मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह एह्जाब - ३३- २१-वां पारा
(दूसरी क़िस्त)
कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दागदार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा, दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. कारी हजरात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अकीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें, फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.
ज़ैद - एक मजलूम का पसे-मंज़र - - - एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया, और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फरोख्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम खदीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
"खाई मीठ कि माई" ?
बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,
"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी. आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती, यहाँ तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब था,
ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये, एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा.
हवस से जब मुहम्मद फ़ारिग हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. तू था क्या? मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा, ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है, आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला.
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है, इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँ. दर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए. .
पढ़िए क़ुरआनी ग़लाज़त नाक बंद करके - - -
"नबी मोमनीन के साथ खुद उनकी नफ़स से भी ज़्यादः तअल्लुक़ रखते हैं और आप की बीवियाँ (नबी की बीवियाँ) उनकी (मोमनीन की)माएँ हैं."सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (६)मुसलामानों पर जज़बाती मक्खन लगा कर फ़रमाते हैं कि उनकी तमाम बीवियां मुसलामानों की माँ हैं.
मुहम्मद अपनी बीवियों और मोमनीन से खतरा मेहसूस करते हैं कि कहीं कुछ का कुछ न हो जाए. कहीं कोई बीवी ये न एलान करदे कि मेरा निकाह अर्श पर फलाँ मोमिन से हुवा था जैसे आपका ज़ैनब के साथ हुआ है. अल्लाह ने निकाह पढाया और जिब्रील ने गवाही दी.
जेहादों में मोमनीन को गाजर मूली की तरह कटवाने वाले ज़ालिम अल्लाह के रसूल मोमनीन को अपने नफ़स से भी करीब रखने का ढोंग कर रहे हैं.
बद किरदार मुहम्मद अपनी बीवियों के लिए बाकिरदार रहने की सीख देते है,
ज़ैनब की वजेह से घरेलू माहौल ख़राब हो गया था, सूरत यहाँ तक पहुँच गई थी कि मुहम्मद तमाम बीवियों को तलाक देने पर उतार आए थे. दोहरे अज़ाब और दोहरे सवाब के लिए कहते हैं कि ''ये बात अल्लाह को आसान है." क्यूं कि अल्लाह का अख्तियार तो वह खुद रखते थे.
ज़ैनब की वजेह से घरेलू माहौल ख़राब हो गया था, सूरत यहाँ तक पहुँच गई थी कि मुहम्मद तमाम बीवियों को तलाक देने पर उतार आए थे. दोहरे अज़ाब और दोहरे सवाब के लिए कहते हैं कि ''ये बात अल्लाह को आसान है." क्यूं कि अल्लाह का अख्तियार तो वह खुद रखते थे.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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