Monday 25 January 2021

हिन्दू कुश


हिन्दू कुश 

हिदुस्तान का इतिहास आज बड़े नाज़ुक मोड़ पर आकर खड़ा हुआ है. 
एक बड़े इंक़लाब की आमद आमद है. 
नाज़ी वाद ने फिर सर उठाया हुआ है. 
मनुवाद ने अवाम को चरका देकर इक़तेदार पर क़ब्ज़ा कर लिया है. 
मनुवादी निज़ाम की झलकियाँ झलकने लगी हैं. 
देश 3.५ % बरहमन जिनका केवल 10 % ही साज़िशी हैं, 
बाक़ी 90% सीधे सादे अवाम हैं. 
यही मुट्ठी भर लोग  इंसानियत के दुश्मन पूरे तालाब को गन्दा किए हुए हैं. 
फिर एक बार यह साज़िशी, वह समय लाना चाहते हैं कि लोग इनके ग़ुलाम हों जाएँ, 
आज ओरिजनल मनु वाद की पुस्तक मनु स्मृति भारत की बाज़ारों से ग़ायब है जो १९६० तक गीता प्रेस गोरखपुर जनता को उपलब्ध कराती थी. 
मनु वाद की नियमावली के तहत सारा धन, बल और साधन बरह्मनो का है. 
उनके तुफ़ैल (सौजन्य) में ही किसी दूसरे को कुछ मिल सकता है. 
यहाँ तक कि शूद्रों की लड़कियों का गौना तीन दिन किसी बरहमन के हरम से होकर गुज़रता था. 
शूद्रों को मिटटी के बर्तन, वह भी टूटे हुए, में खाने का हुक्म था. 
बरहमन की लाठी सर से एक बीता ऊंची, ठाकुर की क़द बराबर, बनियों की क़द से एक बालिश्त कम और शूद्रों को केवल सोटा रखने का हुक्म था. 
अलने बच्चों के नाम भी शूद्र कलुवा ललुवा बुधवा जैसे अपमान जनक रख सकते थे. पूरी किताब मनु स्मृति ऐसे क़ानून से भरी हुई है.
आज जब मैं जब मनुवादी लिखता हूँ तो मेरा आशय किसी ज़ात बरहमन, क्षत्री या वैश से नहीं होता बल्कि मनुवाद की सोच को पालने वाले व्यक्ति से होता है. 
आज इन बिरादरियों में क़ाबिल ए क़द्र लोग मौजूद हैं. 
गांधी बनिया थे तो विश्व नाथ प्रताप सिंह ठाकुर और नेहरु पंडित, 
जिन पर मैं न्योछावर जाऊं. 
ऐसे ही घृणित राम विलास पासबान और माया वती जैसे शूद्र भी हैं 
जो मनुवादी हो गए हैं.
हज़ारों साल पहले स्वर्ण आर्यन यूरेशिया से आए हुए माने जात्ते हैं. 
हिष्ट पुष्ट सफ़ैद रंगत की यह मानव प्रजाति 
छल और बल पूर्वक भारत के मूल निवास्यों पर ग़ालिब होते गए. 
दो ढाई सौ वर्ष ईसा पूर्व, यह मानव प्रजाति भारत इतिहास के पन्नो में आई. 
कुछ इतिहास कर लिखते हैं कि ये मूल निवासी रूस के थे. 
यह हज़ारों साल तक पूरब में एशिया और पश्चिम में योरोप तक फैलते गए. 
शांति स्वभाव मानव जाति में यह उत्पाती समूह क़ब्ज़ा करता गया. 
ऐसे ही प्रविर्ति के इस्राईली भी हुवा करते थे, 
कुछ खोजी इतिहास कार आर्यन और इस्रईलियों को एक ही मानते हैं, 
कुछ अलग. जो भी हो, दोनों की मानसिकता एक है. 
आर्यन बरहमन ख़ुद को ब्रह्मा के मुख पुत्र मानते है 
और यहूदियों का अपना ख़ुदा होता है 
जिसने उनसे वादा किया है कि एक दिन तुम पूरी दुन्या के शाशक होगे. 
दोनों में एक बात यकसां है कि दोनों नसलन होते हैं. 
ठाकुर चाहे तो बरहमन नहीं बन सकता, 
फिलिस्ती चाहे तो कभी यहूदी नहीं बन सकता. 
यही इनकी ख़ूबी कहें या ख़ामी, इन को दुन्या में रुसवा किए हुए है. 
5000 साल से यहूदियों का को देश नहीं बन पाया, 
अब इस्राईल वजूद में आया है,  
देखिए कब तक क़ायम रहता है. 
इसी तरह बरहमन धर्म मनुवाद पूरे एशिया पर छा जाने के बाद आज  
हिन्द और नेपाल में इसकी दुर्गन्ध बची हुई है. 
बाकी एशिया में इनके प्रताड़ित बौध आबाद हैं या इनके धुर विरोधी मुसलमान. 
मैं मानता हूँ कि आज इस्लाम रुस्वाए ज़माना है मगर 1400 सौ साल पहले यह इंक़लाब बन कर दुन्या पर छा गया था. 
मनुवाद और यहूदियत के ग़लबे में फंसे हुए मानव समाज में एक लाख़ैरे अनपढ़ ग़रीब ने ख़ुद को अल्लाह का दूत घोषित करके ग़रीब अवाम को आवाज़ दी कि तुम भी इंसान हो, तुम्हारे भी इस ज़माने में कुछ हुक़ूक़ है. 
इस की तहरीक ने देखते ही देखते आधी दुन्या पर क़ब्ज़ा कर लिया. 
इसका पैग़ाम था हुक़ूक़ुल इबाद का, यानी हर बन्दे का हक़ अदा होना, 
सिर्फ़ बरह्मनो और यहूदियों का नहीं. 
नतीजतन पूर्वी एशिया के मलेशिया, इंडोनेशिया से लेकर पश्चिमी एशिया ईरान और अफ़ग़ानिस्तान तक इस्लामी नीम साम्यवाद का ग़लबा हो गया. 
अफ़ग़ानिस्तान से लेकर ताजिकिसतान किर्गिसतान, काराकोरम, पामीर और चीन तक फैला हुआ 800 किलोमीटर लंबा और चार किलोमीटर चौड़ा पहाड़ी सिलसिला हिदू कुश बन गया, जहाँ मनु वाद और मनुराज का नाम व निशान भर बाक़ी हैं. 
 धरती का यह हिस्सा कभी मनु वाद का गढ़ हुआ करता था. 
आज फिर मनुवाद ने अंगडाई ली है, 
कहीं अंजाम में उसे दूसरा हिन्दू कुश न मिले.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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