Wednesday 19 September 2018

सूरह रूम -30- سورتہ الروم क़िस्त-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह रूम -30- سورتہ الروم 

क़िस्त-1 

इस सूरह का नाम रोम इस लिए पड़ा कि फ़ारस (ईरान) ने मुहम्मद काल में रोम को फ़तह कर लिया था, जिसके बारे में क़ुरआनी अल्लाह ने अपने क़ुरआन में पेशीन गोई की थी कि फ़ारस का यह ग़लबा तीन से नौ सालों के अंदर ख़त्म हो जाएगा और रोम फिरसे आज़ाद हो जाएगा, 
बस कि ऐसा हो भी गया. 
दर अस्ल बात ये थी कि रोमी ईसाई थे जो कि मुसलमानों के किताबी भाई हुए और फ़ारस वाले उस वक़्त काफ़िर थे, उस वक़्त कुफ़्फ़ार मक्का ने इस्लामियों को तअने दिए थे कि हम अहले कुफ्र, 
अहले किताब पर ग़ालिब हो गए. 
जब रोम फ़ारस के गलबे से नज़ात पा गए तो ये सूरह मुहम्मदी अल्लाह को सूझी.
इस वाक़िए के सिवा इस सूरह में और कुछ नहीं है. 
मुहम्मदी अल्लाह का शुक्र है कि इस सूरह में इब्राहीम, नूह, मूसा और ईसा अलैहिस-सलामान की दास्तानें नहीं हैं. 
सिर्फ़ क़यामत की धुरी पर सूरह घूम रही है. 
हर आलमी और फ़ितरी सचाइयों को क़ुरआन अपनी ईजाद बतलाता है, 
जिस पर मुसलमानों का ईमान है . 
एक साहब ने मुझे टटोलने के लिए पूछा कि आप नमाज़ क्यूँ नहीं पढ़ते? 
मैं ने जवाब दिया कि इंसानियत ही मेरा दीन है. 
कहने लगे कि इंसानियत सिखलाई किसने ? 
उनका मतलब था "मुहम्मद" 
उन पर तरस खाते हुए मैं ख़ामोश रहा, 
बात तो ज़ेहन में आई कि गिना दूं ईसा, गौतम, महावीर और सुक़रात बुक़रात के नाम मगर मसलहतन चुप रहा.
सूरह रोम में भी सूरह क़सस की तरह  मुहम्मद की झक नहीं है, इस सूरह का मुसन्निफ़ कोई और है और साहिबे क़लम है. वह उम्मी अल्लाह नहीं हो सकता.
इसने सलीक़े के साथ क़ुरआन  सार पेश किया है
मुलाहिज़ा हो - - - 
"अहले रोम क़रीब के मौक़े पर मग़लूब हो गए और वह अपने मग़लूब होने के बाद अनक़रीब तीन साल से नौ साल के अंदर ग़ालिब आ जौएँगे. पहले भी अख़्तियार अल्लाह का था और पीछे भी और उस वक़्त मुसलमान अल्लाह की इस इमदाद से ख़ुश होंगे."
सूरह रूम - 30 (आयत (2-4)

अब ये कोई तिलावत की चीज़ या बात है?
"ये लोग ज़मीं पर चलते फिरते नहीं, जिसमें देखते भालते कि जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं, उन पर अंजाम क्या हुवा है? वह उन से क़ूवत में भी बढ़े चढ़े हुए थे और उन्हों ने ज़मीन को बोया जोता था और जितना इन्हों ने इस को आबाद कर रखा है, उससे ज़्यादा उन्हों ने इसको आबाद कर रखा था और उनके पास भी उनके पैग़म्बर मुअज्ज़े लेकर आए थे.
सूरह रूम - 30 (आयत 9)

मुहम्मद माज़ी के लोगों की मौतें अज़ाबे इलाही का अंजाम कहते हैं. 
अगर उन पर अज़ाब न होता तो शायद वह ज़िदा होते. 
आज के लोगों को समझा रहे हैं कि उनकी बात मानो जो कि अल्लाह की मर्ज़ी है, 
तो अज़ाब में नहीं पड़ोगे. इन ओछी बातों से लोग गुम राह हुए, 
मगर आज के लोग इन बातों में सवाब ढूढ़ते हैं, 
तो ये अफ़सोस का मुक़ाम है 
"और जब रोज़े क़यामत क़ायम होगी, उस रोज़ मुजरिम लोग हैरत ज़दा हो जाएँगे और उनके शरीकों में कोई उनका सिफ़ारशी न होगा और ये लोग अपने शरीकों से मुंकिर हो जाएगे. और जिस रोज़ क़यामत क़ायम होगी उस रोज़ आदमी जुदा जुदा हो जाएँगे यानी जो लोग ईमान लाए थे और अच्छे काम किए थे, वह तो बाग़ में मसरूर होंगे और जिन्हों ने कुफ़्र किया था और हमारी आयातों को और आख़िरत के पेश आने को झुटलाया था, वह अजाब में होंगे."
सूरह रूम - 30 (आयत 12-16)
क़यामत तो आप के मरते ही आप के ख़ान दान पर आ गई थी, 
मुहम्मद साहब!
आप कि छोटी बेग़म आयशा और आप के दामाद अली में मशहूर जंग ए जमल हुई तो 
एक लाख ताजः ताजः मुसलमान हुए लोग मारे गए थे. 
आप के सभी ख़लीफ़ा और सहाबा ए किराम आपसी रंजिश में एक दूसरे का क़त्ल कर रहे थे. 
बात कर्बला तक पहुंची तो आपका ख़ान दान एक एक क़तरा पानी के लिए तड़प तड़प कर मरा. 
आपकी झूटी रिसालत के बाईस आपके ख़ान दान का बच्चा बच्चा भूक और प्यास के साथ मारा गया. 
काश कि इस अंजाम तक आप ज़िन्दा होते और सच्चाइयों के आगे तौबा कर लेते. 
और सदाक़त का पैर पकड़ कर रहम की भीक तलब करते. 
याद करते अपने जेहादी नअरे को कि ख़ैबर में क़त्ले आम करने से पहले जो आपने दिया था 
"ख़ैबर बरबाद हुवा! क्यूं कि हम जब किसी क़ौम पर नाज़िल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है."
क़यामत पूरे अरब और अजम में आप के झूट की सी फ़ैल चुकी है, 
आपसी झगड़ों से मुसलमानों पर आग ज़्यादः बरसी, 
ग़ैर मुस्लिम भी जंगी चपेट में आए मगर ख़सारे में रहे वह 
जिन्हों ने आप की ज़हरीली पैग़म्बरी को तस्लीम किया. 
आपके बोए हुए पैग़म्बरी के ज़हर बीज को दुन्या की २०% आबादी काट रही है.
मुसलमानों को आप के इस्लाम ने पस्मान्दः क़ौम बना दिया है. 
किसी क़ौम की आलमी ज़िल्लत से बढ़ कर, 
दूसरी क़यामत और ज़िल्लत क्या होगी. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

4 comments:

  1. शुक्रिया जनाब । यह बिल्कुल सच है कि कुरान आसमानी पुस्तक नहीं है । कुरान शुरू में "वरका बिन नौफल" ने लिखा । बाद का कुछ हिस्सा अज्मी आलिम "सलमान फारसी " ने । मुसलमानों ने जब ऐथोपिया की इसाई रियासत की तरफ हिजरत की तो वरका बिन नौफल की लिखी सूरह मरियम की आयात अपने साथ ले गये इन आयतों में भी यीशु की जमकर तारीफ की गयी है । इसे पढकर ही हब्शा के इसाई राजा ने मुसलमानों को पनाह दे दी थी । अगर उस राजा को मालूम होता कि आगे चलकर यह जाहिल अरबी बद्दू, इसाईयों के साथ भी गद्दारी करेंगें तो यकीनन वह पनाह न देता बल्कि वही सुलूक करता जो ताईफ वालों ने किया था ।अरबों द्बवारा गढी गई इस कुरान में सूरह रूम की एक बडी वजह और भी है। यहां लिखना मुम्किन नहीं । क्यों कि तहरीर काफी तवील है। इब्तेदाई मक्की सूरतों में मुहम्मद रसूल बने रहे,,जब कि मदनी सूरतों में नबी होने का ढोल पीट रहे हैं । इस्लामी कलमा में तो हमेशा रसूल ही बने रहे कभी " नबीयुल्लीह " नही कहा । एक सहाबी " अब्दुल्लाह बिन सअद बिन अबी सर्ह " तो मुरतद हो गये थे ।वह कातिब ए वही थे और उनका कहना था कि रसूल उनके मुंह से निकली हुइ बात कुरान में शामिल कर देते हैं । ( विस्तार से जानने के लिए मुलाहिजा करें " उयूनुलअसर फिलमगाजी वस्सियर " " असबाबुन्नुजूल और करतबी जैसी बहुत सी मुस्तनद किताबें ,,जिसे यह मलअून ओलिमा ए किराम पढते तो हैं मगर अवाम से छिपाते हैं और यह कहकर अपना दामन बचाते है कि हदीस गैर मुस्तनद है । लुत्फ यह है कि इन्हीं कलमकारों की लिखी हजारों हदीसों को मुस्तनद मान भी रहे हैं । मीठा मीठा गप गप, कडवा कडवा थू थू ,

