मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा -२३ (2)
अब आइए क़ुरआनी अल्लाह के रागमाले पर - - -
"और इन से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक साथी था. कहा करता था कि क्या तू बअस ( अल्लाह की ओर से नियुक्तियाँ) के मुअतकिदीन (आस्थावान) में से है? क्या जब हम मर जाएँगे तो, मिट्टियाँ और हड्डियाँ हो जाएगे? तो क्या हम जज़ा, सज़ा दिए जाएँगे? इरशाद होगा कि क्या तुम झाँक कर देखना चाहोगे, तो वह शख्स झाँकेगा तो वह उसको बीच जहन्नम में देखेगा. कहेगा अल्लाह की क़सम, तू मुझे तबाह ही करने वाला था"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(५१-५६)
कुरआन की ये बेहूदा कसरत मुसलमानों को क्या दे सकती हैं जिसके लिए ये मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं. मुहम्मदी अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम है? कोई दुरुस्तगी है?
"और इन से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक साथी था. कहा करता था कि क्या तू बअस ( अल्लाह की ओर से नियुक्तियाँ) के मुअतकिदीन (आस्थावान) में से है? क्या जब हम मर जाएँगे तो, मिट्टियाँ और हड्डियाँ हो जाएगे? तो क्या हम जज़ा, सज़ा दिए जाएँगे? इरशाद होगा कि क्या तुम झाँक कर देखना चाहोगे, तो वह शख्स झाँकेगा तो वह उसको बीच जहन्नम में देखेगा. कहेगा अल्लाह की क़सम, तू मुझे तबाह ही करने वाला था"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(५१-५६)
कुरआन की ये बेहूदा कसरत मुसलमानों को क्या दे सकती हैं जिसके लिए ये मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं. मुहम्मदी अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम है? कोई दुरुस्तगी है?
नफ़रत होती है, इन क़ुरआनी आयातों को पढ़ कर, क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं? तो
ऐसे अल्लाह को झाड़ू मारिए जो अपने ही बन्दों को साथ ऐसा सुलूक करता है.
ऐसे अल्लाह को झाड़ू मारिए जो अपने ही बन्दों को साथ ऐसा सुलूक करता है.
"बेशक यूनुस भी पैगम्बरों में से थे. जब वह भाग कर भरी हुई कश्ती के पास पहुँचे तो वह शरीके क़ुरा न हुए, तो यहीं वह मुलजिम में ठहरे. फिर इन्हें मछली ने साबित निगल लिया और ये अपने आपको मलामत कर रहे थे. गर वह तस्बीह करने वाले न होते तो क़यामत तक मछली के पेट में पड़े रहते. और हम ने उन पर एक बेलदार दरख़्त भी उगा दिया और हम ने उनको एक लाख से भी ज़्यादः आदमियों पर पैगम्बर बना कर भेजा"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१३९-१४७)यूनुस की कहानी भी तौरेत से ली गई है. वहाँ इनको तीन दिनों तक मगर मछ के पेट से जिंदा निकला जाता है. यहाँ मछली के पेट में क़यामत तक रहने की बात है, मुहम्मद उनके जिस्म पर बेलदार झाड़ उगा देते हैं, ये कमाल की पुडिया है. मज़हबी किताबों में सभी कुछ कल्पित होता है.
मुसलमान कहते हैं कि उनके नबी को लडकियां पसँद थीं. यहाँ अल्लाह की तरफ़ इशारा बतला रहा है कि मुहम्मद लड़का पसँद करते थे जिस से वह महरूम रहे.
"और हमारे खास बन्दे यानी पैगम्बरों के लिए पहले ही ये मुक़र्रर हो चुका है कि बेशक वही ग़ालिब किए जाएँगे. और हमारा ही लश्कर ग़ालिब रहता है, तो आप थोड़े ज़माने तक सब्र करें."सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१७३-७४)
डंडे लाठी और तलवार के ज़ोर पर कुछ दिनों के लिए ग़ालिब ज़रूर हो गए थे मगर उसके बाद इतिहास बतलाता है कि हर जगह मगलूब हो. अपना मुल्क रखते हुए भी दूसरे मुल्कों के रहम करम पर हो.
कलामे दीगराँ - - -'दुन्या का खुश नसीब तरीन इंसान वह है जो किसी का ऋणी न हो"
'महा भारत'
(हिदू धर्म)इसे कहते हैं कलामे पाक
'महा भारत'
(हिदू धर्म)इसे कहते हैं कलामे पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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