Thursday 27 September 2018

ndu Dharm Darshan 232


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (35)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से न जानने के कारण सोचते हैं 
कि मैं (भगवान कृष्ण) पहले निराकार था 
और अब मैंने इस स्वरूप को धारण किया है . 
वह अपने अज्ञान के करण मेरी अविनाशी तथा सर्वोच प्रकृति को नहीं जान पाते.
**मैं मूरखों एवं अल्पज्ञो के लिए कभी भी प्रकट नहीं होता हूँ.
उनके लिए तो मैं अपनी अंतरंगाशक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूँ, 
अतः वे नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -24 +25 

> भगवान् रूपी जीव ईश्वरीय शक्ति का मालिक होता है, 
नकि इतना लाचार कि उसे रूप बदलने की ज़रुरत हो. 
सभी धर्म ग्रन्थ अपने ईजाद किए हुए भगवानों को न स्वीकारने वालों को अभद्र भाषा की शब्दावली प्रयोग में लाते हैं. 
थोडा स अगर आपके अन्दर स्वचितन है तो गई भैंस पानी में, 
आपको अज्ञानी अभिमानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाएगी. 
धार्मिक रहकर आप कभी भी सीमा रेखा को पार नहीं कर सकते. 
एक अँगरेज़ कथा कार की मशहूर कथा है कि 
एक ठग शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच चुका था. वह दुन्या के सबसे अद्भुत तथा कथित परिधान बनाता है जिसके पहनने वाले को सिर्फ सच्ची नज़रें देख सकती हैं, झूटों को वह नज़र नहीं आएगा. खबर राजा तक पहुंची तो वह राज महल पहुँच गया और राजा को अपना आविष्कार किया हुवा लिबास पहना दिया. किसकी मजाल थी कि वह खुद को अँधा साबित करे. सब ने ताली बजाई और राजा नंगा आसन पर बैठ कर शहर में घुमा दिया गया . 
केवल औरतें राजा को देख कर नज़रें नीची करके हैरत में पड़ जातीं, 
" हाय दय्या ! राजा नंगा ?? 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''क्या तुम सचमुच गवाही दोगे कि अल्लाह के साथ और कोई देव भी हैं? 
आप कह दीजिए कि मैं तो गवाही नहीं देता. 
आप कह दीजिए कि वह तो बस एक ही माबूद (पूज्य) है 
और बेशक मैं तुम्हारे शिर्क से बेज़ार हूँ"
'' जिन लोगों ने अपने आप को ज़ाया कर लिया वह ईमान न लाएंगे''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१६-२४) 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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