मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३
ईमान दारी बनाम इस्लाम दारी
ईमान दारी बनाम इस्लाम दारी इस्लाम ने हर मुक़द्दस अल्फ़ाज़ को अपनी बद नियती का शिकार बना डाला. ईमान बहुत ही अहम् लफ़्ज़ है जो मेरी मालूमात तक इसका हम पल्ला (पर्याय वाची) लफ़्ज़ कहीं और नहीं. ईमान दारी में पूरी सच्चाई के साथ साथ फितरत की गवाई भी शामिल हो और ज़मीर की आवाज़ भी. जो फितरी सच हो वही ईमान दारी है. ईमान दारी गैर जानिबदारी की अलामत होती है और मसलेहत से परे. बहुत जिसारत की ज़रुरत है इस को अपनाने के लिए. इस्लाम्दारी दर असल गुलामी होती है मुहम्मदी अल्लाह की, जिसका फ़रमान हर सूरत से मुसलमान को मानना पड़ता है, ख्वाह कि वह कितनी भी बे ईमानी हो.
लीजिए इस्लाम दारी हाज़िर है - - -
"अल्लाह ने बड़ा उम्दा कलाम नाज़िल फ़रमाया है जो ऐसी किताब है कि बाहम मिलती जुलती है, बारहा दोहराई गयी है. जिस से उन लोगों को जो अपने रब से डरते हैं, बदन काँप उठते हैं. फिर उनके बदन और दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जह हो जाते हैं, ये अल्लाह की हिदायत है, जिसको चाहे इसके ज़रीए हिदायत करता है. और जिसको गुमराह करता है उसका कोई हादी नहीं." क्या यह ईमान दारी है ?सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२३)उम्मी ने अपने अल्लम गल्लम किताब को तौरेत, ज़ुबूर और इंजील के बराबर साबित करने की कोशिश की है जिनके मुकाबिले में कुरआन कहीं ठहरती ही नहीं. जब तक मुसलमान इसके फरेब में क़ैद रहेंगे दुनिया के गुलाम बने रहेंगे. दुनिया बेवकूफों का फ़ायदा उठती है उसको बेवकूफी से छुटकारा नहीं दिलाती.
"अल्लाह ने बड़ा उम्दा कलाम नाज़िल फ़रमाया है जो ऐसी किताब है कि बाहम मिलती जुलती है, बारहा दोहराई गयी है. जिस से उन लोगों को जो अपने रब से डरते हैं, बदन काँप उठते हैं. फिर उनके बदन और दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जह हो जाते हैं, ये अल्लाह की हिदायत है, जिसको चाहे इसके ज़रीए हिदायत करता है. और जिसको गुमराह करता है उसका कोई हादी नहीं." क्या यह ईमान दारी है ?सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२३)उम्मी ने अपने अल्लम गल्लम किताब को तौरेत, ज़ुबूर और इंजील के बराबर साबित करने की कोशिश की है जिनके मुकाबिले में कुरआन कहीं ठहरती ही नहीं. जब तक मुसलमान इसके फरेब में क़ैद रहेंगे दुनिया के गुलाम बने रहेंगे. दुनिया बेवकूफों का फ़ायदा उठती है उसको बेवकूफी से छुटकारा नहीं दिलाती.
''हाँ! बेशक तेरे पास मेरी आयतें आई थीं, तूने इन्हें झुटलाया और तकब्बुर किया और काफिरों में शामिल हुवा.
आप कह दीजिए कि ए जाहिलो ! क्या फिर भी तुम मुझ से गैर अल्लाह की इबादत करने को कहते हो?
और इन लोगों ने अल्लाह की कुछ अज़मत न की, जैसी अज़मत करनी चाहिए थी. हालांकि सारी ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में. वह पाक और बरतर है उन के शिर्क से " क्या यह ईमान दारी है ?सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २४ - आयत (५९-६८)
दुन्या का बद तरीन झूठा नाम निहाद पैगम्बर अपने जाल में फँसे मुसलामानों को कैसे कैसे मक्र से डरा रहा है. इसे किसी ताक़त का डर न था, अल्लाह तो इसकी मुट्ठी में था. तखरीब का फ़नकार था, मुत्फंनी की ज़ेहनी परवाज़ देखे कि कहता है "ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में." क्यूंकि बाएँ हाथ से अपना पिछवाडा धो रहा होगा इसका अल्लाह.
क्या यह ईमान दारी है ?सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २४ - आयत (६८-७२)क़यामत की ये नई मंज़र कशी है. न कब्रें शक हुईं, न मुर्दे उट्ठे, न कोई हौल न हंगामा आराई. लगता है जिन्दों में ही यौम हिसाब है.
सूर की अचानक आवाज़ सुन कर लोग चौंकेंगे उनके कान खड़े हुए तो दोबारा आवाज़ आई, वह खुद खड़े हो गए, ज़मीन अपने रब की रौशनी से रौशन हो गई, बड़ा ही दिलकश नज़ारा होगा. गवाहों के सामने लोगों के आमाल नामे बांटे जाएँगे, किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं हुवा. बस काफ़िर दोज़ख की जानिब हाँके गए. दोज़ख के दरवाजे पर खड़ा दरोगा उनसे पूछता है अमा यार क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैगम्बर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे.
काफ़िर कहेंगे आए तो थे एक चूतिया टाईप के उनकी मानता तो मेरी दुन्या भी खराब हो जाती.
अगर आप के पास वक़्त है तो पूरी ईमान दारी के साथ फ़ितरत को गवाह बना कर इन क़ुरआनी आयतों का मुतालिआ करें. मुतराज्जिम की बैसाखियों का सहारा क़तई न लें ज़ाहिर है वह उसकी बातें हैं, अल्लाह की नहीं. मगर अगर आप गैर फ़ितरी बातो पर यक़ीन रखते हैं कि २+२=५ हो सकता है तो आप कोई ज़हमत न करें और अपनी दुन्या में महदूद रहें.
मुसलामानों के लिए इस से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती कि कुरआन को अपनी समझ से पढ़ें और अपने ज़ेहन से समझें. जिस क़दर आप समझेंगे, कुरआन बस वही है. जो दूसरा समझाएगा वह झूट होगा. अपने शऊर, अपनी तमाज़त और अपने एहसासात को हाज़िर करके मुहम्मद की तहरीक को परखें. आपको इस बात का ख्याल रहे कि आजकी इंसानी क़द्रें क्या हैं, साइंसटिफिक टुरुथ क्या है. मत लिहाज़ करें मस्लेहतों का, सदाक़त के आगे. बहुत जल्द सच्चाइयों की ठोस सतह पर अपने आप को खडा पाएँगे.
आप अगर मुआमले को समझते हैं तो आप हज़ारों में एक हैं, अगर आप सच की राह पर गामज़न हुए तो हज़ारों आपके पीछे होंगे. इंसान को इन मज़हबी खुराफ़ात से नजात दिलाइए.
कलामे डीगराँ"हुकूकुल इबाद, खैर ओ खैरात, कुवें और तालाबों की तामीर, गाय बैल और कुत्ते जैसे फायदे मंद जानवरों का पालन, मियाँ और बीवी का एक दूसरे पर यक़ीन, अनाज का भरपूर पैदा वार, ऐश ओ अय्याशी से दूर, पराए माल और पराई औरत पर नज़रे बद नहीं, गुस्सा लालच, हसद, चोरी झूट और शराब से दूर रहो. मेहनत, सदाक़त और तालीम के करीब रहो.""ज़र्थुर्ष्ट "पारसी धर्मइसे कहते हैं कलाम पाक
सूर की अचानक आवाज़ सुन कर लोग चौंकेंगे उनके कान खड़े हुए तो दोबारा आवाज़ आई, वह खुद खड़े हो गए, ज़मीन अपने रब की रौशनी से रौशन हो गई, बड़ा ही दिलकश नज़ारा होगा. गवाहों के सामने लोगों के आमाल नामे बांटे जाएँगे, किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं हुवा. बस काफ़िर दोज़ख की जानिब हाँके गए. दोज़ख के दरवाजे पर खड़ा दरोगा उनसे पूछता है अमा यार क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैगम्बर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे.
काफ़िर कहेंगे आए तो थे एक चूतिया टाईप के उनकी मानता तो मेरी दुन्या भी खराब हो जाती.
अगर आप के पास वक़्त है तो पूरी ईमान दारी के साथ फ़ितरत को गवाह बना कर इन क़ुरआनी आयतों का मुतालिआ करें. मुतराज्जिम की बैसाखियों का सहारा क़तई न लें ज़ाहिर है वह उसकी बातें हैं, अल्लाह की नहीं. मगर अगर आप गैर फ़ितरी बातो पर यक़ीन रखते हैं कि २+२=५ हो सकता है तो आप कोई ज़हमत न करें और अपनी दुन्या में महदूद रहें.
मुसलामानों के लिए इस से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती कि कुरआन को अपनी समझ से पढ़ें और अपने ज़ेहन से समझें. जिस क़दर आप समझेंगे, कुरआन बस वही है. जो दूसरा समझाएगा वह झूट होगा. अपने शऊर, अपनी तमाज़त और अपने एहसासात को हाज़िर करके मुहम्मद की तहरीक को परखें. आपको इस बात का ख्याल रहे कि आजकी इंसानी क़द्रें क्या हैं, साइंसटिफिक टुरुथ क्या है. मत लिहाज़ करें मस्लेहतों का, सदाक़त के आगे. बहुत जल्द सच्चाइयों की ठोस सतह पर अपने आप को खडा पाएँगे.
आप अगर मुआमले को समझते हैं तो आप हज़ारों में एक हैं, अगर आप सच की राह पर गामज़न हुए तो हज़ारों आपके पीछे होंगे. इंसान को इन मज़हबी खुराफ़ात से नजात दिलाइए.
कलामे डीगराँ"हुकूकुल इबाद, खैर ओ खैरात, कुवें और तालाबों की तामीर, गाय बैल और कुत्ते जैसे फायदे मंद जानवरों का पालन, मियाँ और बीवी का एक दूसरे पर यक़ीन, अनाज का भरपूर पैदा वार, ऐश ओ अय्याशी से दूर, पराए माल और पराई औरत पर नज़रे बद नहीं, गुस्सा लालच, हसद, चोरी झूट और शराब से दूर रहो. मेहनत, सदाक़त और तालीम के करीब रहो.""ज़र्थुर्ष्ट "पारसी धर्मइसे कहते हैं कलाम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment