Wednesday 26 January 2011

सूरह साद - ३८- पारा २३ (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह साद - ३८- पारा २३ (2)



"और आप हमारे बन्दे अय्यूब को लीजिए जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे रंज ओ आज़ार पहुँचाया. अपना पाँव मारो यह नहाने का ठंडा पानी है और पीने का, और हम ने उनको उनका कुनबा अता किया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमत खास्सा के सबब और अहले अक्ल के याद गार रहने के सबब से और तुम हाथ में एक मुट्ठा सीकों का लो और इस से मारो और क़सम न तोड़ो. बेशक उनको मैं ने साबिर बनाया, अच्छे बन्दे थे कि बहुत रुजू होते थे.
" सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४१-४२)
उम्मी में इतनी सलाहियत नहीं कि किसी बात को पूरी कर सके. इस खुराफात को दोहराते रहिए और नतीजा खुद अख्ज़ कीजिए.
अय्यूब एक खुदा तरस बन्दा था. वक़्त ने उसे बहुत नवाज़ा था. सात बेटे और तीन बेटियाँ थीं. सब अपने अपने घरों में खुश हाल थे. अय्यूब अपने मुल्क का अमीर तरीन इंसान था. उसके पास ७००० भेढं, तीन हज़ार ऊँट, एक हज़ार गाय बैल, ५०० गधे और बहुत से नौकर चाकर थे. एक दिन शैतान ने जाकर खुदा को भड़काया कि तू अय्यूब का माल मेरे हवाले कर दे, फिर देख वह तेरे लिए कितना बाक़ी बचता है? खुदा ने उसकी चुनौती कुबूल करली. शैतान की शैतानी से अय्यूब का कुनबा एक हादसे में ख़त्म हो जाता है, दूसरे दिन तमाम जानवर लुट जाते हैं. अचानक ये सब देख कर अय्यूब ने कहा जो हुवा सो हुवा, नंगे आए थे नंगे जाएँगे. वह बदस्तूर यादे इलाही में ग़र्क़ हो गया. फिर एक दिन शैतान खुदा के पास आता है और कहता है कि माना अय्यूब तुझे भूला नहीं और न तुझ से बेज़ार हुवा, मगर ज़रा उसको तू जिस्मानी मज़ा चखा तो देख वह कितना खरा उतरता है. खुदा ने कहा ठीक है, जा मैंने अय्यूब के जिस्म को तेरे हवाले किया, बस कि उसकी जान मत लेना. शैतान अय्यूब के जिस्म में ऐसे फोड़े निकालता है कि कपडा पहेनना भी उसे दूभर हो जाता. वह नंगा होकर अपने जिस्म पर राख की खाक पहेनने लगा. अय्यूब एक छोटे से कमरे में क़ैद होकर खुदा की इबादत करने लगा. वह अपने जोरू के तआने भी सुनता रहा. वह कहती - - -
कि अब ऐसे खुदा को कोसो जिसकी इबादत में लगे रहते हो. वह कहता नादान क्या मालिक से सब अच्छा ही अच्छा पाने की उम्मीद रखती है. (ये एक पौराणिक कथा है)
अय्यूब ने इस हालत में नज़में कही हैं,
नमूए पेश हैं - - -

ऐ मालिक! पीढ़ी दर पीढ़ी से तू हमारी पनाह बना चला आ रहा है,
उसके पहले जब परबत भी नहीं बने थे,
न ज़मीन थी, न कायनात थी,
तब भी इब्तेदा से लेकर इन्तहा तक,
ऐ माबूद तू ही रहा.
बे सबात (क्षण भंगुर) तू ही मिटटी में मिल जाने के लिए कहता है,
और फिर कहता है ऐ इंसानों की औलाद लौट आओ.
"क्यूँकि तुझे हज़ारों साल भी बीते हुए कल की तरह लगते है,
और वह जैसे रात का एक पहर हो.
तू आदमियों को उठा ले जाता है हर सुब्ह होने पर,
देखे हुए ख़्वाबों की तरह लगते हैं,
या बढ़ी हुई घास की तरह .
वह सुब्ह बढ़ती है और हरी होती है,
और शाम को कट जाती है और सूख जाती है.
सच मुच तेरे अज़ाब से हम बर्बाद हो गए हैं,
और जब तूने कहर ढाया तो हम घबरा गए थे,
हमारे गुनाहों को तूने मेरे सामने रखा,
ख़याल कर कि मेरी ज़िन्दगी कितनी मुख़्तसर है,
और तूने इंसानों को कितना फ़ानी बनाया है.
(२)
"ऐ खुदा मेरे पुख्खों का पूज्य तेरा शुक्र है,
तू पूजा के लायक है और क़ाबिले तारीफ़ है,
तेरे पाक और अज़मत वाले नामों को सलाम,
ऐ मुक़द्दस और पुर नूर पूज्य !
तेरे आगे सर ख़म करता हूँ,
ऐ आसमानी फरिश्तो और बदलो!
तुम भी शुक्र अदा करो.
ऐ ख़ल्क़ की तमाम मख्लूक़ !
उसको सलाम करो,
ऐ सूरज और चाँद खुदा का शुक्र अदा करो,
ऐ बारिश और ओस! खुदा का शुक्र अदा करो.
ऐ अतराफ़ की हवाओ! उसका शुक्र अदा करो- - -
यह है तौरेत में योब (अय्यूब) की सबक आमोज़ कहानी जिसे क़ुरआनी अल्लाह न चुरा पाता है और न चर पाता है.
"और हमारे बन्दे इब्राहीम, इसहाक़ और याकूब जो हाथों वाले और आँखों वाले थे - - - (?) और इस्माईल और अल लसीअ और ज़ुलकुफ्ल को भी याद कीजिए.- - -"
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (४५-४८)
जिन का भी नाम सुन रखा था मुहम्मद ने सब को उनका अल्लाह याद करने को कहता है,
हैरत की बात ये है कि सभी हाथों और आँखों वाले थे, उस से भी ज्यादः हैरत का मुक़ाम ये है कि आज और इस युग में भी मुसलमान इन बातों का यक़ीन करते हैं. इस बेहूदा और गुमराही की तबलीग़ भी करते हैं.
"एक नसीहत का मज़मून ये तो हो चुका और परहेज़ गारों के लिए अच्छा ठिकाना है. यानी हमेशा रहने के बागात जिनके दरवाज़े इनके लिए खुले होंगे. वह बागों में तकिया लगाए बैठे होंगे. वह वहाँ बहुत से मेवे और पीने की चीज़ (शराब) मंगवाएँ . और इनके पास नीची निगाह वालियाँ, हम उम्र होंगी. ये वह है जिनका तुम से रोज़े हिसाब आने का वादा किया जाता है और ये हमारी अता है . ये बात तो हो चुकी."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५६-५७)
ये बात तो हो चुकी,
अब मुसलामानों को चाहिए कि इस बात में कुछ बात ढूंढें.
कौन सी नसीहत कहाँ है?
हलक़ तक शराब उतारने के बाद ही कोई ऐसी बहकी बहकी बातें करता है. जैसे बातों का क़र्ज़ उतारते हों कि ये बात तो हो चुकी .

