Sunday 4 August 2019

नापाकी


नापाकी    

इस्लामी तरीक़े चाहे वह अहम् हों चाहे ग़ैर अहम्, 
इंसानों के लिए ग़ैर ज़रूरी तसल्लुत ज़रूर बन गए हैं. 
उनको क़ायम रखना या इन पर क़ायम रहना आज कितना मज़ाक बन गया है 
कि हर जगह उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है. 
उन्हीं में एक ज़रूरी थोपन है पाकी, यानी शुद्ध शरीर और पवित्र कपड़े. 
कपड़े या जिस्म पर गंदगी की एक छींट भी पड़ जाए तो 
तबीयत में नापाकी आ जाती है. 
मुसलमान हर जगह पेशाब करने से पहले पानी या खुश्क मिटटी का टुकड़ा ढूँढा करता है कि वह पेशाब करने के बाद इस्तेंजा (लिंग शोधन) कर सके.
आज के युग में ये बात कहीं कहीं कितनी अटपटी लगती है, 
ख़ास कर नए समाज की बनाई गई ख़ास जगहों पर. 
कपड़े साफ़ी हो जाएँ मगर इसमें पाकी बनी रहे.
इसी तरह माँ बाप बच्चों को सिखलाते है सलाम करना, 
उसके बाद मुल्ला जी समझाते हैं  कि दिन में जितनी बार भी मिलो सलाम करो, 
शिद्दत ये कि घर में माँ बाप से हर हर मुलाक़ात पर सलाम करो. 
ये जहाँ लागू हो जाता है, वहां सलाम एक मज़ाक़ बन जाता है. 
इसी पर कहा गया है,
"लोंडी ने सीखा सलाम, सुब्ह देखा न शाम."
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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