Wednesday 5 September 2018

SoorahQasas 28 -Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह क़सस -28- سورتہ القصص

क़िस्त-1

*इस्लाम इसके सिवा और कुछ भी नहीं कि यह एक अनपढ़ मुहम्मद की जिहालत भरी, 
ज़ालिमाना तहरीक है.
*क़ुरआन  सरापा बेहूदा और झूट का पुलिंदा है. 
इतिहास की बद तरीन रचना.
*मुहम्मद ने निहायत अय्यारी से क़ुरआन की रचना की है जिसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर रख कर ख़ुद अलग बैठे तमाश बीन बने राहते हैं.
*मुहम्मद एक कठमुल्ले थे जिसका सुबूत उनकी हदीसें हैं.
*क़ुरआन की हर आयत मुसलमानों की शह रग पर चिपकी हुई,  
जोंकों की तरह  उनका ख़ून चूस रही हैं.
*वह जब तक क़ुरआन से मुंह नहीं फेरता और उसके फ़रमान से बग़ावत नहीं करता, 
इस दुनिया में पसमान्दा क़ौम के शक्ल में रहेगा और दीगर क़ौमो का सेवक बना रहेगा.
*क़ुरआन  के फ़ायदे मक्कार ओलिमा के गढ़े हुए हैं जो महेज़ इसके सहारे गुज़ारा करते हैं 
और आली जनाब भी बने राहते हैं..

*मुसलमानों!
इन ओलिमा से उतनी ही दूरी क़ायम करो जितनी दूरी तुम सुवरों से रखते हो. यही तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं.
सूरह क़सस मुहम्मद ने किसी पढ़े लिखे संजीदा शख़्स से लिखवाई है. 
इसे पढ़ने के बाद आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 
हराम ज़ादे आलिमों को इस बात का ख़ूब पता है 
मगर उन्हों ने सच न बोलने की क़सम जो खा रक्खी  है. 
न सच बोलेंगे, न सच सुनेंगे और न सच महसूस करेंगे.

लीजिए क़ुरआनी खुराफ़ात हाज़िर है. - - -
"ता-सीन-मीम"
सूरह क़सस -28 - (आयत-1)

ये लफ़्ज़ मोह्मिल है अर्थात अर्थ हीन. इसका मतलब अल्लाह ही जानता है 
और हम जन साधारण क़ुरआनी अल्लाह को अब तक ख़ूब जान चुके हैं. 
ये मुहम्मद का फ़रेब है.
"ये किताब की आयतें हैं"
सूरह क़सस -28 - (आयत-2)

अल्लाह अपने ही फ़रमान में कहता है 
"ये किताब की आयतें हैं" 
जैसे किताब के बारे में कोई दूसरा बतला रहा हो. 
ये मुहम्मद ही है जो क़ुरआन में झूट बोल रहे हैं.

"हम आपको मूसा और फ़िरऔन का कुछ क़िस्सा पढ़ कर सुनाते हैं. 
उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं."
सूरह क़सस -28 (आयत-3)

अल्लाह को भी क़िस्सा पढ़ कर सुनाने की ज़रुरत है क्या?
उसने जो देखा है या जो भी उसे याद है, क्या उसको ज़बानी नहीं बतला सकता? 
पढ़ कर तो कोई दूसरा ही सुनाएगा. 
अल्लाह कहाँ पढ़ कर सुना रहा है ?
मुहम्मद अनपढ़ हैं, वह पढ़ कर सुना नहीं सकते, 
इस आयत की हुलिया कहाँ बनी? 
ऐसी ग़ैर फ़ितरी बात उम्मी मुहम्मद ही कह सकते है. 
क़ुरआन  के हर जुमले फ़ितरी सच्चाई से परे हैं. 
मुहम्मद के झूट को आलिमों ने परदे में रखकर मुसलमानों को गुमराह किया है.

"फ़िरऔन सर ज़मीन पर बहुत बढ़ चढ़ गया था और उसने वहां के बाशिंदों को मुख़्तलिफ़ क़िस्में कर रखा था कि उसने एक जमाअत का ज़ोर घटा रक्खा था. उनके बेटों को ज़िबह कराता था और उनकी औरतों को ज़िन्दा रहने देता था''
सूरह क़सस -28 (आयत-4)

सर ज़मीन, इस धरती के किसी मख़सूस हिस्से को कहा जाता है, 
अपनी ख़ासियत के साथ. मुहम्मद पढ़े लिखों की नक़्ल करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.
ये तौरेत की जग-जाहिर कहानी है जिसे उम्मियत में डूबे मुहम्मद अपने अल्लाह का कलाम बतला रहे हैं.

