Friday, 7 January 2011

सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा



"अलम"सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१)मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर.

"ये नाज़िल की हुई किताब है. इस में कुछ शुबहा नहीं कि ये रब्बुल आलमीन की तरफ़ से है."अल्लाह बने हुए मुहम्मद का नज़ला है जो मुसलामानों को मरीज़ बनाए हुए है. रब्बुल आलमीन जो बे सर पैर की अहमकाना बातें करता है.

"वह आसमान से लेकर ज़मीन तक हर अम्र की तदबीर करता है. - - -अल्लाह तदबीर यानी जतन करता है ? पहले आप इसी कुरआनमें कह चुके हैं कि अल्लाह को जो काम करना होता है, वह बस "कुन" (हो जा) कहता है, बस वह "फयाकून" (हो गया) हो जाता है. " दरोग़ आमोज़ याद दाश्त न दारद" (झूठे की याद दाश्त कमज़ोर होती है). आप निहायत बे शर्मी से अपने कलाम में तज़ाद (विरोध भास्) रखते हैं.

''फिर हर अम्र उसी के हुज़ूर में पहुँच जाएगा - - ,-कहाँ स्टाक करता होगा इंसान के सारे कर्मों को?एक दिन, दिन में जिसकी मिकदार तुम्हारे शुमार के मुवाफिक एक हज़ार बरस होगी - - -
ये पुडिया छोड़े हुए एकहज़ार बरस से ज्यादह हो गए आपको, और मुसलमान उसे अभी तक खोल नहीं पाए . खुदा करे कि उनको अकले-सलीम आए. वह समझ सकें कि उनको इस्लाम बर्बाद किए हुए है.वही है जानने वाला पोशीदा और ज़ाहिर चीजों का, ज़बर दस्त रहमत वाला है- - -
मगर इतना नहीं जनता कि अंडे में पोशीदा जान होती है जिसे वह कहता है कि "बेजान से जानदार निकलता है .

उसने जो चीज़ बनाई खूब बनाई - - -जैसे तूफ़ान, ज़लज़ला, बीमारी आजारी, भूक, क़त्ल व् ग़ारत गरी, आप की पसंदीदा गिज़ा जिसका मज़ा जैशे-मुहम्मद, अल्क़ायदा, और तालिबान आज तक ले रहे हैं.और इंसान की पैदाइश मिटटी से शुरू की , फिर फिर इसकी नस्ल को खुलासा एख्तेलात(यौन सम्बन्ध) यानी एक बे कद्र पानी से बनाया - - -मुसलमानी से वह पानी निकलता है, जिससे मुसलमान होते हैं. बेश कीमती पानी (बीज) को बेक़द्र बना दिया जिसके दम पर आपने ११-११ बीवियां रखीं. और लौंडियाँ अलग से.फिर इसके अअज़ा दुरुत किए और इसमें अपनी रूह फूंकी - - -अगर अल्लाह अअज़ा दुरुत न करता तो ? मछलियों के अअज़ा दुरुत नहीं हैं तो भी व इकोरियम की ज़ीनत बनी हुई हैं.और तुम को कान आँख और दिल दी, तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो."
बस इतना ही आप जानते हैं? हाथ पाँव, मुंह, कान जैसे हज़ारो अअज़ा इंसानी जिस्म में मौजूद है. हाँ इंसानों को भेजा भी दिया है, शायद मुसलामानों को देना भूल गया.सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (३-९)


"और अगर देखें तो अजब हाल देखेंगे कि क़यामत के दिन काफ़िर लोग अपने रब के सामने सर झुकाए खड़े होंगे कि ऐ मेरे परवर दिगार! कि मेरी आँखें और कान खुल गए हैं कि हम को फिर ज़मीन पर भेज दीजिए कि हम नेक काम किया करें, हम को पूरा यक़ीन आ गया है- - -क़यामत का यकीन ही मुसलामानों का सत्या नास किए हुए है.और अगर हम को मंज़ूर होता तो हम हर शख्स को यही रास्ता अता फरमाते लेकिन मेरी ये बात मुहक्किक हो चुकी है कि हम जहन्नम को जिन्नात और इंसान दोनों से भर दूंगा."अल्लाह काफिरों को जवाब देगा कि उसे अपने फैसले में रद्दो-बदल मंज़ूर नहीं क्यूँकि इसकी तहकीक हो चुकी है?
गौर करें कि अल्लाह इसी एक जुमले में पहले जमा(बहु वचन) में है बाद में वाहिद (एक वचन)हो गया है. ये लग्ज़िशें कुरआन में आम है जो मुहम्मद के अन पढ़ होने की दलील है.सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१३)


"बस कि हमारी आयातों पर लोग ईमान लाते हैं कि उनको जब वह आयतें याद दिलाई जाती हैं तो वह सजदे में गिर पड़ते हैं और अपने रब की तस्बीह व् तमहीद करने लगते हैं और वह लोग तकब्बुर नहीं करते"सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (१५)मुहम्मद अल्लाह बनने की मुहिम में सरगर्म हैं कि चाहते हैं कि ज़माना उनकी बातों पर इतना यक़ीन करने लगे कि उनको सजदा करे. आज भी ऐसे महत्त्व कांक्षे देखे जा सकते हैं.

"और इस शख्स से ज़्यादा ज़ालिम कौन होगा जिसको इसकी रब की आयतें याद दिलाई जाएँ, फिर ये इस से मुँह फेरे. हम ऐसे मुजरिमों से बदला लेंगे."मुहम्मदी अल्लाह को ये बात ज़ुल्म लगती है कि कोई उसकी बात को न माने. काश कि इस पर कभी कोई मुहम्मद पर ज़ुल्म करता तो वह ज़ुल्म के मअनी समझ जाते.सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (२२)

"और वह लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो ये फैहला ( क़यामत) कब होगा ? आप फरमा दीजिए कि इस फैसले के दिन काफिरों का ईमान लाना नफ़ा बख्श न होगा.और इनको मोहलत भी न मिलेगी"
सूरह सजदा-३२- २१ वाँ पारा आयत (३०)
अय्यारी और झूट का पुलिंदा है ये कुरआन.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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