"और एक जमाअत और आई जो तुम्हारे साथ घुस रही हैं, इन पर अल्लाह की मार. ये भी दोज़ख में घुस रहे हैं. वह कहेंगे बल्कि तुम्हारे ऊपर ही अल्लाह की मार. तुम ही तो ये हमारे आगे लाए हो, सो बहुत ही बुरा ठिकाना है, दुआ करेंगे ऐ हमारे परवर दिगार! इसको जो हमारे आगे लाया हो, उसको दूना अज़ाब देना."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५९-६१)
शराब जंगे खैबर के बाद हराम हुई. ये आयतें यक़ीनन शराब की नशे की हालत में कही गई हैं. खुद पूरी सूरह गवाह हैं कि ऐसी बातें होश मंदी में नहीं की जाती.
"ये बात, यानी दोज़खियों का आपस में लड़ना झगड़ना बिलकुल सच्ची हैं. आप कह दीजिए कि मैं तो डराने वाला हूँ और बजुज़ अल्लाह वाहिद ओ ग़ालिब के कोई लायक़े इबादत नहीं है. और वह परवर दिगार है आसमान ओ ज़मीन का और उन चीजों का जो कि उसके दरमियान हैं, ज़बर दस्त बख्शने वाला."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (६४-६६)

"आप कह दीजिए कि ये अजीमुश्शान मज़मून है जिस से शायद तुम बे परवाह हो रहे हो. मुझको आलमे बाला की कुछ भी खबर न थी, झगड़ रहे थे."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (६६-६९)

सरफिरा, मजनू, दीवाना और पागल था वह ,
अपने ही बनाए हुए अल्लाह का रसूल,
जिसकी पैरवी में है दुन्या कि २०% आबादी,
वह अपने पैरों से उलटी तरफ़ भाग रही है.
यह रहा कुरआन का मज़मून ए नसीहत जिसमे आप नसीहत को तलाश करें.
पूरे कुरआन में, कुरआन की अज़मतों का बखान है,
जिसे सुन सुन कर आम मुसलमान इसे अक़दस की मीनार समझता है.
असलियत ये है कि कुरआन का ढिंढोरा ज्यादः है और इसमें मसाला कम. कम कहना भी ग़लत होगा कुछ है ही नहीं,
बल्कि जो कुछ है वह नफ़ी में है.
"ये बात, यानी दोज़खियों का आपस में लड़ना झगड़ना बिलकुल सच्ची हैं." कोई झूटा ही इस क़िस्म की बातें करता है,
इसके आलिम अवाम को कुरआन का मतलब समझने से मना करते हैं और इस अमल को गुनाह क़रार देते हैं कि आम लोग बात को उलटी समझेंगे. दर अस्ल वह ख़ायफ़ होते हैं कि कहीं अवाम की समझ में इसकी हक़ीक़त न आ जाए. तर्जुमा निगार ज़बान दानी की बहस छेड़ देते हैं जिससे पार पाना सब के बस की बात नहीं,
जब कि कुरआन इल्म, ज़बान, किसी फ़लसफ़े और किसी मंतिक से कोसों दूर है. इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाना बैसे भी रुसवाई बन जाता है या आगे बढ़ने पर मजहबी गुंडों का शिकार होना तय हो जाता है. मगर कौम को जागना ही पडेगा.
कलामे दीगराँ - - -
"जो दूर अनदेशी से फैसला नहीं करते हैं, पछतावा उसको पास ही खड़ा मिलता है" "कानफ़िव्यूशेश"
(चीनी मसलक)
इसे कहते हैं कलामे पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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