Monday 19 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************

सूरह अनआम ६
(क़िस्त -6)

अल्लाह के मुँह से कहलाई गई मुहम्मद की बातें क़ुरआन जानी जाती हैं और मुहम्मद के क़ौल और कथन हदीसें कहलाती हैं. मुहम्मद की ज़िन्दगी में ही मिलावटी हदीसें इतनी हो गई थीं कि उनको मुसलसल बोलते रहने के लिए हुज़ूर को सैकड़ों सालों की ज़िन्दगी चाहिए थी, ग़रज़ उनकी मौत के बाद हदीसों पर पाबन्दी लगा दी गई थी, उनके हवाले से बात करने वालों ख़तिर कोड़ों से होती थी. 
दो सौ साल बाद बुख़ारा में एक नव मुस्लिम मूर्ति पूजक बुड्ढा, मगर वाक़िए की  सच्चाई को ईमान दारी से उजागर करता - - -  
''शरीफ़  मुहम्मद इब्न ए इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी बुख़ारी'' 
जो कि उर्फ़ ए आम में इमाम बुख़ारी के नाम से इस्लामी दुन्या में जाना जाता है, जिसने दर पर्दा इस्लाम की चूलें हिला कर रख दिया. इसने मुहम्मद की तमाम ख़सलतें, झूट, मक्र, ज़ुल्म, ना इंसाफी, बे ईमानी और अय्याशियाँ खोल खोल कर बयान कीं हैं. 
इमाम बुख़ारी ने किया है बहुत अज़ीम कारनामा जिसे इस्लाम के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ''इंतक़ाम-ऐ-जारिया'' कहा जा सकता है. अंधे, बहरे और गूंगे मुसलमान उसकी हिकमत-ए-अमली को नहीं समझ पाएँगे, वह तो ख़त्म कुरआन की तर्ज़ पर ख़त्म बुख़ारी शरीफ़  के कोर्स बच्चों को करा के इंसानी जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहेहैं, 
इस्लामी कुत्ते, ओलिमा. लिखते हैं कि इमाम बुख़ारी ने छः लाख हदीसों पर शोध किया और तीन लाख हदीसें कंठस्त कीं, इतना ही नहीं तीन तहज्जुद (रात की नमाज़) की रातों में एक क़ुरआन ख़त्म कर लिया करते थे और इफ्तार से पहले एक कुरआन. 
हर हदीस लिखने से पहले दो रकअत नमाज़ पढ़ते.. 
मगर उनके मरने के बाद पाई गईं सिर्फ़ २१५५ हदीसें. 

बुख़ारी लिखता है मुहम्मद के पास कुछ देहाती आए और उनसे पेट की बीमारी की शिकायत की. हुक्म हुआ कि इनको हमारे ऊंटों के बाड़े में छोड़ दो, वहां यह ऊंटों का दूध और मूत पीकर ठीक हो जाएँगे.
(ग़ौर करें कि बुख़ारी ने मुहम्मदी हुक्म से पेशाब पीना जायज़ क़रार देने का इशारा किया है, जबकि किसी भी पेशाब की एक बूंद से तन पर पड़ा हुवा कपड़ा नजिस हो जाता है.) 
कुछ दिनों बाद देहाती बाड़े के रखवाले को क़त्ल करके ऊंटों को लेकर फ़रार हो गए जिनको कि इस्लामी सिपाहियों ने जा धरा. 
उनको सज़ा मुहम्मद ने इस तरह दी कि 
सब से पहले उनके बाजू कटवाए, 
फिर टागें कटवाई, 
उसके बाद आँखों में गर्म शीशा पिलवाया 
बाद में उन्हें ग़ार ए हरा में फिकवा दिया 
जहाँ प्यास की शिद्दत लिए वह तड़प तड़प कर मर गए.
(बुख़ारी१७०) (सही मुस्लिम - - - किताबुल क़सामत)

तो इस क़दर ज़ालिम थे मुहम्मद जिनको ओलिमा मोहसिन ए इंसानियत लिखते हैं.
.
*अब देखिए मुहम्मद का मक्र क़ुरआन के सफ़हात में - - -

कहते हैं की गेहूं के साथ घुन भी पिस्ता है, मुसीबते और बीमारियाँ नेक और बद को देख कर नहीं आतीं. मगर अक्ल का दुश्मन मुहम्मदी अल्लाह ज़रा देखिए तो मुहम्मद से क्या कहता है- - -

''आप कहिए कि यह बतलाओ अगर तुम पर अल्लाह का अज़ाब आन पड़े, ख़्वाह बे ख़बरी में ख़्वाह ख़बरदारी में, तो क्या बजुज़ ज़ालिम लोगों के और कोई हलाक किया जाएगा?''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (४७)
एक रत्ती भर अक्ल रखने वाले के लिए क़ुरआन की यह आयत ही काफ़ी है कि वह मुहम्मद को परले दर्जे का बेवक़ूफ़ आँख बंद कर के कह दे और इस्लाम से बाहर निकल आए मगर ये हराम ज़ादे आलिमान ए दीन अपने तालिबानी गुंडों के साथ उनकी गर्दनों पर सवार जो हैं. इस से ज़्यादः मज़हकः ख़ेज़ बात और क्या हो सकती है कि जब कोई क़ुदरती आफ़त ज़लज़ला या तूफ़ान आए तो इस में काफ़िर ही तबाह हों और मुसलमान बच जाएं.

''आप कहिए कि न मैं यह कहता हूँ कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न मैं तमाम ग़ैबों को जनता हूँ और न तुम से यह कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ. मैं तो सिर्फ़ मेरे पास जो वही आती है उसकी पैरवी करता हूँ. आप कहिए कि कहीं अँधा और आखों वाला बराबर हो सकता है? सो क्या तुम ग़ौर नहीं करते?''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (५०)

यहाँ मुहम्मद ने ख़ुद को आँखों वाला और दीगरों को अँधा साबित किया है, साथ साथ यह भी बतलाया है कि वह भविष्य की बातों को नहीं जानते. उनकी सैकड़ों ऐसी हदीसें हैं जो इस के बर अक्स हैं और पेशीन गोइयाँ करती है. विरोधाभास क़ुरआन और मुहम्मद की तक़दीर बना हुवा है.

''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)


मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment