मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा
इस्लाम की इब्तेदा ये बतलाती है कि मुहम्मद का ख़ाब क़बीला ए क़ुरैश की अजमत क़ायम करना और अरब की दुन्या तक ही था, इस कामयाबी के बाद अजमी (गैर अरब) दुन्या इसके लूट का मैदान बनी, साथ साथ ज़ेहनी गुलामी के लिए तैयार इंसानी फसल भी. मुहम्मद अपनी जाबिराना आरज़ू के तहत बयक वक़्त दर पर्दा अल्लाह बन गए, मगर बजाहिर उसके रसूल खुद को कायम किया. वह एक ही वक़्त में रूहानी पेशवा, मुमालिक के रहनुमा और बेताज बादशाह हुए, इतना ही नहीं, एक डिक्टेटर भी थे, बात अगर जिन्स की चले तो राजा इन्दर साबित होते हैं. कमाल ये कि मुतलक़ जाहिल, एक कबीलाई फर्द. हठ धर्मी को ओढ़े-बिछाए, जालिमाना रूप धारे, जो चाहा अवाम से मनवाया, इसकी गवाही ये कुर आन और उसकी हदीसें हैं. मुहम्मद की नकल करते हुए हजारों बाबुक खुर्मी और अहमदी हुए मगर कोई मुहम्मद की गर्द भी न छू सका.
अब आइए चलते है कलामे नापाक की तरफ - - -
ऐसी क़ुरआनी आयतों को उठा कर कूड़ेदान के हवाले करो
जो कहती हों कि- - -"ए पहाड़ो! दाऊद के साथ तस्बीह किया करो और इत्तेला देती हों कि सुलेमान अलैहिस सलाम के लिए हवा को मुसख्खिर (मुग्ध करने वाला) कर दिया था "ये सुब्ह व् शाम की मंजिलों का पता मिलता है अरब के गँवारों के इतिहास में, आज हिंद में ये बातें दोहराई जा रही हैं .
"सुबः की मंजिल एक एक महीने भर की हुई और इसकी शाम की मंजिल एक महीने भर की हुई."
"हमने इनके लिए ताँबे का चश्मा बहा दिया "तांबा तो खालिस होता ही नहीं, ये लोहे और पीतल का मुरक्कब हुआ करता है, रसूल को इसक भी इल्म नहींकि धातुओं का चश्मा नहीं होता. जिहालत कुछ भी गा सकती है. मगर तुम तो तालीम याफ़्ता हो चुके हो, फिर तुम जिहालत को क्यूं गा रहे हो?"जिन्नातों में बअज़े ऐसे थे जो इनके आगे काम करते थे,"अगर ये मुमकिन होता तो सुलेमान जंगें करके हज़ारों यहूदी जानें न कुर्बान करता और जिन्नातों को इस काम पर लगा देता.जिन्नात कोई मखलूक नहीं होती है, अपनी औलादों को समझाओ.."जो हमारे हुक्म की सरताबी करेगा हम उसको दोज़ख का अज़ाब चखा देंगे"अल्लाह कैसे गुंडों जैसी बातें करता है, ये अल्लाह की नहीं गुन्डे मुहम्मद की खसलत बोल रही है."बड़ी बड़ी इमारतें, मूरतें और लगन जिससे हौज़ और देगें एक जगह जमी रहें."ये मुहम्मद कालीन वक़्त की ज़रुरत थी, अल्लाह को मुस्तकबिल की कोई खबर नहीं कि आने वाले ज़माने में पानी गीज़र से गर्म होगा और वह भी चलता फिरता हवा करेगा."मेरे बन्दों में शुक्र गुज़ार कम ही हैं."कैसे अल्लाह हैं आप कि बन्दों को कंट्रोल नहीं कर पा रहे? और पहाड़ों से तस्बीह कराने का दावा करते हैं.कलाम ए दीगराँपारसी पयम्बर ज़र्थुर्ष्ट कहता है - - -"ज़मीन, पानी और पौदों के ख़ालिक़ !
ए पाक तरीन खुदा!
मुझे लाफ़ानियत और तकमील अता फ़रमा, वह जो दो बढती हुई ताक़तें हैं, मुझे मुहब्बत से ही मिल सकती हैं.
ए खुदा मैं यकीनी तौर पर तेरे गुन गाऊँगा कि मुसीबतें ज़लीलों के इंतज़ार में हैं,
और खुशियाँ नेकी में ग़र्क़ बन्दों के इंतज़ार में"
ये हो सकती है अल्लाह की वह्यी या कलाम ए पाक.
"हमने इनके लिए ताँबे का चश्मा बहा दिया "तांबा तो खालिस होता ही नहीं, ये लोहे और पीतल का मुरक्कब हुआ करता है, रसूल को इसक भी इल्म नहींकि धातुओं का चश्मा नहीं होता. जिहालत कुछ भी गा सकती है. मगर तुम तो तालीम याफ़्ता हो चुके हो, फिर तुम जिहालत को क्यूं गा रहे हो?"जिन्नातों में बअज़े ऐसे थे जो इनके आगे काम करते थे,"अगर ये मुमकिन होता तो सुलेमान जंगें करके हज़ारों यहूदी जानें न कुर्बान करता और जिन्नातों को इस काम पर लगा देता.जिन्नात कोई मखलूक नहीं होती है, अपनी औलादों को समझाओ.."जो हमारे हुक्म की सरताबी करेगा हम उसको दोज़ख का अज़ाब चखा देंगे"अल्लाह कैसे गुंडों जैसी बातें करता है, ये अल्लाह की नहीं गुन्डे मुहम्मद की खसलत बोल रही है."बड़ी बड़ी इमारतें, मूरतें और लगन जिससे हौज़ और देगें एक जगह जमी रहें."ये मुहम्मद कालीन वक़्त की ज़रुरत थी, अल्लाह को मुस्तकबिल की कोई खबर नहीं कि आने वाले ज़माने में पानी गीज़र से गर्म होगा और वह भी चलता फिरता हवा करेगा."मेरे बन्दों में शुक्र गुज़ार कम ही हैं."कैसे अल्लाह हैं आप कि बन्दों को कंट्रोल नहीं कर पा रहे? और पहाड़ों से तस्बीह कराने का दावा करते हैं.कलाम ए दीगराँपारसी पयम्बर ज़र्थुर्ष्ट कहता है - - -"ज़मीन, पानी और पौदों के ख़ालिक़ !
ए पाक तरीन खुदा!
मुझे लाफ़ानियत और तकमील अता फ़रमा, वह जो दो बढती हुई ताक़तें हैं, मुझे मुहब्बत से ही मिल सकती हैं.
ए खुदा मैं यकीनी तौर पर तेरे गुन गाऊँगा कि मुसीबतें ज़लीलों के इंतज़ार में हैं,
और खुशियाँ नेकी में ग़र्क़ बन्दों के इंतज़ार में"
ये हो सकती है अल्लाह की वह्यी या कलाम ए पाक.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
वाह, साहब,
ReplyDeleteअच्छी हक़ीकत बयान की है।