Friday 28 September 2018

Soorah luqman 31--Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह लुक़मान- 31-سورتہ اللقمان  
क़िस्त 2  

"और हमने इंसान को उसके माँ बाप के मुतालिक़ ताक़ीद किया है कि उसकी माँ ने तकलीफ़ पर तकलीफ़ उठा कर ? और दो बरस में उसका दूध छूटता है कि तू मेरी और अपने माँ बाप का शुक्र गुज़ारी किया कर. मेरी तरफ़ ही लौट कार आना है."
सूरह लुक़मान 31आयत (14)

लगता है मुसंनिफ़े-क़ुरआन कुछ मदक़ पिए हुए है, 
ज़बान लड़खड़ा रही है, 
जुमले को पूरा भी नहीं कर पा रहा है. 
ऐसे अल्लाह के मुँह पर लगाम लगाई जाए और पैरों में बेडी डाली जाए. 
कैसी मख़लूक़ है ये कट्टर मुसलमानों की भीड़ 
जो इन बकवासों को इबादत के लायक़ समझते हैं.

"और अगर तुझ पर वह दोनों मिलकर ज़ोर डालें तो कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक न कर जिसकी तेरे पास कोई दलील नहीं है तो तू इनका कहना न मानना और दुन्या में इनके साथ ख़ूबी से बसर करना और उसी कि राह पर चलना जो मेरी तरफ़ रुजू हो, फिर तुम सब को मेरे पास आना है, फिर तुम को जतलाऊँगा जो कुछ तुम करते हो."
सूरह लुक़मान 31आयत (15)

मुहममद अल्लाह से कहलाते है कि औलाद माँ बाप की ना फ़रमानी भी करे और इनके साथ ख़ूबी से बसर भी करे. 
है न ये मुतज़ाद हिमाक़त की बातें?
मुहम्मद औलादों को बहक़ते भी हैं और साथ साथ धमकाते भी हैं.
बद क़िस्मत क़ौम ! जागो.

"बेटा! अगर कोई अमल राई के दाने के बराबर हो, वह किसी पत्थर के अन्दर हो या आसमान के अन्दर या ज़मीन के अन्दर हो तब भी अल्लाह इसको हाज़िर कर देगा. बेशक अल्लाह बारीक बीन बाख़बर है."


सूरह लुक़मान 31आयत(16)  

मुसलमानों! 
अल्लाह तअला न बारीक बीन है न बाख़बर, 
न वह बनिए की तरह है कि सब का हिसाब किताब रखता है, 
वह अगर है तो एक निज़ाम बना कर क़ुदरत के हवाले कर दिया है, 
अगर नहीं है तो भी क़ुदरत का निज़ाम ही कायनात में लागू है. 
हर अच्छे बुरे का अंजाम मुअय्यन है, 
इस ज़मीन की रफ़्तार अरबों बरस से मुक़र्रर है कि है कि वह एक मिनट के देर के बिना साल में एक बार अपनी धुरी पर अपना चक्कर पूरा करती है. क़ुदरत गूँगी, बहरी है और अंधी है उससे निपटने के लिए इंसान हर वक़्त मद्दे मुक़ाबिल है. 
अगर वह मुक़ाबिला न करता होता तो अपना वजूद गवां बैठता, 
आज जानवरों की तरह सर्दी, गर्मी और बरसात की मर झेलता होता, 
बड़ी बड़ी इमारतों में ए सी में न बैठा होता.
मुसलमान उसका मुक़ाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, 
यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.

"बेटा नमाज़ पढ़ा कर और अच्छे कामो की नसीहत किया कर और बुरे कामों से मना किया कर, और तुझ पर मुसीबत वाक़ेअ हो तो सब्र किया कर, ये उम्मत के कामों में से है. और लोगों से अपना मुँह मत फेर और ज़मीन पर इतरा कर मत चला कर. बेशक अल्लाह तकब्बुर करने वाले, फ़ख़्र  करने वाले को पसन्द नहीं करता. अपनी रफ़्तार में एतदाल अख़्तियार कर और अपनी आवाज़ पस्त कर, बे शक आवाज़ों में सब से बुरी आवाज़ गधों की है"
सूरह लुक़मान 31आयत(17-19)

मुहम्मद हकीम लुक़मान से कैसी कैसी टुच्ची बातें करवाते हैं  . 
यह हकीम लुक़मान की मिटटी पिलीद करना हुआ. 
मुहम्मद को इसकी परवाह भी नहीं , 
जो इंसानी समाज का बद ख़्वाह रहा हो 
उसको बुद्धि जीवियों की क़द्र क़ीमत कोई मानी नहीं रखती. 
बहुत से बुद्धि जीवी मुहम्मद के ज़माने में हुवा करते थे जिन्हें उन्हों ने काफ़िर, मुशरिक, मुल्हिद कह कर पामाल कर दिया.
देखिए कि हज़रत कह रहे हैं 
"बे शक आवाज़ों में सब से बुरी आवाज़ गधों की है " 
अल्लाह के बने रसूल अल्लाह की मख़लूक़ पर कैसा तबसरा कर रहे हैं.
"हम उनको चन्द रोज़ का ऐश दिए हुए हैं, उनको धेरे धीरे एक सख़्त अज़ाब की तरफ़ ले जाएँगे और- - -''
सूरह लुक़मान 31आयत(17-19)

ग़ौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह अपने बन्दों के साथ कैसी साज़िश रचता है . इंसानी दिलो-दिमाग़और जान का दुश्मन शिकारी.

"और अल्लाह तबारक तअला बे नयाज़, सब ख़ूबियों वाला है. और जितने दरख़्त ज़मीन भर में हैं, ये सब क़लम बन जाएं तो और ये समंदर है, इसके अलावः सात समंदर और इसमें शामिल हो जाएं तो इस की बातें ख़त्म न होंगी."
सूरह लुक़मान 31आयत(27)

गोया रसूल का अंदाज़ा है कि इस ज़मीन के सारे दरख़्त अगर कलम बन जाएँ तो समंदर भर की रोशनाई कम पड़ जायगी बल्कि इस का सात गुना भी कम पड़ जाएगी कि अल्लाह की बातें ख़त्म न होंगी. 
जब कि समंदर पेड़ों के मुक़ाबिले हज़ारों गुना होगा. 
बातें क़ुरआनी बकवास न हों, नई नई बातें हों, 
कारामद बातें हों तो इसको पढ़ने के लिए मुसलसल इंसानी नस्लें तैयार हैं.
"और वही जानता है जो रहेम (गर्भ) में है "
सूरह लुक़मान 31आयत(34)
आज अल्लाह का चैलेंज तार तार हो चुका है. 
अगर इस आयत को ही लेकर मुसलमान अपनी आँखें खोलना चाहें तो काफ़ी है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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