Wednesday 26 September 2018

luqman 31-Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****
सूरह लुक़मान- 31-سورتہ اللقمان  

क़िस्त 1 

कहते हैं कि हकीम लुक़मान खेतों में, बाग़ों और जंगलों में सैर करने जाते तो पेड़ पौदे उनको आवाज़ देकर बुलाते कि हकीम साहब मैं फलाँ बीमारी का इलाज हूँ . 
और यह बात भी मशहूर है कि अल्लाह मियाँ ने उनको पैग़मबरी की पेश कश की थी जिसे उन्हों ने ठुकरा दिया था कि मुझे हिकमत पसंद है. 
ये तो ख़ैर किंवदंतियाँ हुईं. 
  हकीम साहब आला ज़र्फ़ इंसान रहे होंगे और समझ दार भी, 
साथ साथ मेहनत कश और हलाल खो़र भी. 
बस यूँ समझें  कि आज के परिवेश में एक सच्चा डाक्टर जो इन नीम हकीमों से बाबा, स्वामी, पीर, गुरू और योगयों वग़ैरा से महान होता है. 
हकीम साहब ने लाखों इंसानी ज़िंदगियाँ बचाईं और उनके नुस्ख़े यूनानी इलाज के बुनियाद बने हुए हैं. पैग़मबरों ने लाखों ज़िंदगियों को मौत के घाट उतारा और उनके मज़हब मुसलसल इंसानियत का ख़ून  किए जा रहे हैं. 
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुक़मान हकीम को और ठोंक दी एक सूरह उनके नाम की  भी.
"अलिफ़ लाम मीम"
सूरह लुक़मान 31आयत (1)
यह मुहम्मदी छू मंतर है. इसका मतलब अल्लाह जाने.

"ये आयतें एक पुर हिकमत किताब की हैं जो कि हिदायत और रहमत है, नेक कारों के लिए. जो नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वह लोग आख़रत का पूरा यक़ीन रखते हैं.''
सूरह लुक़मान 31आयत(2-4)

वाजेह हो कि मुहम्मदी अल्लाह की नज़र में नेक काम नमाज़, ज़कात और आख़िरत पर यक़ीन रखना ही है, जोकि दर असल कोई काम ही नहीं है. 
नेक काम है हक़ हलाल की रोज़ी, ख़ून  पसीना बहा कर कमाई गई रोटी, 
इनसे परवरिश पाया हुवा परिवार, इस कमाई से की गई मदद. 
अल्लाह के बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा करना. 
धरती को सजा संवार कर इससे खाद्य निकालना, 
सनअत क़ायम करना.
क़ुरआन अगर पुर हिकमत किताब होती तो 
मुसलमान हिकमत लगा कर बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. 
कोई ईजाद इन नमाज़ियों ने नहीं की?

"और बअज़ा आदमी ऐसा है जो उन बातों का ख़रीदार बनता है जो  ग़ाफ़िल करने वाली हो, ताकि अल्लाह की राह से बे समझे बूझे गुमराह करे और इसकी हंसी उड़ा दे, ऐसे लोगों को ज़िल्लत का अज़ाब है. और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो वह तकब्बुर करता हुआ मुँह फेर लेता है, जैसे इसने सुना ही न हो, जैसे इसके कानों में नक़्श  हो."
सूरह लुक़मान 31आयत (6-7)

कैसा मेराक़ी इंसान था वह जो अल्लाह का रसूल बना हुआ था? 
जो राह चलते राही की राहें रोक रोक क़र क़यामत आने की बातें करता था. 
ज़रा आज भी ऐसे ही दीवाने कि कल्पना कीजिए, 
कोई आज पैदा हो जाए तो क्या हो? 
वह ख़ुद लोगों को ग़फ़लत बेचने में कामयाब हो गया, 
ऐसी ग़फ़लत कि सदियाँ गुज़र गईं, लोग ग़ाफ़िल हुए पड़े है, 
पूरी की पूरी क़ौम ग़फ़लत के नशे में चूर है.

