Friday 14 September 2018

Soorah Anquboot 29 Q 1 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं
*****
सूरह अनकबूत -29 
क़िस्त-2 

मुलाहिज़ा हो मुहम्मद की अल्लम ग़ल्लम  - - -  

अलिफ़-लाम-मीम"  (अल्लम)
सूरह अनकबूत -29 आयत(1)

ये लफ़्ज़ मुह्मिल है जिसके कोई मअनी नहीं होते. ऐसे हरफ़ों को क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफ़- मुक़त्तेआत कहते है. इसका मतलब अल्लाह ही जानता है. ऐसे लफ़्ज़ मुह्मिल को क़ुरआन की कई सूरह में मुहम्मद पहले लाते हैं. 
क़ुरआन की आयातों को सुनकर शायद किसी बेज़ार ने कहा होगा, 
"क्या अल्लम-ग़ल्लम बकते हो?" 
तब से ही यह अल्लम-ग़ल्लम अरबी, फ़ारसी और उर्दू में ये मुहविरा क़ायम हुआ.

"क्या इन लोगों ने ये ख़याल कर रक्खा है कि वह इतना कहने पर छूट जाएँगे कि हम ईमान ले आए और उनको आज़माया न जायगा और हम तो उन लोगों को भी आज़मा चुके हैं जो इसके पहले हो गुज़रे हैं, सो अल्लाह इनको जान कर रहेगा जो सच्चे थे और झूटों को भी जान कर रहेगा."
सूरह अनकबूत -29 आयत (2-3)

हर अमल का गवाह अल्लाह कहता है कि वह ईमान लाने वालों को जान कर रहेगा? 
मुहम्मद परदे के पीछे ख़ुद अल्लाह बने हुए हैं जो ऐसी तक़रार में अल्लाह को घसीटे हैं. 
वरना आलिमुल ग़ैब अल्लाह को ऐसी लचर बात कहने की क्या ज़रुरत है? 
अल्लाह को क्या मजबूरी है कि वह तो दिलों की बात जानता है. 
इस्लाम क़ुबूल करने वाले नव मुस्लिम ख़ुद आज़माइश के निशाने पर हैं. 
मुहम्मद इंसानी ज़ेहनों पर मुकम्मल अख़्तियार चाहते हैं कि उनको तस्लीम इस तरह  किया जाए कि इनके आगे माँ, बहन, भाई, बाप कोई कुछ नहीं. 
इनसे साहब सलाम भी इनको गवारा नहीं.

"हम ने इंसान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है और अगर वह तुझ पर इस बात का ज़ोर डालें कि तू ऐसी चीज़ को मेरा शरीक ठहरा जिसकी कोई दलील तेरे पास नहीं है तो उनका कहना न मानना. तुझको मेरे ही पास लौट कर आना है. सो मैं तुमको तुम्हारे सब काम बतला दूंगा."
सूरह अनकबूत -२९ आयत(८)

मुहम्मदी अल्लाह की ये गुमराही के एहकाम औलादों के लिए है तो दूसरी तरफ़ माँ बाप को धौंस देता है कि अगर उनकी औलादें इस्लाम के ख़िलाफ़ गईं तो जहन्नम की सज़ा उनके लिए ( माँ बाप के लिए ) रक्खी हुई है. 
ये है मुसलमानों की चौ तरफ़ा घेरा बंदी.

"अल्लाह ईमान वालों को जान कर ही रहेगा और मुनाफिकों भी."
सूरह अनकबूत -29 आयत(11)

मुहम्मद अपने अल्लाह को भी अपनी ही तरह  उम्मी गढ़े हुए हैं, 
कितनी मुतज़ाद बात है क़ुदरत के ख़िलाफ़ कि वह सच्चाई को ढूंढ रही है.

"कुफ़्फ़ार मुसलमानों से कहते हैं कि हमारी राह पर चलो, और तुम्हारे गुनाह हमारे जिम्मे, हालाँकि ये लोग इनके गुनाहों को ज़रा भी नहीं ले सकते, ये बिलकुल झूट बक रहे हैं और ये लोग अपना गुनाह अपने ऊपर लादे हुए होंगे."
सूरह अनकबूत -29 आयत(12)  

ये आयत उस वाक़िए का रद्दे अमल है कि कोई शख़्स  मुसलमान हुवा था, उसे दूसरे ने वापस पुराने दीन पर लाने में कामयाब हुवा, जब उसने इस बात कि तहरीरी शक्ल में लिख कर दिया कि अगर गुनाह हुवा तो उसके सर. मज़े की बात ये कि ज़मानत लेने वाले ने उससे कुछ रक़म भी ऐंठी. 
ऐसे गाऊदी हुवा करते थे सहाबए किराम .


"जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे को अपना अवलिया बनाया, उस की मिसाल मकड़ी जैसी है कि वह भी एक तरह का घर बनती है और कुछ शक नहीं कि तमाम घरों से कमज़ोर और बोदा मकड़ी का घर है."
सूरह अनकबूत -29 आयत(41)

"अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बड़ी मुनासिब तौर पर बनाया, ईमान वालों के लिए इसमें बड़ी दलील है."
सूरह अनकबूत -29 आयत(44)

मकड़ी का बोदा घर हो, 
ज़मीन और आसमानों की तकमील हो, 
पानी को चीरती हुई कश्तियाँ हों, 
ऊँट का बेढंगा डील डौल हो, 
या गधे की करीह आवाज़, 
जिनको कि आप क़ुरआन  में बघारते हैं, 
इन सब का तअल्लुक़ ईमान से क्या है? 
जिसकी शर्त पर आपकी पयंबरी क़ायम होती है. 
आपको तो इतना इल्म भी नहीं कि आसमान (कायनात) सिर्फ़ एक है 
और इस कायनात में ज़मीनें अरबों है 
जिनको हमेशा आप उल्टा फ़रमाते हैं . . 
"आसमानों (जमा) ज़मीन (वाहिद)"

"जो किताब आप पर वह्यि की गई है उसे आप पढ़ा कीजिए और नमाज़ की पाबन्दी रखिए. बेशक नमाज़ बेहयाई और ना शाइस्ता कामों से रोक टोक करती हैं और अल्लाह की याद बहुत बड़ी चीज़ है और अल्लाह तुम्हारे सब कामों को जानता है."
सूरह अनकबूत -29 आयत(45)

ऐ अल्लाह! मुहम्मद नाख़्वान्दा हैं, अनपढ़ हैं, कोई किताब कैसे पढ़ सकते हैं? 
उन्हें थोड़ी सी अक़्ल  दे कि सोच समझ कर बोला करें.
***

गुनाह और सवाब ?
आम मुसलमान उम्र भर इन दो भूतिए एहसास में डूबे रहते है, 
जब कि इंसान पर भूत इस बात का होना चाहिए कि उसका हिस और ज़मीर उस पर सवार रहे .

.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment