मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह यासीन -३६ परा - २२ (1)
कुरआन की ये चर्चित सूरह है. इस की चर्चा ये है कि ये बहुत ही बा बरकत आयतों से भरपूर है. मुसलमान इसे कागज़ पर मुल्ला से लिखवा के पानी में घोल कर पीते हैं. इस की अब्जद लिखवा कर गले में तावीज़ बना कर पहनते हैं. इस के तुगरा दीवार पर लगा कर घरों को आवेज़ां करते हैं.
मैं एक हार्ट स्पेशलिस्ट के पास खुद को दिखलाने गया, उन्हों ने मुझे नाम से मुस्लिम जान कर दीवार पर सजी सूरह यासीन को बुदबुदाने के बाद मेरा मुआएना किया. वह मुलिम अवाम का जज़्बाती इस्तेसाल करते हैं. ऐसे ही एक हिन्दू डाक्टर के पास गया तो मुझे देखने से पहले हाथों को जोड़ कर ॐ नमस् शिवाय का जाप किया. ये हिदू और मुसलमान दोनें डाक्टर पक्के ठग हैं. अवाम बेदार नहीं हुई कि समझे कि मेडिकल साइंस का आस्थाओं से क्या वास्ता है.
अब चलिए देखें कि ये सूरह कितनी बा बरकत है - - -
"यासीन"मोह्मिल (अर्थ हीन) लफ्ज़ है, अल्लाह का रस्मी छू मंतर समझें.
"क़सम है कुरआन ए बा हिकमत की! कि बेशक आप मिन जुमला पैगम्बर के हैं."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (२-३)उम्मी मुहम्मद जब कोई नया लफ्ज़ या लफ्ज़ी तरकीब को सुनते है तो उसे दोहराया करते हैं, जैसे कि अक्सर जाहिलों में होता है कि वह लफ्ज़ बोलने के किए बोलते हैं. यहाँ मुहम्मद ने "मिन जुमला" को जाना है जो कि कुरआन में कई बार दोहराने के लिए इसे बोले हैं. 'मिन जुमला' कारो बारी अल्फाज़ हैं जिसके मतलब होते हैं 'टोटली' यानी 'कुल जोड़'. तर्जुमान इसमें मंतिक भिड़ाते रहते हैं.
मुहम्मद मुतलक जाहिल थे और ये है जिहालत की अलामत. कहते हैं "आप मिन जुमला पैगम्बर के हैं."
इसी ज़माने की एक हदीस है कि इस उम्मी ने कहा - - -
मुहम्मद मुतलक जाहिल थे और ये है जिहालत की अलामत. कहते हैं "आप मिन जुमला पैगम्बर के हैं."
इसी ज़माने की एक हदीस है कि इस उम्मी ने कहा - - -
" काफिरों की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते है, शब खून में अगर ये मारे जाएँ तो कोई अज़ाब नहीं.यहाँ से अल्लाह को कसमें खाने का दौरा पड़ेगा तो आप देखेंगे कि वह किन किन चीजों की कसमें खाता है. वह कसमों की किस्में भी बतलाएगा, जिससे मुसलमान फैज़याब हुवा करते हैं. वह कुरआन ए बा हिक्मत की क़सम खा रहा है जिसमें कोई हिकमत ही नहीं है. खुद अपनी तारीफ कर रहा है?
कितने भोले भाले जीव हैं ये मुसलमान कि मुआमले को कुछ समझते ही नहीं.
कितने भोले भाले जीव हैं ये मुसलमान कि मुआमले को कुछ समझते ही नहीं.
उम्मी का तखय्युल मुलाहिज़ा हो, जब ठोडियाँ जुंबिश न कर सकें तो सर कैसे उलरेन्गे?
दीवाना जो मुँह में आता है, बक देता है.
मुझसे रहा न गया उनको टोका कि पुस्तक में चाहे कोकशास्त्र ही क्यूं न हो. वह एकदम से सटपटा गईं और मुँह जिलाने वाली बातें करने लगीं.
यहाँ पर मुहम्मदी अल्लाह आगे पीछे आड़ लगा रहा है कि सोचने समझने का मौक़ा ही नहीं रह जाता कि उसके क़ुरआन में कोकशास्त्र है या इससे घटिया बातें भी, बस डर के उसको तस्लीम कर ले.
मुहम्मद का मुशी बना अल्लाह दुन्या के अरबों खरबों इंसानों का बही खाता रखता है, ज़रा उम्मी की भाषा पर गौर करें - - -"जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं "अल्लाह के सहायक ओलिमा, ऐसी बातों की रफ़ू गरी करते हैं.
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून.
वह इस जाहिलाना मन्तिक़ को मुसलामानों में फैलाए हुए हैं.
(पारसी धर्म गुरू)
इसे कहते हैं कलामे पाक -
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
इसे कहते हैं कलामे पाक -
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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