Wednesday 21 March 2018

Soorah Infaal 8 Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफ़ाल - ८
(क़िस्त-4)
क़ुरान की हक़ीक़ी सूरत देखें - - - 

''और जब उन लोगों ने कहा ऐ अल्लाह ! अगर यह आप की तरफ़ से वाक़ई है तो हम पर आसमान से पत्थर बरसाइए या हम पर कोई दर्द नाक अज़ाब नाज़िल कर दीजिए.''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9
काफ़िरों का बहुत ही जायज़ एहतेजाज था, 
और मुहम्मद के लिए यह एक चुनौती थी.

''और तुम उन कुफ़्फ़ारो से इस हद तक लड़ो की उन्हें फ़साद ए अक़ीदत न रहे और दीन अल्लाह का ही क़ायम हो जाए, फिर अगर वह बअज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके आमाल को खूब देखते हैं.''
ऐसी जिहादी आयतों से क़ुरआन भरा पड़ा है, जिस पर तालिबान जैसे पागल अमल कर रहे है और कुत्तों की मौत मारे जा रहे है, साथ में मुस्लिम नाडान अवाम भी .
सूरह इंफाल - ८  पारा 9

''और जान लो जो शै बतौर ग़नीमत तुम को हासिल हो, तो कुल का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल का है और आप के क़राबत दारों का है और यतीमो का है और ग़रीबों का है और मुसाफ़िरों का है, अगर तुम अल्लाह पर यक़ीन रखते हो तो.''
सूरह इंफाल ८ नौवाँ पारारा आयत ( ३२ - ३९ - ४१)

मैं एक बार फिर अपने पाठकों को बतला दूं कि जंग में लूटे हुए माल को मुहम्मद ने माले ग़नीमत नाम दिया और इसको ज़रीया मुआश का एक साधन क़रार दिया.
यह बात पहले लूट मार और डकैती जैसे बुरे नाम से जानी जाती थी जिसको उन्होंने वहियों के नाटक से अपने ऊपर जायज़ कराया. 
माल ए ग़नीमत के बटवारे का क़ानून भी अल्लाह बतलाता है ,
वह अपना पांचवां हिस्सा आसमान से उतर कर ले जाता है, 
उसके बाद यतीमों, गरीबों और मुफ़लिसों का हिस्सा  क़ायम करके रसूल अपने यहाँ रखवाते, बाद में मनमानी ढ़ंग से अपने अपनों में बांटते. 
उनके बाद उनके वारिसों ने इसे भी हड़प लिया. (देखें हसन को ) 
कहीं कोई इदारह ए फ़लाह व बहबूद उनकी ज़िन्दगी में अवाम के लिए क़ायम नहीं हुवा. 
वह ख़ुद लूट के माल को अपने मुसाहिबों में तक़सीम करके अपनी शान बघारते, (देखें हदीसें)
जो बुनयादी फ़ायदे होते उससे क़ुरैशियो की जड़ें मज़बूत होती रहतीं. 
उनकी मौत के बाद ही उनकी सींची हुई बाग़ क़ुरैशियों के लिए लहलहा उट्ठी, अली हसन, हुसैन और यजीद इस्लामी शहज़ादे बन कर उभरे. 
कुछ रद्दे-अमल में क़त्ल हुए और कुछ आज तक फल फूल रहे हैं.
हमें बाहैसियत हिंदुस्तानी क्या फ़ायदा है ? 
कि हम न अरब हैं, न क़ुरैश हैं और हम न अल्वी न यजीदी हैं, 
हम भारतीय हैं, 
हम भला इस्लाम के ज़द में आकर क्यों इसके शिकार बने हुए है?

''इस ने अपनी हिकमत अमली से कभी दुश्मनों को मोमिनों के लश्कर को कसीर दिखला कर और कभी मोमिनों की हौसलों को बढ़ाने के लिए काफ़िरों के फ़ौज को मुख़्तसर दिखलाया .''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( ४३)

मुहम्मद को अपने अल्लाह से दग़ाबाजी का काम कराने से भी कोई परहेज़ नहीं . वह तो ख़याली अल्लाह ठहरा.
नादान भोले भाले मुसलमान तो इसकी गहराई में जाते ही नहीं, 
मगर यह तालीम याफ़्ता मुसलमान इस बात को नज़र अंदाज़ करके क़ौम को पस्ती में डाले हुए हैं. अगर यह आगे आएँ तो वह (अवाम) इनके पीछे चलने की हिम्मत कर सकते है.

''काफ़िरों को हिम्मत बंधाने वाला शैतान, मुसलमानों के लिए मदद आता देख कर, सर पर पाँव रखकर भागता है, यह कहते हुए कि मैं तो अल्लाह से डरता हूँ.
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( 48 )

यह है मुसलामानों तुम्हारा क़ुरआन और तुम्हारा दीन जो कि बच्चों को दिल बहलाने के लिए किसी कार्टून फिल्म के किरदार की तरह है. 
क्या इसी पर तुम्हारा ईमान है? 
क्या तुम इस पर कभी शर्मिंदा नहीं होते? 
या तुम को यह सब कुछ बतलाया ही नहीं जाता, 
तुमसे क्यूँ यह बातें छिपाई जाती हैं? 
या फिर तुम हिन्दुओं के देवी देवताओं की पौराणिक कथाओं को जानते हुए इन बातों को उन से बेहतर मानते हो? 
ज़रा सोचो मुहम्मद ने किस समझदार शैतान को तुमको बहकाने के लिए गढ़ा है कि तुम सदियों से उसकी गुमराही में भटकते रहोगे .
आँखें खोलो.
उम्मी मुहम्मद अपने गढ़ी हुई मख़लूक़ को समझाते हैं - - - 
चूँकि शैतान भी अल्लाह से डरता है, इस लिए तुमको भी अल्लाह से डरना चाहिए. और यह मख़लूक़ इस बात को समझ ही नहीं पाती कि बेवक़ूफ़ मुहम्मद उससे शैतान की पैरवी करा रहे है. 

''देखें जब यह फ़रिश्ते काफ़िरों की जान कब्ज़ करने जाते हैं और आग की सज़ा झेलना, ये इसकी वजेह से है कि तुम ने अपने हाथों समेटे हैं कि अल्लाह बन्दों पे ज़ुल्म नहीं करता.''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( ५०-५१)

वाह ! कितने रहम दिल हैं अल्लाह मियाँ. 
ख़ुद ज़ुल्म नहीं करते बल्कि अपने फ़रिश्तों से ज़ुल्म कराते है 
 इस्लाम क़ुबूल करने के बाद मुसलमान हर वक़्त डरा और सहमा रहता है, अपने अल्लाह से.
क्यूँ ? 
क्या उसका जुर्म यह है कि वह उसकी धरती पर पैदा हो गया? 
मगर वह अपनी मर्ज़ी से कहाँ इस दुन्या में आया? 
वह तो अपने माँ बाप के उमंग और आरज़ू का नतीजा है. 
उसके बाद भी मेहनत और मशक्क़त से दो वक़्त की रोज़ी रोटी कमाता है, 
उसके लिए मुहम्मदी अल्लाह को टेक्स दे? 
उस से डरे उसके सामने मत्था टेके ??, 
गिड़गिडाए ??? 
भला क्यूं????
अपने वजूद को दोज़ख के न बुझने वाले अंगारों के हवाले करने का यqeeन क्यूं करें?????

''बिला शुबहा अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( ५२)

जो ''कुन'' कह कर इतनी बड़ी कायनात की तख़लीक़ करदे उसकी क़ूवत का यक़ीन एक अदना बन्दा से क्यूँ करा रहा है

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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