मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह लुकमान ३१-२१ वां परा
(दूसरी क़िस्त)
मुहम्मद औलादों को बहकते भी हैं और साथ साथ धमकाते भी हैं.
बद क़िस्मत कौम! जागो.''बेटा! अगर कोई अमल राई के दाने के बराबर हो, वह किसी पत्थर के अन्दर हो या आसमान के अन्दर या ज़मीन के अन्दर हो तब भी अल्लाह इसको हाज़िर कर देगा. बेशक अल्लाह बारीक बीन बाखबर है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१६)मुसलामानों! अल्लाह तअला न बारीक बीन है न बाखबर, न वह बनिए है कि सब का हिसाब किताब रखता हो, वह अगर है तो एक निजाम बना कर कुदरत के हवाले कर दिया है, अगर नहीं है तो भी कुदरत का निजाम ही कायनात में लागू है. हर अच्छे बुरे का अंजाम मुअय्यन है, इस ज़मीन की रफ़्तार अरबों बरस से मुक़र्रर है कि है कि वह एक मिनट के देर के बिना साल में एक बार अपनी धुरी पर अपना चक्कर पूरा करती है. कुदरत गूँगी, बहरी है और अंधी है उससे निपटने के लिए इंसान हर वक़्त मद्दे मुकाबिल है. अगर वह मुकाबिला न करता होता तो अपना वजूद गवां बैठता, आज जानवरों की तरह सर्दी, गर्मी और बरसात की मार झेलता होता, बड़ी बड़ी इमारतों में ए सी में न बैठा होता.
मुसलमान उसका मुकाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.
मुसलमान उसका मुकाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.
"बे शक आवाजों में सब से बुरी आव्वाज़ गधों की है "
अल्लाह के बने रसूल अल्लाह की मखलूक पर कैसा तबसरा कर रहे हैं.''हमने उनको चन्द रोज़ का ऐश दी हुए हैं, उनको धेरे धीरे एक सख्त अज़ाब की तरफ ले जाएँगे और- - -''सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१७-१९)गौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह अपने बन्दों के साथ कैसी साजिश रचता है . इंसानी दिलो-दिमाग और जन का दुश्मन शिकारी.
बेहतरीन.. उम्दा लेखन
ReplyDeleteशानदार पोल-खोल, अच्छा लेखन
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