Monday 24 September 2018

Soorah rom 30 Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************
 सूरह रूम -30- سورتہ الروم 
क़िस्त-3 

"अल्लाह तअला तुमसे एक मज़मून-अजीब, तुम्हारे ही हालात में बयान फ़रमाते हैं, क्या तुम्हारे ग़ुलामों में कोई शख़्स तुम्हारा उस माल में जो हमने तुम को दिया है, शरीक है कि तुम और वह इस में बराबर के हों, जिनका तुम ऐसा ख़याल करते हो जैसा अपने आपस में ख़याल किया करते हो? हम इसी तरह  समझदार के लिए दलायल साफ़ साफ़ बयान करते हैं "
सूरह रूम - 30 (आयत 28)

क्या अल्लाह की इस ना मुकम्मल बकवास में कोई दम है, 
अलबत्ता ये अजीबो ग़रीब ज़रूर है.

"सो जिसको ख़ुदा गुम राह करे उसको कौन राह पर लावे"
सूरह रूम - 30 (आयत 29)

ये आयत क़ुरआन  में मुहम्मद का तकिया कलाम है जो बार बार आती है, 
नतीजतन मुसलमान इसे दोहराते रहते हैं, बग़ैर इस पर ग़ौर किए 
कि आयत कह क्या रही है, कि अल्लाह शैतान से भी बड़ा शैतान है 
कि सीधे सादे अपने बन्दों को ऐसा गुमराह करता है कि 
उसका राह पर आना मुमकिन ही नहीं है.

"जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर रखे है और बहुत से गिरोह हो गए हैं, हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ाँ है जो उसके पास है  - - -
क्या उनको मालूम है कि अल्लाह तअला जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी दे देता है जिसको चाहे कम देता है. इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं.- - -
अल्लाह ही वह है जिसने तुम को पैदा किया, फिर रिज़्क़ दिया फिर मौत देता है, फिर तुमको जिलाएगा. क्या तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है?- - -
ख़ुशकी और तरी में लोगों के आमाल के सबब बलाएँ फ़ैल रही हैं ताकि अल्लाह तअला उनके बअज़ आमाल का मज़ा उनको चखा दे ताकि वह बअज़ आएँ,
वाक़ई अल्लाह तअला काफ़िरों को पसंद नहीं करता
और हमने आप से पहले बहुत से पैग़म्बर इनके क़ौमों के पास भेजे और वह उनके पास दलायल लेकर आए सो हमने उन लोगों से इन्तेक़ाम लिया जो मुर्तक़ब जरायम हुए थे और अहले ईमान को ग़ालिब करना हमारा ज़िम्मा था.
सो आप मुर्दों को नहीं सुना सकते और बहरों को आवाज़ नहीं सुना सकते जब कि पीठ फेर कर चल दें, आप अंधों को उनकी बेराही से राह पर नहीं ला सकते, आप तो बस उनको सुना सकते हैं जो हमारी आयातों पर यक़ीन रखते हैं, बस वह मानते हैं.
सूरह रूम - 30 (आयत 30-57)

"और हमने इस क़ुरआन  में तरह  तरह  के उम्दा मज़ामीन बयान किए हैं. और अगर आप उनके पास कोई निशानी ले आवें तब भी ये काफ़िर जो हैं, यही कहेंगे कि तुम सब निरा अहले बातिल हो. जो लोग यक़ीन नहीं करते अल्लाह तअला उनके दिलों में यूँ ही मुहर लगा देता है. तो आप सब्र कीजिए, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, और ये बद यक़ीन लोग आपको बेबर्दाश्त न कर पाएँगे."
सूरह रूम - 30 (आयत 60-75)

सिडी सौदाइयों की तरह  क्या क्या बक रहे हो, अल्लाह मियां?
ये कौन लोग निरे अहले बातिल हैं? बद यक़ीन हैं? ये कौन लोग है 
जो आपको बेबर्दाश्त नहीं कर पा रहे है? 
ये बेबर्दाश्त क्या होता है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment