Tuesday 20 August 2019

वास्तव = ईमान

वास्तव = ईमान 

आस्तिक और नास्तिक की क़तार में एक लफ्ज़ है स्वास्तिक है. 
मुझे भाषा ज्ञान बहुत कम है मगर जो चेतन शक्ति है वह आ टिकती है 
"तिक" 
इस तिक का तुकांत अगर स्वा से जोड़ दिया जाए तो स्वास्तिक बनता है, 
यह दुन्या का बड़ा चर्चित शब्द बनता है. 
हिन्दू, बौध, जैन, आर्यन और नाज़ियों में इसका चिन्ह बहुत शुभ माना जाता है. इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं, 
इसका बीज ज़रूर कहीं पर मानव सभ्यता में बोया गया है.  
स्वास्तिक में वस्तु, वास्तव और वास्तविकता का पूरा पूरा असर है.  
शब्द वास्तव बहुत महत्त्व पूर्ण अर्थ रखता है 
जोकि धर्म के हर हर पहलू पर सवालिया निशान बन कर खड़ा हो जाता है. 
इस वास्तव को धर्मों ने धर्मी करण करके इस का लाभ अनुचित उठाया और अर्थ का अनर्थ कर दिया है, 
अपने ग्रन्थों में इसे चस्पा कर कर दिया, 
इसकी बातों  पर चलने वालों को आस्तिक 
और इसे न मानने वाले को नास्तिक ठहरा दिया है .
फिर भी यह शब्द वास्तव अपना प्रताप लिए धर्मों की दुन्या में डटा हुवा है.

इसी तरह अरबी ज़बान में एक शब्द है 
"ईमान" 
इस पर इस्लाम ने बिलजब्र ऐसा क़ब्ज़ा किया कि ईमान, 
इस्लाम का पर्याय बन कर रह गया है.
लोग अकसर मुझे हिक़ारत के साथ नास्तिक कह देते है, 
उनके परिवेश को मद्दे नज़र रखते हुए मैं 'हाँ' भी कह देता हूँ. 
यही नहीं मैं उनको समझाने के लिए ख़ुद को नास्तिक कह देता हूँ.
ख़ुद को मुल्हिद या दहरया कह देता हूँ जोकि सामान्यता घृणा सूचक माना जाता है.  
इन अपमान सूचक शब्दों वास्तविक अर्थ - - -
नास्तिक (वेदों पर आस्था न रखने वाला) 
 मुल्हिद, (अनेश्वर वादी) 
दहरया (दुन्या दार) 
उम्मी (हीब्रू भाषा का ज्ञान न रखने वाला) 
अजमी=गूंगा (अरबी जबान न जानने वाला, अरबी इन्हें गूंगा कहते हैं. 
धर्मों ने इन शब्दों को घृणा का प्रतीक बना कर अपनी दूकाने चलाई है. 
इन शब्दों पर ग़ौर करे सभी अपना बुनयादी स्वरूप रखते हैं. 
मगर धूर्त धार्मिकता इन्हें नकारात्मक बना देती है.
ईमान बड़ा मुक़द्दस लफ़्ज़ है - - - 
लौकिक, स्वाभाविक और क़ुदरती सच्चाई रखने वाली बात ईमान है. 
न कि इन्सान हवा में उडता हो और पशु इंसानी ज़बान में वार्तालाप करता हो. 
ईमान का ही हम पल्ला लफ्ज़ स्वास्तिक है. 
स्वाभाविक बातें ही सच होती हैं. 
अस्वाभाविक और ग़ैर फ़ितरी बातें धर्मों के बतोले होते हैं.
इसी तरह से मानव कर्म भी सार्थक और निरर्थक होते हैं . 
धरती पर हल चलाकर अन्न उपजाना सार्थक काम है, 
भूमि पूजन निरर्थक काम होता है.  
अधिकांश दुन्या इन्ही वास्तविकता और ईमान को कनारे करके  
निरर्थकता और बे ईमानी पर सवार है . 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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