मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह यासीन -३६ परा - २२
(दूसरी क़िस्त)
"हम ने एक कश्ती पर लोगों को सवार किया और वह पानी को चीरती हुई रवाँ हो गई. हम चाहते तो इसे पानी में ग़र्क़ कर देते और वह सब के सब मर जाते, मगर जब वह मंजिल पर बा हिफाज़त आ जाते हैं तो तब भी हमारी कुदरत के कायल नहीं होते."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४३)ये इस्लाम की कागज़ की कश्ती है जिस पर मुसलमान सवार हुए हैं, हर वक़्त खौफे-खुदा में मुब्तिला रहते है.
"और जब कहा जाता है कि अल्लाह ने तुम को जो कुछ दिया है उसमें से कुछ खर्च क्यूं नहीं करते, तो कुफ्फर मुसलामानों से कहते हैं कि क्या हम ऐसे लोगों को खाने को दें जिनको कि अगर अल्लाह चाहे तो बेहतर खाना देदे."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (४७)कुफ्फार का बेहतर जवाब था उस वक़्त के उभरते इस्लामी गुंडों को.
आज भी ये मज़हबी ऊधम के लिए चंदा उन्हीं से वसूलते हैं जिनकी रातें गारत करते है.
कई बार कुरआन में ये बात आती है लोग पूछते हैं कि "ये वादा कब पूरा होगा".
इसकी सच्चाई ये है कि लोग उस वक़्त मुहम्मद की चिढ बनाए हुए थे मियाँ 'क़यामत कब आएगी? वो वादा कब पूरा होगा?- - - "ये सुनने के लिए कि देखें, इस बार दीवाने ने क़यामत का खाका क्या तैयार किया है.
अफ़सोस कि पागल दीवाने की वह बड़ बड़ आज मुसलामानों की किस्मत बन चुकी है.
"फिर उस दिन किसी पर ज़रा ज़ुल्म न होगा, तुमको बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुमने किए थे. अहले जन्नत बे शक उस दिन अपने मश्गलों में खुश दिल होंगे. वह और उनकी बीवियाँ साथ में, मसह्रियों पर तकिया लगाए बैठे होंगे. इनके लिए वहाँ पर मेवे होंगे और जो कुछ माँगेंगे मिलेगा. और इनको परवर दिगार मेहरबान की तरफ़ से सलाम फ़रमाएगा."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (५३-५८)
लअनत भेजिए उस जन्नत पर जिसमें आदमी हाथों पर हाथ धरे मसेह्रियों पर बैठा रहे. उस तवील ज़िन्दगी को जीने का न कोई मकसद हो न उसकी मंजिल.
मुहम्मद आयतें चोकरने से पहले अगर सोच लिया करते तो कुरआन बहुत मुख़्तसर हो जाता और उनकी उम्मत के लिए बात बात पर रुसवा न होना पड़ता.
कह रहे हैं कि उम्र दरजी अल्लाह अज़ाबियों को देता है जब कि लोग उससे उम्र दराज़ करने की दुआ मांगते हैं. उलटी सीधी बातों का यह कुरआन.
"और हम ने आप को शायरी का इल्म नहीं दिया है और आपके लिए शायाने शान भी नहीं है. वह तो महेज़ नसीहत है. और आसमानी किताब है जो एहकाम को ज़ाहिर करने वाली है, ताकि ऐसे लोगों को डरावे जो जिंदा होऔर ताकि काफिरों पर हुज्जत साबित हो जाए."सूरह यासीन -३६ पारा - २२ आयत (६९-७०)शायर तो तुम थे ही ये उस वक़्त का इतिहास बतलाता है, शायर नहीं बल्कि मुत-शायर (अधूरे शायर) पूरी कि पूरी कुरआन गवाह है इस बात की. तुम्हारी तलवार ने तुम्हारी मुत-शायरी को कुरआन बना दिया.
''जब वह किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है तो उसका मामूल तो ये है कि उस चीज़ को कह देता है,'' हो जा'', वह हो जाती है."सूरह यासीन -३६ पारा - २३ आयत (८३)बस कि मुसलमान पैदा करने में नाकाम हो रहा है.कलामे दीगराँ - - -"अगर हम सच में ही मुसीबत में घिरे हुए हैं तो इन मुसीबत की घड़ियों में हमारी हिस ऊँची ऊँची छलाँग लगा सकती है. हमें चाहिए कि हम मुसीबत की घड़ियों का इस्तेमाल कर लें और ज़िदगी को फ़ुज़ूल न गँवाएँ.""ओशो"
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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