Sunday 11 August 2019

क़ुरबानी

क़ुरबानी    

क़ुरबानी यानी बलिदान,
इस पाक और मुक़द्दस लफ़्ज़ को इस्लाम ने पामाल कर रख्खा है.
जानवरों का सामूहिक बद्ध को क़ुरबानी बना रक्खा है. 
क़ुरबानी और हज आज हैसियत का मुज़ाहिरा बन चुकी है.
क़ुरबानी इस वक़्त मुफ़्त खो़रों और हराम खो़रों की गिज़ा बन चुकी है.
क़ुरबानी ग़रीब और मज़बूर से उन की ग़ैरत छीन लेती है.
मक्के में क़ुरबानी का आलम ये है कि जितने हाजी होते हैं उतनी ही हैवानी जाने कुर्बान होती हैं. ज़ाहिर है कि एक हाजी एक बकरा तो खा नहीं सकता, 
गोश्त को रेगिस्तानो में दफन कर दिया जाता था, अब नहीं. 
दुन्या में कोई क़ौम  होगी जो इतनी बड़ी जिहालत को क़ुरबानी कहती हो ?
नेपाल में भी किसी मौके पर भैसों का कत्ल आम होता है, 
पूरा मैदान भैसों की लाशों से पट जाता है.
यह दुन्या के दूसरे नंबर के जाहिल हिन्दू होते हैं.
संविधान में मानव बलि एवं पशु बलि को जुर्म क़रार दे कर जीवों की सुरक्षा की गई है, जिसे मुस्लिम को छोड़ कर 99% अवाम ने मान लिया है.
मुसलमानों को पशु बलि की पूरी पूरी छूट है. यह बात दूसरों को अखरती है.
यह असली तुष्टीकरण करण है. इसके ख़िलाफ़ अवामी आवाज़ उठनी चाहिए .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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