"अल्लाह ने आसमान को (बहैसियत एक छत) बग़ैर ख़म्बे के क़ायम किया, तुम इसको देख रहे हो और ज़मीन में पहाड़ डाल रक्खे हैं ताकि वह तुम को लेकर डावां डोल न हो.और इस में हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हम ने आसमान से पानी बरसाया और फिर हमने ज़मीन पर हर तरह के उम्दा इक़साम उगाए."
सूरह लुक़मान 31आयत (10)

अफ़्रीक़ा के क़बीलों में जहाँ अभी तालीम नहीं पहुँची, ऐसी आयतों पर अक़ीदा बांधे हुए हैं जब कि मुसलमान योरोप में रह कर भी नहीं बदले उनका अक़ीदा भी यही है कि अल्लाह ने आसमानों की छतें बग़ैर ख़म्बों के बनाए हुए है और ज़मीन में पहाड़ों के खूँटे गाड़ कर हमें महफ़ूज़ किए हुए है.
मुहम्मद अल्लाह की बख़ान  कभी ख़ुद करते हैं 
और कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बोलने लगते हैं. 
ग़ौर करें कि कहते हैं "अल्लाह ने आसमान को - - -  
फिर कहते हैं " हम ने आसमान से पानी बरसाया- - - "
इसे मुसलमान अल्लाह का कलाम मानते हैं, 
गोया मुहम्मद को जुज़वी तौर पर अल्लाह मानते हैं. 
ओलिमा इस पर गढ़ी हुई दलील पेश करते हैं कि 
अल्लाह कभी ख़ुद अपने मुँह से बात करता है तो कभी मुहम्मद के मुँह से. 
ओलिमा सारी हक़ीक़त जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इनको इनका अल्लाह ग़ारत नहीं कर सकता, 
क्यूंकि अल्लाह वह भी मुहम्मदी अल्लाह हवाई बुत है ?
जैसे मुशरिकों के माटी के बुत होते हैं.
देखिए कि ख़ुद साख़्ता अल्लाह के रसूल हकीम लुक़मान से कोई हिकमत की बातें नहीं कराते हैं बल्कि अपने दीन इस्लाम का प्रचार कराते हैं - - -

"और हमने लुक़मान को दानिश मंदी अता फ़रमाई कि अल्लाह का  शुक्र करते रहो, कि जो शुक्र करता है, अपने ज़ाती नफ़ा नुक़सान के लिए शुक्र करता है. और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़  ख़ूबियों वाला है."
सूरह लुक़मान 31आयत(12)

"और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ ख़ूबियों वाला है."बन्दा नाशुक्री करता रहे और अल्लाह ख़ूबियाँ बटोरता रहे? 
है न मुहम्मद की उम्मियत का असर.

"और जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा कि बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराना. बे शक शिर्क करना बहुत बड़ा ज़ुल्म है."
सूरह लुक़मान 31आयत(13)

क्या बात है नाज़िम ए कायनात कान लगाए बैठा हकीम लुक़मान की नसीहत सुन रहा था जो वह अपने बेटे को दे रहे थे. फिर हज़ारों साल बाद जिब्रील अलैहिस्सलाम को इसकी ख़बर देकर कहा कि इस वाक़ेए को मेरे प्यारे नबी के कानों में फुसक आओ ताकि वह अपनी उम्मत के लिए तिलावत का सामान पैदा कार सकें,
मुसलमानों थोड़ी देर के लिए दिमाग़ की खिड़की खोलो. 
अपने रसूल की चाल बाज़ी को समझो, 
क्या हकीम लुक़मान अपने बेटे को कोई हकीमी नुस्ख़ा दे रहे हैं, 
जो कि उनकी हिकमत के मुताबिक़ अल्लाह को गवाही देनी चाहिए? 
क़ुरआनी अल्लाह निरा झूठा है.

ज़ुल्म वही इंसानी अमल है जिसके करने से किसी को जिस्मानी नुक़सान हो रहा हो, या फिर ज़ेहनी नुक़सान के इमकान हों, या तो माली नुक़सान पहुँचाना हो. 
शिर्क करने से कौन घायल होता है? 
किसको ज़ेहनी अज़ीयत होती है या 
फिर किसकी जेब कटती है? 
आम मुसलमान कुफ्र और शिर्क को ज़ुल्म मानता है 
क्यूंकि क़ुरआन बार बार इस बात को दोहराता है. 
क़ुरआन ने अलफ़ाज़ के मानी बदल रक्खे हैं.
*** 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. आलिमों के पीछे चलने वाले तमाम मुसलमान 100फीसद बेईमान हैं । मुसलमान कौम अपनी बद दयानती की वजह से , दीगर कौमों की नजरों में एक मश्कू और ना काबिल ए एतिमाद कौम बन चुकी है ।

    ReplyDelete