Thursday 28 January 2021

सत्य का दास


सत्य  का दास 

अल्लाह, गाड और भगवान् 
अगर इंसान किसी अल्लाह, गाड या  भगवान को नहीं मानता तो 
सवाल उठता है कि वह इबादत और आराधना किसकी करता होगा ? 
मख़लूक़ (जीव) फ़ितरी तौर पर किसी न किसी की आधीन होना चाहती है. 
एक चींटी अपने रानी के आधीन होती है, 
तो एक हाथी अपने झुण्ड के सरदार हाथी या पीलवान का अधीन होता है. 
कुत्ते अपने मालिक की सर परस्ती चाहते है, 
तो परिंदे अपने जोड़े पर मर मिटते हैं. 
इन्सान की क्या बात है, उसकी हांड़ी तो भेजे से भरी हुई है, 
हर वक्त मंडलाया करती है, 
नेकियों और बदियों का शिकार किया करती है.
शिकार, शिकार और हर वक़्त शिकार, 
इंसान अपने वजूद को ग़ालिब करने की उड़ान में हर वक़्त 
दौड़ का खिलाडी बना रहता है,
मगर बुलंदियों को छूने के बाद भी वह किसी की अधीनता चाहता है.
सूफ़ी तबरेज़ अल्लाह की तलाश में इतने गहराई में गए कि 
उसको अपनी ज़ात के आलावा कुछ न दिखा, 
उसने अनल हक (मैं खुदा हूँ) कि सदा लगाई, 
इस्लामी शाशन ने उसे टुकड़े टुकड़े कर के दरिया में बहा देने की सज़ा दी. 
मुबालग़ा ये है कि उसके अंग अंग से अनल हक़ की सदा निकलती रही.
कुछ ऐसा ही गौतम के साथ हुवा कि 
उसने भी भगवन की अंतिम तलाश में ख़ुद को पाया और
" आप्पो दीपो भवः " का नारा दिया.
मैं भी किसी के आधीन होने के लिए बेताब था, 
ख़ुदा की शक्ल में मुझे सच्चाई मिली और मैंने उसमे जाकर पनाह ली.
कानपूर के 92 के दंगे में, मछरिया की हरी बिल्डिंग मुस्लिम परिवार की थी, 
दंगाइयों ने उसके निवासियों को चुन चुन कर मारा, मगर दो बन्दे उनको न मिल सके, जिनको कि उन्हें ख़ास कर तलाश थी. 
पड़ोस में एक हिन्दू बूढ़ी औरत रहती थी, 
भीड़ ने कहा इसी घर में ये दोनों शरण लिए हुए होंगे, 
भीड़ ने आवाज़ लगाई, घर की तलाशी लो. 
घर की मालिकन बूढी औरत अपने घर की मर्यादा को ढाल बना कर 
दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई. 
उसने कहा कि मजाल है मेरे जीते जी मेरे घर में कोई घुस जाए, 
रह गई बात कि अन्दर मुसलमान हैं ? 
तो मैं ये गंगा जलि सर पर रख कर कहती हूँ कि 
मेरे घर में कोई मुसलमान नहीं है. 
बूढी औरत ने झूटी क़सम खाई थी, 
दोनों व्यक्ति घर के अन्दर ही थे, 
जिनको उसने मिलेट्री आने पर उसके हवाले किया. 
ऐसे झूट का भी मैं अधीन हूँ.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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