Friday 14 January 2011

सूरह अहज़ाब - ३३- २२-वां

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह एह्जाब - ३३- २१-वां पारा


(चौथी क़िस्त)



कुरआन की बहुत अहेम सूरह है जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. यह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दागदार किया है, इसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा, दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. कारी हजरात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अकीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें, फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को समझें.
ज़ैद - एक मजलूम का पसे-मंज़र - - -एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद को बिन हरसा बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फरोख्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम खदीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा. मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
"खाई मीठ कि माई" ?
बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई, मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा था,
"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"ज़ैद अभी नाबालिग ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हब्शन कनीज़ ऐमन से कर दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती, यहाँ तक कि वह सिने बलूगत में आ गए. पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला खदीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह खदीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल बन चुकी थी. ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूगत को भी न पहुँचा था, अन्दर की बात है कि मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दी. खानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक गुलाम के साथ खानदान कुरैश की शादी ? मुहम्मद जवाब था, ज़ैद गुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये,
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाखिल हुवा, देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप उसकी बीवी के साथ मुँह काला कर रहा है. उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरक गई, घर से बाहर निकला तो घर का मुँह न देखा. हवस से जब मुहम्मद फ़ारिग हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. तू था क्या? मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैगम्बर का बेटा, हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैगम्बरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली. औरतें तआना ज़न हुईं कि बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह कला.
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, निकाह अल्लाह ने पढाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया. उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घिर्णित वाकिए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,
इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के खसम कहता हूँ. दर अस्ल इन बेज़मीरों को अपनी माँ का खसम ही नहीं बल्कि अपनी बहेन और बेटियों के भी खसम कहना चाहिए. .

  अब पढ़ें अय्यार मुहम्मद की गलीज़ आयतें - - -


"ऐ नबी! हमने आप के लिए ये बीवियाँ जिनको आप इनके महेर दे चुके हैं हलाल की हैं और वह औरतें भी जो तुम्हारी ममलूका हैं, जो ग़नीमत में अल्लाह ने आपको दिलवाई हैं. और आप के चचा की बेटियाँ और आपकी फूफी की बेटियाँ और आपके मामूं की बेटियाँ और आप कि खाला की बेटियाँ जिन्हों ने आपके साथ हिजरत की हों और उस मुसलमान औरत को भी जो बगैर एवज अपने आपको पैगम्बर को देदे, बशर्ते ये कि पैगम्बर इसे क़ुबूल कर लें, हलाह कीं. ये सब आप पर मखसूस किए गए हैं न कि दीगर मोमनीन पर. हमको वह एहकाम मालूम हैं जो हम ने उन पर, उनकी बीवियों पर और उनकी लोंडियों के बारे में मुक़र्रर किए हैं ताकि आप पर किसी क़िस्म की तंगी न हो. और अल्लाह तअला ग़फूरुर रहीम है. इनमें से आप जब चाहें और जिसको चाहें अपने से दूर या नज़दीक रख सकते है - - - इनके अलावा और औरतें आप पर हलाल नहीं."सूरह अहज़ाब - ३३- २२-वां पारा आयत (५०-५२)शुक्र है कि अय्यार नबी की कोई सगी बहन या भाई नहीं थे वर्ना उसका अल्लाह उसकी बहन बेटियों को भी उसके लिए हलाल कर देता, मुसलमानों भी को कोई तन्गी न रह जाती. ये कौम इस बेहूदगी और बद तमीज़ी को अपनी नमाज़ों में दोहराती हैं. इसकी आँखें तो कोई इसके सर पे हथौड़ा मर कर ही खोल सकता है. ईसाइयत ने मुहम्मद को " रंगीला रसूल" का ख़िताब दिया है, देना चाहिए मुतफ़न्नी रसूल का दर्जा.
मैं मुसलमानों को ज़ेहनी झटका नहीं देना चाहता क्यूँकि मुझे उनसे लगाव है, मगर उनका इस्लाम से बगावत की कोशिश करना चाहता हूँ. इसी में उनकी बका है और उनकी आबरू भी.मेरा तजज़िया है कि मुहम्मद नाम के आदमी में एक खूँ खार हैवानियत पेवाश्त थी जो इंसानियत की हवा से सर सब्ज़ होती हुई इंसानी तहजीब और इंसानों का सबसे बड़ा दुश्मन था. इंसानियत और तमद्दुन के इर्तेकाई साँचे में ढलते हुए इंसानों को वह अपने क़दमों तले गिडगिडाते हुए देखना चाहता था. हैरत है उसके नंगे-नाच की तस्वीर देखते हुए कोई दानिश्वर मुसलमान अपना मुँह नहीं खोलता. यही है मुसलमानों की पसपाई की वजेह.एक रसूल का दीवाना, अहमक लिखता है " मुसलामानों को अपने रसूल से इतनी अक़ीदत होनी चाहिए कि आप के जिस्म से (रसूल के जिस्म से) ख़ारिज हुए खून और पेशाब को पी जाने में भी आर नहीं होना चाहिए"ऐसे दीवानों को रसूल वंशजों का मल-मूत्र खिलाना पिलाना चाहिए.

"ऐ ईमान वालो! नबी के घर में बिना बुलाए हुए मत जाया करो खाने पर बुलाया जाए तो बैठ कर मुन्तजिर रहा करो बल्कि खाना तैयार हो जाए तो आया करो, बातों में जी लगा कर मत बैठे रहा करो, इस बात से नबी को नागवारी होती है, सो तुम्हारा लिहाज़ करते हैं. अल्लाह साफ़ साफ़ बात करने में कोई लिहाज़ नहीं करता और जब तुम इन से कोई चीज़ माँगो तो परदे के बाहर से. ये बात तुम्हारे और उनके दिलों को पाक रखने का एक उम्दा ज़रीआ है. तुमको जायज़ नहीं कि रसूल को कुलफ़त पहुँचाओ, और न ये जायज़ है नहीं कि तुम इनके बाद इनसे शादी करो. ये अल्लाह के नज़दीक बहुत भारी बात है."
"पैगम्बर की बीवियों पर अपने बापों, भाइयों, बेटों, भतीजों, भाँजों, औरतों और न लौडियों पर गुनाह है.
बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को ईजः देते हैं, इन पर दुन्या और आखरत में लानत करता है. इनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब तैयार रखा है, और जो लोग ईमान रखने वाले मर्दों को और ईमान रखने वाली औरतों को बिना इसके कि उन्हों ने कुछ किया हो, तो वह लोग बोहतान और सरीह गुनाह का बार लेते हैं"
सूरह अहज़ाब - ३३- २२-वां पारा आयत (५३-५८)इतने बड़े मज़्मूम वाकिए के बाद मुहम्मद का ये क़ुरआनी फ़रमान, ये साबित करता है कि इस्लाम आने के बाद कौम अरब किस क़दर मुर्दा ज़मीर हो गई थी कि ज़ीस्त ए बेआबरू को गले लगाए हुए थी. लाखों में कोई एक मर्द बच्चा न था कि इस मुजरिमाना फ़ेल के बाद मुहम्मद का गरेबान पकड़ता और इस कुरआन को उनके मुँह पर मार के कोई मुहाज़ खड़ा करता. सारे के सारे नामर्द सहाबिए कराम इन गलाज़त भरी आयातों को अपनी तकदीर मान चुके थे. डीठ मुहम्मद अपने ही ज़ुमरे में तमाम उन हस्तियों को घसीटते हैं जिन्हों ने इंसानियत के लिए अपनी ज़िंदगियाँ निछावर कर दीं. मुहम्मद कहना चाहते हैं कि उनके अल्लाह ने उनकी ये बदकारी उनके लिए मुक़र्रर कर दी थी इस लिए उन पर कोई इलज़ाम नहीं. समाज के तआने तिशने से वह न घबराए और न डरे, अपनी खाल को मोटी करते हुए कहते हैं कि डरे तो अल्लाह से डरे किसी बन्दे से डरने के वह क़ायल नहीं. वह जानते हैं कि अल्लाह नाम की कोई मखलूक नहीं. मुहम्मद आयत में साफ़ साफ़ कहते हैं कि उनको मालूम था कि उनकी बहू के साथ ज़ेना कारी किसी न किसी दिन पकड़ी जायगी. बे शर्म रसूल कहता है "हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलामानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने में कोई तंगी न रहे."मुबारक हो मुसलमानों.क्या कोई मुसलमान इसका फायदा उठा सकता है?


"ऐ पैगम्बर! अपनी बीवियों, अपनी साहब ज़ादियों और दूसरी मुसलमान बीवियों से कह दीजिए कि नीची कर लिया करें अपने ऊपर थोड़ी सी अपनी चादरें, इससे पहचान हो जाया करेगी तो आज़ार न दी जाया करेंगी, तो अल्लाह बख्शने वाला और मेहरबान है. वह लोग जो मदीने में अफवाहें उड़ाया करते हैं अगर बअज़ न आए तो हम ज़रूर आप को उन पर मुसल्लत कर देंगे, ये लोग मदीने में बहुत ही कम रहने पाएँगे, वह भी फिट्कारे हुए जहाँ मिलेंगे, पकड़ धाकड़ कर मार धाड की जायगी."
सूरह अहज़ाब - ३३- २२-वां पारा आयत (59-61)ये है पैग़मबरी भाषा, रहमतुल अलामीन की. कैसा दमन किया है अपनी लगजिशो के बाद अपने हलक़ा ऐ बदोशों का. सच बोलने वालों पर ज़बान खोलने की पाबन्दी आयद हो गई है.
एक आम और शरीफ इंसान मरने से पहले अपनी जवाँ साल बीवी को वसीअत कर जाता है कि मेरी मौत करीब है, मरने के बाद तुम दूसरी शादी कर लेना, अपनी जवानी मत जलाना. एक पैगम्बर को देखिए कि वह कितना तंग दिल है कि तमाम जवान बीवियों पर अपने मरने के बाद शादी हराम कर गया है, ये कह कर कि उसकी सारी बीवियाँ तमाम मुसलामानों की मान होंगी. मुहम्मद की बीवियां "उम्मुल-मोमनीन" हुवा करती हैं. खुद बेवाओं पर करम फ़रमाते रहे. बेवाओं से शादी को सवाब कहते रहे. जिन बेवाओं ने बूढ़े रसूल पर अपनी जवानियाँ जलाईं उनको इसने तमाम उम्र बेवा रहने की सज़ा दी. जब मुहम्मद मरे तो आयशा की उम्र अट्ठार साल की थी जो कि आज की सिने बलूगत की शुरूआत है.


जीम 'मोमिन'

निसारुल-ईमान

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  1. "ऐ नबी! हमने आप के लिए ये बीवियाँ जिनको आप इनके महेर दे चुके हैं हलाल की हैं और वह औरतें भी जो तुम्हारी ममलूका हैं, जो ग़नीमत में अल्लाह ने आपको दिलवाई हैं. और आप के चचा की बेटियाँ और आपकी फूफी की बेटियाँ और आपके मामूं की बेटियाँ और आप कि खाला की बेटियाँ जिन्हों ने आपके साथ हिजरत की हों और उस मुसलमान औरत को भी जो बगैर एवज अपने आपको पैगम्बर को देदे, बशर्ते ये कि पैगम्बर इसे क़ुबूल कर लें, हलाह कीं. ये सब आप पर मखसूस किए गए हैं न कि दीगर मोमनीन पर. हमको वह एहकाम मालूम हैं जो हम ने उन पर, उनकी बीवियों पर और उनकी लोंडियों के बारे में मुक़र्रर किए हैं ताकि आप पर किसी क़िस्म की तंगी न हो.

    हरामखोर व्याभिचारी और उनका बाप।

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