उस चीज़ की जो रात को नमूदार होने वाली है
और आपको कुछ मालूम है कि रात को वह नमूदार होने वाली चीज़ क्या है? वह रौशन सितारा है,
कोई शख़्स  ऐसा नहीं कि जिसको कोई याद रखने वाला न हो,
तो इंसान को देखना चाहिए कि वह किस चीज़ से पैदा हुवा है,
वह एक उछलते पानी से पैदा हुवा है,
जो पुश्त और सीने के दरमियान से निकलता है,
वह इसको दोबारा पैदा करने में ज़रूर क़ादिर है,
जिस रोज़ कि क़लई खुल जाएगी फिर इस इंसान को न तो ख़ुद क़ूवत होगी, और न इक कोई हिमायती होगा,
क़सम है आसमान की जिससे बारिश होती है,
और ज़मीन की जो फट जाती है कि क़ुरआन एक फ़ैसला कर देने वाला कलाम है,
कोई लग्व चीज़ नहीं. ये लोग तरह तरह की तदबीर कर रहे है,
और मैं भी तरह तरह की तदबीर कर रहा हूँ,
तो आप इन काफ़िरों को यूं ही रहने दीजिए.
सूरह तारिक़ 86 आयत (1 -1 7)

मैं पूने के सफ़र में दो आस्ट्रेलियंस के साथ सफ़र में था. 
बातों बातों में उन्होंने मेरा नाम पूछ लिया, मैंने अपना नाम जो मुस्लिम नुमा है, उन्हें बतलाया. 
उन्हों ने तसदीक़ किया you are allah peaple ? मैं कहा हाँ.
वह आपस में दबी ज़बान कुछ बातें करने लगे और कन अंखियों से मुझे देखते जाते. मैं उनकी गूफ़्तुगू तो नहीं समझ सका मगर इतना ज़रूर समझ सका कि वह मुझमे कोई अजूबा तलाश रहे हैं
क्या उन्होंने मुसलमानों के मुक़द्दस क़ुरआन की सूरह तारिक को पढ़ा हुवा है और क्या कह रहे हों कि ये उछलते हुए  पानी से पैदा हुवा है? 

नमाज़ियो !
तुम अपना एक क़ुरआन ख़रीद कर लाओ और काले स्केच पेन से उन इबारतो को मिटा दो जो ब्रेकेट में मुतरज्जिम  ने कही है, 
क्यूँ कि ये कलाम बन्दे का है, अल्लाह का नहीं. 
आलिमो ने अल्लाह के कलाम में दर असल मिलावट कर राखी है. 
अल्लाह की प्योर कही बातों को बार बार पढ़ो, अगर पढ़ पाओ तो, 
क्यूंकि ये बड़ा सब्र आज़मा है. 
शर्त ये है कि इसे खुले दिमाग़ से पढो, अक़ीदत की टोपी लगा कर नहीं. 
जो कुछ तुम्हारे समझ में आए बस वही क़ुरआन है, इसके आलावा कुछ भी नहीं. 
जो कुछ तुम्हारी समझ से बईद है वह आलिमो की समझ से भी बाहर है. 
इसी का फ़ायदा उठा कर उन्हों ने हज़ारों क़ुरआनी नुस्खे लिखे हैं. 
अधूरा पन क़ुरआन का मिज़ाज है, 
बे बुन्याद दलीलें इसकी दानाई है. 
बे वज़न मिसालें इसकी कुन्द ज़ेहनी है, 
जेहालत की बातें करना इसकी लियाक़त है. 
किसी भी दाँव पेंच से इस कायनात का ख़ुदा बन जाना मुहम्मद का ख्वाब है.
इसके झूट का दुन्या पर ग़ालिब हो जाना मुसलामानों की बद नसीबी है.
आइन्दा सिर्फ़ पचास साल इस झूट की ज़िन्दगी है. 
इसके बाद इस्लाम एक आलमी जुर्म होगा. 
मुसलमान या तो सदाक़त की राह अपना कर और 
तर्क इस्लाम करके अपनी और अपने नस्लों की ज़िन्दगी बचा सकते है, 
या बेयार ओ मददग़ार तालिबानी मौत मारे जाएँगे. 
ऐसा भी हो सकता है ये तालिबानी मौत पागल कुत्तों की मौत जैसी हो, 
जो सड़क, गली और कूँचों में घेर कर दी जाती है.
मुसलामानों को अगर दूसरा जन्म गवारा है तो आसान है, 
मोमिन बन जाएँ. मोमिन का खुलासा मेरे मज़ामीन में है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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