Saturday 22 January 2011

सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा (2)

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा

मशविरे


(दूसरी क़िस्त)

इस्लाम की हकीकत



अब चलते है कुरान की हक़ीक़त पर"सो अपनों ने सरताबी की तो हमने उन पर बंद का सैलाब छोड़ दिया, हमने उनको फलदार बागों के बदले, बाँझ बागें दे दीं जिसमें ये चीज़ें रह गईं, बद मज़ा फल और झाड़, क़द्रे क़लील बेरियाँ. उनको ये सज़ा हमने उनकी नाफ़रमानी की वजेह से दीं, और हम ऐसी सज़ा बड़े ना फरमानों को ही दिया करते हैं."सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (१७)अल्लाह बन बैठा रसूल अपनी तबीअत, अपनी फिरत और अपनी खसलत के मुताबिक अवाम को सज़ा देने के लिए बेताब रहता है. वह किस क़दर ज़ालिम था कि उसकी अमली तौर में दास्तानें हदीसों में भरी पडी हैं. तालिबान ऐसे दरिन्दे उसकी ही पैरवी कर रहे हैं. देखिए वह कि अपने लोगों के लिए कैसी सोच रखता है.
"सो अपनों ने सरताबी की तो हमने उन पर बंद का सैलाब छोड़ दिया,"हमने उनको अफसाना बना दिया और उनको बिलकुल तितर बितर कर दिया. बेशक इसमें हर साबिर और शाकिर के लिए बड़ी बड़ी इबरतें हैं"सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (१९)मुसलमानों! अगर ऐसा अल्लाह कोई है जो अपने बन्दों को तितर बितर करता हो और उनको तबाह करके कहानी बना देता हो तो वह अल्लाह नहीं मलऊन शैतान है, जैसे कि मुहम्मद थे.
वह चाहते हैं कि उनकी ज़्यादितियों के बावजूद लोग कुछ न बोलें और सब्र करें.


"उन्होंने ये भी कहा हम अमवाल और औलाद में तुम से ज्यादः हैं और हम को कभी अज़ाब न होगा. कह दीजिए मेरा परवर दिगार जिसको चाहे ज्यादः रोज़ी देता है और जिसको चाहता है कम देता है, लेकिन अक्सर लोग वाकिफ़ नहीं और तुम्हारे अमवाल और औलाद ऐसी चीज़ नहीं जो दर्जा में हमारा मुक़र्रिब बना दे, मगर हाँ ! जो ईमान लाए और अच्छा काम करे, सो ऐसे लोगों के लिए उनके अमल का दूना सिलह है. और वह बाला खाने में चैन से होंगे."सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (३५-३७)कनीज़ मार्या के हमल को आठवाँ महीना लगने के बाद जब समाज में चे-मे गोइयाँ शुरू हुईं तो मार्या के दबाव मे आकर मुहम्मद ने उसे अपनी कारस्तानी कुबूला और बच्चा पैदा होने पर उसको अपने बुज़ुर्ग इब्राहीम का नाम दिया, उसका अक़ीक़ा भी किया. ढाई साल में वह मर गया तब भी समाज में चे-मे गोइयाँ हुईं कि बनते हैं अल्लाह के नबी और बुढ़ापे में एह लड़का हुवा, उसे भी बचा न सके. तब मुहम्मद ने अल्लाह से एक आयत उतरवाई " इन्ना आतोय्ना कल कौसर - - - "यानी उस से बढ़ कर अल्लाह ने मुझको जन्नत के हौज़ का निगराँ बनाया - - -"
तो इतने बेगैरत थे हज़रत.
इस सूरह के पसे मंज़र मे इन आयतों भी मतलब निकला जा सकता है.
एक उम्मी की रची हुई भूल भूलैय्या में भटकते राहिए कोई रास्ता ही नान मिलेगा,


"आप कहिए कि मैं तो सिर्फ़ एक बात समझता हूँ, वह ये कि अल्लाह वास्ते खड़े हो जाओ, दो दो, फिर एक एक, फिर सोचो कि तुम्हारे इस साथी को जूनून नहीं है. वह तुम्हें एक अज़ाब आने से पहले डराने वाला है."
सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (४६)
बेशक, ये आयत ही काफ़ी है कि आप पर कितना जूनून था. दो दो, फिर एक एक - - - फिर उसकेबाद सिफार सिफार फिर नफ़ी एक एक यानी बने हुए रसूल की इतनी धुनाई होती और इस तरह होती कि इस्लामी फितने का वजूद ही न पनप पता.

यहूदी धर्म कहता है - - -ऐ खुदा!
फिरके फिरके का इन्साफ़ करेगा. मुल्क मुल्क के लोगों के झगडे मिटाएगा, वह अपने तलवारों को पीट पीट कर हल के फल और भालों को हँस्या बनाएँगे, तब एक फ़िरका दूसरे फ़िरके पर तलवारें नहीं चलाएगा न आगे लोग जंग के करतब सीखेंगे.
"तौरेत"
ये हो सकती है अल्लाह की वह्यी या कलाम ए पाक. 
जीम 'मोमिन' निसारुल-इमान

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