Tuesday 25 January 2011

सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा -२३ (2)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा -२३ (2)
अब आइए क़ुरआनी अल्लाह के रागमाले पर - - -  
"और इन से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक साथी था. कहा करता था कि क्या तू बअस ( अल्लाह की ओर से नियुक्तियाँ) के मुअतकिदीन (आस्थावान) में से है? क्या जब हम मर जाएँगे तो, मिट्टियाँ और हड्डियाँ हो जाएगे? तो क्या हम जज़ा, सज़ा दिए जाएँगे? इरशाद होगा कि क्या तुम झाँक कर देखना चाहोगे, तो वह शख्स झाँकेगा तो वह उसको बीच जहन्नम में देखेगा. कहेगा अल्लाह की क़सम, तू मुझे तबाह ही करने वाला था"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(५१-५६)
कुरआन की ये बेहूदा कसरत मुसलमानों को क्या दे सकती हैं जिसके लिए ये मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं. मुहम्मदी अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम है? कोई दुरुस्तगी है?


"हमने उस दरख़्त को ज़ालिमों के लिए मूजिबे इम्तेहान बनाया. वह एक दरख़्त है ज़कूम, जो दोज़ख के गढ़ों में से निकलता है. इसके फल ऐसे हैं जैसे साँप के फन, तो दोज़खी इस को खाएँगे. और इसी से अपना पेट भरेंगे. फिर इन्हें खौलता हुवा पानी, पीप मिला कर पिलाया जायगा."सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(६३-६७)
नफ़रत होती है, इन क़ुरआनी आयातों को पढ़ कर, क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं? तो
ऐसे अल्लाह को झाड़ू मारिए जो अपने ही बन्दों को साथ ऐसा सुलूक करता है.
"बेशक यूनुस भी पैगम्बरों में से थे. जब वह भाग कर भरी हुई कश्ती के पास पहुँचे तो वह शरीके क़ुरा न हुए, तो यहीं वह मुलजिम में ठहरे. फिर इन्हें मछली ने साबित निगल लिया और ये अपने आपको मलामत कर रहे थे. गर वह तस्बीह करने वाले न होते तो क़यामत तक मछली के पेट में पड़े रहते. और हम ने उन पर एक बेलदार दरख़्त भी उगा दिया और हम ने उनको एक लाख से भी ज़्यादः आदमियों पर पैगम्बर बना कर भेजा"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१३९-१४७)यूनुस की कहानी भी तौरेत से ली गई है. वहाँ इनको तीन दिनों तक मगर मछ के पेट से जिंदा निकला जाता है. यहाँ मछली के पेट में क़यामत तक रहने की बात है, मुहम्मद उनके जिस्म पर बेलदार झाड़ उगा देते हैं, ये कमाल की पुडिया है. मज़हबी किताबों में सभी कुछ कल्पित होता है.


"और हाँ! हमने फरिशों को क्या औरत बनाया है? और वह देख रहे थे, खूब सुन रहे थे कि वह अपनी सुखन तराशी से कहते हैं कि अल्लाह साहिबे औलाद है और वह यक़ीनन झूठे है.क्या अल्लाह ने बेटों के मुकाबिले में बेटियाँ ज़्यादः पसंद कीं? तुम को क्या हो गया, तुम कैसा हुक्म लगाते हो?"सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१५४)ईसाइयों पर इलज़ाम है कि वह फरिश्तों को जिन्सियात से मुबर्रा, अल्लाह की मखलूक मानते है, मुहम्मद इसे औरत होना समझते हैं. वह कहते हैं कि कोई मौजूद था, देख और सुन रहा था कि औरत साबित करे. जैसे इनको सब के सामने अल्लाह ने पैगम्बर मुक़र्रर किया हो, जैसा कि अजानों में एलान होता है ''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह"
मुसलमान कहते हैं कि उनके नबी को लडकियां पसँद थीं. यहाँ अल्लाह की तरफ़ इशारा बतला रहा है कि मुहम्मद लड़का पसँद करते थे जिस से वह महरूम रहे.


"और उन लोगों ने अल्लाह में और जिन्नात में रिश्ते दारियां क़रार दिए है. और जिन्नात हैं, खुद उनका अक़ीदा है कि वह गिरफ्तार होंगे. अल्लाह इन बातों से पाक है.जो ये बयान करते हैं.सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१६०)मुहम्मद की ये बेहूदः बकवास कोई सम्त नहीं देती कि अपने मज़हब को मानते हैं या जिन्नातों के अक़ीदे को. कौन कहता है कि जिन्नात अल्लाह के रिश्तेदार हैं. ?

"और हमारे खास बन्दे यानी पैगम्बरों के लिए पहले ही ये मुक़र्रर हो चुका है कि बेशक वही ग़ालिब किए जाएँगे. और हमारा ही लश्कर ग़ालिब रहता है, तो आप थोड़े ज़माने तक सब्र करें."सूरह सफ्फ़ात -३७ पारा २३ आयत(१७३-७४)
डंडे लाठी और तलवार के ज़ोर पर कुछ दिनों के लिए ग़ालिब ज़रूर हो गए थे मगर उसके बाद इतिहास बतलाता है कि हर जगह मगलूब हो. अपना मुल्क रखते हुए भी दूसरे मुल्कों के रहम करम पर हो.
कलामे दीगराँ - - -'दुन्या का खुश नसीब तरीन इंसान वह है जो किसी का ऋणी न हो"
'महा भारत'
(हिदू धर्म)
इसे कहते हैं कलामे पाक


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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