Friday 7 January 2011

सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां

मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा

कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दाग़दार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा, दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. कारी हजरात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें, फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.
ज़ैद - एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फरोख्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम खदीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुँचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
"खाई मीठ कि माई" ?बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,
"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"ज़ैद अभी नाबालिग ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि आमिना की मौत के बाद बचपन से ही वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, यहाँ तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब था, ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये,
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा. हवस से जब मुहहम्मद फ़ारिग हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. तू था क्या? मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह कला.
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,
इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँ. दर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए.


देखिए कि इस घिनावने आमाल के तहत, "कुरआने" नापाक कैसे कैसे गिरगिट के रंग बदलता है - - -"ऐ नबी अल्लाह से डरते रहिए और काफ़िरों और मुनाफ़िकों का कहना न मानिए. बेशक अल्लाह बड़ी इल्म वाला और हिकमत वाला है,"सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (१)बने हुए नबी लोगों को अल्लाह से डराते हैं क्यूँकि यही हवाई अल्लाह उनके बचने का ढाल है. मुसलमान हुए लोगों को भड़काते हैं कि वह उनके मुखालिफों से भिड़े रहें और ये समाज और खुद अपने घर में पापड़ बेलते रहें.

"आल्लाह ने किसी के सीने में दो दिल नहीं बनाए, और तुम्हारी इन बीवियों से जिनसे तुम इज़हार कर लेते हो, तुम्हारी माँ नहीं बना दिया और तुम्हारे मुँह बोले बेटे को सच मुच का तुम्हारा बेटा नहीं बना दिया. ये सिर्फ तुम्हारे मुँह से कहने की बात है. और अल्लाह हक़ बात फ़रमाता है और वही सीधा रास्ता बतलाता है,"सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (४)इस वाकिए की आग मुहम्मद के घर तक पहुँची थी. कई बीवियाँ थीं, कई घर थे, बीवियों से आपस में तल्ख़ कलामी हुई थी. इन्हें रसूल धमका रहे हैं. जिस बच्चे को भरी महफ़िल में अल्लाह को गवाह बना कर अपना बेटा बनाया था, उसे अब ठुकरा रहे हैं. मुंह से निकली हुई बात की कोई अहमियत ही न हुई, जैसे बात पाख़ाने के मुक़ाम से निकली हो. उम्मत को ज़िना की सज़ा सौ कोड़े और अपने ज़िना पर अल्लाह का सहारा लेते हैं.
दर अस्ल मुहम्मद ताक़तवर गुंडे बन चुके थे, लोग उनसे इतना डरते थे कि हाथ जोड़ कर उनको "परवर दिगार" कहते और इल्तेजा करते. ये बातें कुरआन में अयाँ है. आगे देखिगा.

"तुम इनको उनके बापों की तरफ मंसूब किया करो. ये अल्लाह के नज़दीक रास्ती की बात है और अगर तुम उनके बापों को न जानते हो तो वह तुम्हारे दीन के भाई हैं और तुम्हारे दोस्त हैं और तुम को इसमें कुछ भूल चूक हो जाए तो इस पर तुम को कोई गुनाह नहीं , लेकिन हाँ! जो दिल से इरादा करके करो और अल्लाह तअला ग़फूरुर रहीम है."सूरह अहज़ाब - ३३- २१-वां पारा आयत (५)इस आयत को दस बार पढ़ कर समझने की कोशिश करें कि क्या मुहम्मद खुद इस में अल्लाह नज़र नहीं आते?
बने हुए अल्लाह के रसूल अपने आप को समझाने की बजाए अपनी उम्मत को समझाते हैं कि इस तरह का बोला रिश्ता कोई अहमियत नहीं रखता. शख्स का गर बाप है तो उसको उसी के बाप के नाम से मंसूब करो. किसी और के बाप से नहीं. मुहम्मद जो गलती कर चुके हैं उसके लिए उनके पास उनका गुलाम "ग़फूरुर रहीम" है. इस तरह ये जाबिर शख्स सदियों से चले आ रहे इंसानी रिश्तों को तार तार कर रहा है.
औलादे नारीना से महरूम मुहम्मद ने ज़ैद जैसा क़ीमती फ़रमा बरदार औलाद को खो दिया. जज़बाती ज़ैद जिसने खदीजा और मुहम्मद को अपने माँ बाप पर तरजीह दी, सीधा इतना की मुहम्मद के कहने पर उसने मुहम्मद की हब्शी बाँदी से निकाह कर लिया, जो की उम्र दराज़ सियाह फ़ाम थी.
मुसलामानों! ऐसे शख्स को मोह्सिने इंसानियत कहते हो, ये तुम्हारी बद किस्मती है.


काश कि ईसा मुहम्मद की उम्र पाते - - -


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


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