Thursday 22 February 2018

Hindu Dharm Darshan-144-G



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
> ऐसा मुक्त पुरुष, 
भौतिक इन्द्रीय सुख की ओर आकृष्ट नहीं होता, 
अपितु सदैव समाधि में रह कर अपने अंतर में आनंद का अनुभव करता है.
इस प्रकार स्वरूप सिद्ध व्यक्ति 
परब्रह्म में एकाग्र चित्त होने के कारण असीम सुख भोगता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -5 - श्लोक -21  

कृष्णभावनामृत - - - लगता है भांग या गाँजा की खूब घुटी हुई पुडिया है 
जिस का नशा इंसान की सुद्ध बुद्ध खो देता है. 
इसको इंसान पीकर अपनी दरिद्रता को भूल जाता है 
और दही खाकर रबड़ी का स्वाद पाता है. 
कल्पनाओं के उड़न खटोले पर सवार होकर 
स्वर्गलोक का आनंद लेता है. 
या तो फिर दीवाना आकाश को तक तक कर मुस्कुराया करता है. गोश्त पोश्त के बने हुए इंसान को, 
गोश्त पोश्त से मिल कर ही महा आनंद आता है, 
किसी दोस्त की बगल गीरी हो, 
माशूक़ा का स्पर्स हो, 
माँ से लिपटना हो 
या औलाद को गोद में भरना, 
सब का अलग अलग सुख.
इन्द्रीय सुख अथवा मुबाशरत कहते हैं इन सब महान है . 
मुबाशरत से ही बशर (व्यक्ति) की उत्तपत्ति है. 
समाधि में तो क्षण भर नहीं जिया जा सकता. 
मैं नहीं समझ सका कि यह आध्यात्मिक समाधि कैसे कल्पित की जाती है.
समझने की ज़रुरत भी नहीं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
मुहम्मदी अल्लाह के तो काम ही निराले हैं. 
इन्द्रीय सुख तो उसके बन्दों की पहली ज़रुरत है. 
कहता है तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ. इनको जोतो बोओ, औलादों की फसलें काटते रहो. 
>"तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ़ से होकर चाहो जाओ, और आइन्दा के लिए अपने लिए कुछ करते रहो और यकीन रक्खो कि तुम अल्लाह के सामने पेश होने वाले हो. और ऐसे ईमान वालों को खुश खबरी सुना दो"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२३)
   

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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