Friday 2 August 2019

अज़ान


अज़ान            

पूरी दुन्या की तमाम मस्जिदों में नमाज़ से पहले अज़ानें होती हैं. 
फिर हर नमाज़ी नमाज़ की नियत बांधने के साथ साथ अज़ान को दोहराता है.
अज़ान का एक जुमला होता है - - -
अशहदों अन ला इलाहा इल्लिल्लाह.
(मैं गवाही देता हूँ कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है)
दूसरा जुमला है - - -
(मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं)
गवाही का मतलब होता है आँखों से देखा और कानों से सुना हो.
कोई बतलाए कि कोई कैसे दावा कर सकता है कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है? इस बात पर यक़ीन हो सकता है कि इस कायनात को बनाने वाली कोई एक ताक़त है मगर इस बात की गवाही नहीं दी जा सकती.
सवाल ये उठता है कि हज़ारों मुअज़्ज़न और लाखों नमाज़ियों ने ये कब देखा और कब सुना कि अल्लाह मुहम्मद को अपना रसूल (दूत) बना रहा था?
हर इंसान के लिए ये अज़ान आलमी झूट की तरह है 
जिसे मुसलमान आलमी सच मानते है और अज़ान देते हैं.
राम चंद परम हंस ने अदालत में झूटी गवाही दी कि "मैंने अपनी आँखों से कि गर्भ गृह से राम लला हो पैदा होते हुए देखा."
जिसे अदालत ने झूट करार दिया. इस साधू की गवाही झूटी सही मगर थी गवाही ही.
मुसलमानों की झूटी गवाही तो गवाही ही नहीं है, पहली जिरह में मुक़दमा ख़ारिज होता है कि मुआमला चौदह सौ साल पुराना है और मुल्लाजी की उम्र महेज़ चालीस साल की है, उन्हों ने कब देखा और सुना है कि इनके नबी अल्लाह के रसूल बनाए गए? मुसलमानों की पंज वक्ता गवाही उनकी ज़ेहनी पस्ती की अलामत ही कही जाएगी.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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