"फ़िरऔन के मज़ालिम बनी इस्राईल पर बढ़ते ही चले जा रहे थे. 
वह फ़िरऔन के बंधक जैसे हो गए थे. किसी नजूमी की पेशीन गोई के तहत कि फ़िरऔन को पामाल करने वाला कोई इस्राईली बच्चा पैदा होने वाला है, वह तमाम इस्राईली बच्चों को जन्म लेते ही मरवा दिया करता था और लड़कियों को ज़िन्दा रहने दिया करता था. 
इन्ही हालत में मूसा पैदा हुआ. इसकी बेक़रार माँ को अल्लाह ने हुक्म दिया कि इसे दूध पिलाओ और जासूसों का ख़तरा महसूस करो, 
फिर बग़ैर खौ़फ़ ओ ख़तर इसे दर्याए नील में डाल दो. 
जब ख़तरा महसूस हुवा तो उसकी माँ ने दिल पर पत्थर रख कर मूसा को संदूक में डाल कर, उसे दर्याए नील के हवाले कर दिया. 
दूसरे दिन माँ बेचैन हुई और बेटे की ख़ैर ओ ख़बर और सुराग़ लेने के लिए उसकी बहेन को आस पास भेजा,
''संदूक में बच्चे की ख़बर फ़िरौन के जासूसों को लग चुकी है. 
बच्चा उठा कर महेल के हवाले कर दिया गया है. 
बादशाह की मलका आसिया को बच्चा बहुत अच्छा लगा और इसने इसकी जान बख़्शुआ कर उसे अपना लिया. ''
"मूसा की बहेन ने अपनी माँ को आकर ये ख़ुश ख़बर दी. 
फ़िरौन  ने दूध पिलाइयों की बंदिश कर रखी थी, सो हुवा यूँ के मूसा की परवरिश के लिए ख़ादिम के तौर पर इसकी माँ ही मिली . 
इस तरह अल्लाह ने अपना वादा पूरा किया जो मूसा की माँ से किया था. इसकी आँखें मूसा को देखकर ठंडी हुईं. ग़रज़  ये कि मूसा की जान बची. शाही महेल की सहूलतों के साथ साथ उसे माँ की देख भाल मिली. 
अल्लाह ने मूसा को इल्म ओ हुनर से नवाज़ा था."
सूरह क़सस -28 (आयत-5-14)

''मूसा जब जवानी की दहलीज़ पर पहुँचा तो एक रोज़ शहर से निकल कर पास की बस्ती में घूमता हुवा चला गया, रात का वक़्त था सब सो रहे थे, इसने देखा कि दो आदमी झगड़ रहे हैं जिसमें से एक इस्राईली था उसके ही क़ौम का, जिसने इससे मदद मांगी और दूसरा मिसरी था. 
मूसा ने अपने हमक़ौम की ऐसी मदद की कि एक ही घूँसे में मिसरी का काम तमाम हो गया. वह वहाँ से चुप चाप खिसक लिया मगर बाद में इसको इस बात का बड़ा रंज रहा. 
दूसरे दिन मूसा ने देखा वह्यि इस्राईली बन्दा एक दूसरे मिसरी  से हाथा-पाई कर रहा था और मूसा को देख कर फिर मदद की गुहार लगाई.  
मूसा इसके पास पहुँचा तो, मगर घूँसा ताना इस्राईली पर. 
ये देखकर इस्राईली चीख़ पुकार करने लगा - - -"
''तू मुझे भी मार डालना चाहता है जैसे कल एक मिसरी को क़त्ल कर दिया था, तू अपनी ताक़त जमाना चाहता है, मेल मिलाप से नहीं  रहसकता? "
इस तरह  कल हुए क़त्ल के क़ातिल का पता लोगों को चल गया और इसकी ख़बर दरबार तक पहुँच गई, बस कि मूसा की शामत आ गई.
एक शख़्स  मूसा के पास आया और ख़बर दी कि भागो, मौत तुम्हारा पीछा कर रही है, दरबारी तुम्हें गिरफ़तार करने आ रहे हैं. मूसा सर पर पैर रख कर भागता है. 
भागते भागते वह मुदीन नाम की बस्ती तक पहुँच जाता है, 
गाँव के बाहर पेड़ के साए में बैठ कर वह अपनी सासें थामने लगता है. 
कुछ देर बाद देख़ता  है कुछ लोग एक कुँए पर लोगों को पानी पिला रहे हैं 
और वहीँ दो लड़कियां अपनी बकरियों को पानी पिला ने के लिए इंतज़ार में खड़ी हुई हैं, वह उठता है और कुँए से पानी खींच कर बकरियों की प्यास बुझा देता है.
थका मांदा मूसा एक दरख़्त के साए में बैठ जाता है और अल्लाह से दुआ मांगता है - -
''ऐ अल्लाह जो नेमत भी तू मुझे भेज दे मैं इसका तलबगार हूँ."
सूरह क़सस २८- (आयत-15-24)
*
''मूसा की दुआ पलक झपकते ही क़ुबूल होती है. उसने जब आँखें खोलीं तो देखा कि एक नाज़ुक अंदाम दोशीजा सामने से ख़िरामाँ ख़िरामाँ चली आ रही है. 
ये उनमें से ही एक थी जिनकी बकरियों को मूसा ने पानी पिलाया था. 
करीब आकर उसने कहा - - -
अजनबी तुम से मेरे वालिद बुज़ुर्गवार मिलना चाहते हैं, अगर तुम मेरे साथ चलो?
मूसा लड़की के हम राह उसके बाप की ख़िदमत में पेश होता है. 
और उसको अपना हमदर्द पाकर पूरी रूदाद सुनाता है और (बुड्ढा बाप) कहता है. अच्छा हुआ तुम ज़ालिमो से बच कर आ गए.
लड़की बाप को मशविरा देती है कि अब आप बूढ़े हो गए हैं, 
आपको एक ताक़त वर और अमानत दार इंसान की ज़रुरत है, 
बेहतर होगा कि आप मूसा को अपनी मुलाज़मत में ले लें
लड़की का बूढ़ा बाप उसकी बात मान जाता है और मूसा के सामने पेशकश रख़ता है कि वह इन दोनों बेटियों में से किसी एक के साथ शादी करले, 
इस शर्त के साथ कि वह दस साल तक घर जंवाई बन कर रहेगा, 
जिसे मूसा मान जाता है. वह तवील मुद्दत देखते ही देखते ख़त्म हो जाती है और वह वक़्त भी आ जाता है कि मूसा अपने बाल बच्चों को लेकर मिस्र के लिए कूच करता है ."

(बाक़ी अगली क़िस्त में)
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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