Friday 16 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त - 5)

पुर अम्न बस्ती, सुब्ह तड़के का वक़्त, लोग अध् जगे, किसी नागहानी से बेख़बर, ख़ैबर वासियों के कानों में शोर व् ग़ुल की आवाज़ आई तो उन्हें कुछ देर के लिए ख़्वाब सा लगा, मगर नहीं यह तो हक़ीक़त थी. 
आवाज़ ए तक़ब्बुर एक बार नहीं, दो बार नहीं तीन बार आई,
नारा ए तकबीर अल्लाहुअकबर - - - 

''ख़ैबर बर्बाद हुवा ! क्यूं कि हम जब किसी क़ौम पर नाज़िल होते हैं तो इन की बर्बादी का सामान होता है'' 

यह आवाज़ किसी और की नहीं, सललल्लाहो अलैहे वसल्लम कहे जाने वाले मुहम्मद की थी. 
नवजवान मुक़ाबिला को तैयार होते, इस से पहले मौत के घाट उतार दिए गए. बेबस औरतें लौडियाँ बना ली गईं और बच्चे गुलाम कर लिए गए. 
बस्ती का सारा तन और धन इस्लाम का माले ग़नीमत बन चुका था.
एक जेहादी लुटेरा वहीय क़ल्बी जो एक परी ज़ाद को देख कर उस पर फ़िदा हो जाता है, मुहम्मद के पास आता है और एक अदद बंदिनी की ख़्वाहिश का इज़हार करता है, जो मुहम्मद उसको अता कर देते हैं. 
वहीय के बाद एक दूसरा जेहादी मुहम्मद के पास दौड़ा दौड़ा आता है और इत्तेला देता है या रसूल अल्लाह सफ़िया बिन्त हई तो आप की मलिका बन्ने के लायक़ हसीन जमील है, वह बनी क़रीज़ा और बनी नसीर दोनों की सरदार थी. 
यह ख़बर सुन कर मुहम्मद के मुंह में पानी आ जाता है, 
उनहोंने क़ल्बी को बुलाया और कहा तू कोई और लौंडी चुन ले. 
मुहम्मद की एक पुरानी मंजूरे नज़र उम्मे सलीम ने उस क़त्ल और ग़ारत गरी के आलम में मज़लूम सफ़िया को दुल्हन बनाया, मुहम्मद दूलह बने और दोनों का निकाह हुवा.
लुटे घर, फुंकी बस्ती में, बाप भाई और शौहर की लाशों पर सललल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सुहाग रात मनाई. 
मुसलमान अपनी बेटियों के नाम मुहम्मद की बीवियों, लौंडियों और रखैलों के नाम पर रखते हैं, 
यह सुवरज़ाद ओलिमा के उलटे पाठ की पढाई की करामत है, 
क़ुरआन में ''या बनी इसराइल'' के नाम से यहूदियों को मुहम्मदी अल्लाह मुख़ातिब करता है. 
अरब में बज़ोर तलवार बहुत सारे यहूदी मुसलमान हो गए हैं, उनकी ही कुछ शाखें हिंदुस्तान में है जो खुद को बनी इसराइल कहते हैं मगर मुहम्मद के फ़रेब में इतने मुब्तिला हैं कि उनकी तलवार लेकर मरने मारने पर आमादः रहते हैं.

अब आइए कुरआन की ख़ुराफ़ात पर- - -

''तो आप को अगर ये क़ुदरत है कि ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो फिर कोई मुअज्ज़ा लेकर आओ. अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो इन सब को राह ए रास्त पर जमा कर देता, सो आप नादानों में मत हो जाएं."
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३५)

अल्लाह ख़ुद मुहम्मद को फटकार रहा है, 
मुहम्मद की इस ज़ेहनी कारीगरी को क्या आम आदमी समझ नहीं सकता, मगर मुसलमान आँख बंद किए, सर झुकाए इन सौदागरी बातों को समझ नहीं पा रहा है. इन बे सिर पैर की बातों का मज़ाक़ डेढ़ हज़ार साल पहले बन चुका था, अफ़सोस कि आज इबादत बना हुवा है. ज़हीन काफ़िर दीगर नबियों जैसा मुअज्ज़ा दिखा ने की फ़रमाइश जब मुहम्मद से करते हैं तो मुहम्मदी अल्लाह कहता है- - -

''अगर आप को इन काफ़िरों की रू गर्दानी गराँ गुज़रती है तो, फिर अगर आप को क़ुदरत है तो ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो'' 
सूरह अनआम-६_७ वाँ पारा (आयत३७)

लीजिए अल्लाह अपने दुलारे रसूल से भी रूठ रहा है क्यूं कि वह ग़म ज़दः हो रहे हैं और धीरज नहीं रख पा रहे हैं, अल्लाह पहले बन्दों को तअने देकर बातें सुनाता है फिर मुहम्मद को. 
ये आलम ए ख़्वाहिश ए पैगम्बरी में मुहम्मद की ज़ेहनी कैफ़ियत है जिसमे मक्र की बू आती है.

''और जितने क़िस्म के जानदार ज़मीन पर चलने वाले हैं और जितने क़िस् के परिंदे हैं कि अपने दोनों बाजुओं से उड़ते हैं, इसमें कोई क़िस्म ऐसी नहीं जो तुम्हारी तरह के गिरोह न हों. हमने दफ़्तर में कोई चीज़ नहीं छोड़ी फिर सब अपने परवर दिगार के पास जमा किए जाएंगे''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३८)

इन अर्थ और तर्क हीन बातों में मुल्लाओं ने खूब खूब अर्थ और तर्क पिरोया है. ज़रुरत है कि इसे नई तालीम की रौशनी में लाकर इनका पर्दा फाश किया जाए.

''अल्लाह जिसको चाहे बेराह कर दे - - -'' 
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३९ )

अल्लाह शैतान का बड़ा भाई जो ठहरा. दोनों इंसान को गुमराह करते हैं. 
मुहम्मदी शैतान जो मुसलामानों को सदियों से गुमराह किए हुए 'है.

''मुहम्मद लोगों से पूछते हैं कि अगर कोई मुसीबत आन पड़े या क़यामत ही आ जाए तो अल्लाह के सिवा किसको पुकारोगे?"
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४१)

 इससे लगता है कि उस वक़्त के लोग ईश शक्ति की बुनयादी ताक़त को  मानते हुए, उसकी अलामतों को भी शक्ति मानते रहे होंगे. 
आज का आम मुसलमान भी यही समझता है, 
ख़्वाजा अजमेरी को ख़ुद अल्लाह का मार्फ़त मानता है मगर अल्लाह नहीं. 
मुहम्मदी अल्लाह कुफ़्र की दुश्मनी का ऐनक लगा कर ही हर मुआमले को देखता है.

''हमने और उम्मतों की तरफ़ भी जोकि आपसे पहले हो चुकी हैं, पैगम्बर भेजे थे, सो हमने उनको तंग दस्ती और बीमारी में पकड़ा था ताकि वह ढीले पड़ जाएं''
''सो जब उन को हमारी सजाएं पहुची थीं तो वह ढीले क्यूं न पड़े? लेकिन उनके क्लूब (ह्रदय) तो शख़्त ही रहे. और शैतान उनके आमाल को उनके ख़याल में आरास्ता करके दिखलाता है''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४२-४३)

मुहम्मदी अल्लाह बड़ी बेशर्मी के साथ अपनी बद आमालियों के कारनामें बयान करते हुए मुहम्मद की पैग़म्बरी में मदद गार हो रहा है. अपने मुक़ाबले में शैतान को खड़ा करके नूरा कुश्ती का खेल खेल रहा है, बालावस्था में पड़ा मुस्लिम समाज मुंह में उंगली दबाए अपने अल्लाह की करामातें देख रहा है.

''फिर जब वह लोग इन चीज़ों को भूले रहे जिनकी इनको नसीहत की जाती थी तो हमने इन पर हर चीज़ के दरवाज़े कुशादा कर दिए, यहाँ तक कि जब उन चीज़ों पर जो उनको मिली थीं, वह खूब इतरा गए तो हमने उनको अचानक पकड़ लिया, फिर तो वह हैरत ज़दः रह गए, फिर ज़ालिम लोगों की जड़ कट गई''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत 44-45)


मुहम्मद एलान नबूवत के बाद अपनी फटीचर टुकड़ी को समझा रहे हैं कि उनके अल्लाह की ही देन है, यह काफ़िरों की ख़ुश हाली जो आरज़ी है. काश कि वह मेहनत और मशक्क़त का पैग़ाम देते जिस में क़ौमों की तरक्क़ी रूपोश है. 
इस्लाम का पैग़ाम तो क़त्ल ओ ग़ारत गरी और लूट पाट है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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