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  2. शुक्रया जनाब ! आपने मेरे इल्म में अज़फा किया. ऐसी तवील तहरीर भी आप मुझे भेज सकते हैं. मैं क़ीमती मज़ामीन को Copy Pest करके इत्मीनान से दखता हूँ और तजज़िया करता हूँ.

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  3. جب پیغمبر اسلام نے نبوت کا دعوی کیا تو آنجناب کی
    عمر 40 سال تھی.مکہ کے علماء حضرات نام نہاد رسول سے امتحاناً کوئی سوال پوچھتے توامی رسول ان سے فرما تے کہ شام کو جبرئیل فرشتے سے پوچھ کر اس سوال کا جواب دیں گے.تاریخ ہمیں بتاتی ہے کہ رسول ان سوالوں کا جواب مکہ کے ایک عیسائی عالم جناب ورقہ بن نوفل سےپوچھ کر مکہ والوں کو بتا دیتے.اور کہتے کہ یہ جواب مجھے بذریعۂ وحی اللہ نے
    بتلائے ہیں.مکہ کے دانشمند حیران تھے کہ ایک ان پڑھ
    توریت زبور اور انجیل کا علم کہاں سے حاصل کر رہا ہے.کیا واقعی جبریل فرشتہ آسمان سے اس جاہل کو وحی دے جاتا ہے یا کوئی اور راز ہے ؟ جب ورقہ بن نوفل کا انتقال ہو گیا تب اونٹ پہاڑ کے نیچے آیا. پیغمبر صاحب سے لوگ سوال کرتے تو جواب ہوتا کہ اب میرے اوپر وحی آنا بند ہو گئی ہے.کیوںکہ نام نہاد وحی کا راز منکشف ہو چکا تھا.اس لئے مکیوں نے مذاق اڑانا شروع کردیا.تو حضرت نے ایران نژاد عجمی عالم سلمان فارسی کا سہارا لیا جو توریت.زبور.اور انجیل پر عبور رکھتے تھے.حضرت پر وحی کاسلسلہ دوبارہ شروع ہو گیا.لوگ سوال کرتے اور آپ سلمان فارسی سے پوچھ کر ان کو جواب دیدیتے. اس دوران مکیوں کو اس بات کا بھی علم ہو گیا کہ کوئی عجمی عالم پیغمبر کو آیتیں لکھ کر دے رہا ہے.اس بات کا ثبوت ہمیں قرآن کی سورہ النحل آیت 103 سے بھی مل رہا ہے آیت یہ ہے."ولقد نعلم انھم یقولون انما یعلمہ بشر لسان الذی یلحدون الیہ ءأعجمی وھذا لسان عربی مبین "(ترجمہ) اورہمیں خوب معلوم ہے کہ وہ کہتےہیں کہ اسے تو ایک آدمی سکھلاتا ہے.حالاںکہ جس کی طرف وہ اسکی نسبت کرتے ہیں اسکی زبان عجمی ہے اور یہ صاف عربی ہے" اس آیت سے ہمیں معلوم ہوا کہ قرآن کسی عجمی نے بھی لکھا ہے.ایہاں اللہ نے مکیوں کے اعتراض کا بہت ہی غیر منطقی جواب دیا ہے کہ " قرآن خالص عربی ہے.اسے ایک عجمی کیسے لکھ سکتا ہے" یہ جواب جاہل عربوں کو تو مطمئن کر سکتا ہے.مگر ہمیں نہیں.کوئی بھی عالم عرب کلچر میں رہ کر بہتریں عربی دان ہو سکتا ہے .اور سلمان فارسی تو اپنے وقت کا بہترین عالم تھا. تو جناب آج ہم نے جانا کہ قرآن کے لکھنے میں ایک عجمی کا بھی ہاتھ ہے.اور یہ بات قرآن سے ہی ثابت ہے.

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  4. جناب نے قیمتی معلومات دن.غور سے پڑھتا ہوں آپ کے تبصرے. شکر گزار ہوں.

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