Friday 23 March 2018

oorah Infaal 8 Q 5 Last

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफ़ाल - 8 
(क़िस्त-5)


अपने पाठकों को एक बार फिर मैं यक़ीन दिला दूं कि मैं उसी तबक़े का जगा हुआ फ़र्द हूँ जिसके आप हैं. 
मुझको आप पर तरस के साथ साथ हँसी भी आती है, जब आप हमें झूठा लिखते हैं, जिसका मतलब है आप ख़ुद तस्लीम कर रहे हैं कि आपका अल्लाह और उसका रसूल झूठ है, क्यूँकि मैं तो मशहूर आलिम मौलाना शौकत अली थानवी के क़ुरआनी तर्जुमे को और इमाम बुख़ारी की हदीस को ही नक़्ल करता हूँ और अपने मशविरे में अक़ीदत नहीं अक़्ल-सलीम रखता हूँ. 
मैं मुसलमानों का सच्चा हमदर्द हूँ. 
दीगर धर्मों में इस्लाम से बद तर बातें हैं, 
हुआ करें, उनमें इस्लाह-ए- मुआशरा हो रहा है, 
इसकी ज़रुरत मुसलमानों को ख़ास कर है. 
अगर आप अक़ीदे की फ़रसूदा राह तर्क करके इंसानियत की ठोस सड़क पर आ जाएँ तो, दूसरे भी आप की पैरवी में आप के पीछे और आपके साथ होंगे.

 चलिए अब अल्लाह की राह पर जहाँ वह मुसलमानों को पहाड़े पढ़ा रहा है 2x2 =५

देखिए कि इंसानी सरों को उनके तनों से जुदा करने के क्या क्या फ़ायदे हैं  
''बिला शुबहा बद तरीन ख़लायाक़ अल्लाह तअला के नज़दीक ये काफ़िर लोग हैं, तो ईमान न लाएंगे''
सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत ( ५५)



और ख़ूब तरीन मोमिन हो जाएँ अगर ईमान लाकर तुम्हारे साथ तुम्हारे गढ़े हुए अल्लाह की राह पर ख़ून ख़राबा के लिए चल पड़ें. जेहालत की राह पर अपनी नस्लों को छोड़ कर मुहम्मदुर रसूलिल्लाह कहते हुए इस बेहोशी के आलम में रुख़सत हो जाएँ.




''और काफ़िर लोग अपने को ख़याल न करें कि वह बच गए. यक़ीनन वह लोग आजिज़ नहीं कर सकते.''

सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत ( ५९)


क़ूवत वाला अल्लाह, मेराक़ी शौहर की बीवी की तरह आजिज़ भी होता है ?

क्या क्या ख़सलतें मुहम्मद ने अपने अल्लाह में पैदा कर रखी है.
वह कमज़ोर, बीमार और चिडचिड़े बन्दों की तरह आजिज़ो-बेज़ार भी होता है, वह अय्यारव मक्कार की तरह चालों पर चालें चलने वाला भी है,
वह क़ल्ब ए सियाह की तरह मुन्तक़िम भी है, वह चुगल खो़र भी है,
अपने नबी की बीवियों की बातें इधर की उधर, 
नबी के कान में भर के मियाँ बीवी में निफ़ाक़ भी डालता है.
कभी झूट और कभी वादा ख़िलाफ़ी भी करता है.
आगे आगे देखते जाइए मुहम्मदी अल्लाह की ख़सलतें.
यह किरदार ख़ुद मुहम्मद के किरदार की आइना दार हैं. 
तरीख़ इस्लाम इसकी गवाह है,
जिसकी उलटी तस्वीर यह इस्लामी मुसन्नफ़ीन और ओलिमा आप को दिखला कर गुमराह किए हुए हैं.
आप इनकी तहरीरों पर भरोसा करके पामाल हुए जा रहे हैं, 
तब भी आप को होश नहीं आ रहा. 
लिल्लाह अपनी नस्लों पर रहम खाइए.
 
''वह वही है जिसने आप को अपनी इमदाद से और मुसलमानों को क़ूवत दी और इनके दिलों में इत्तेफ़ाक पैदा कर दिया. अगर आप दुन्या भर की दौलत ख़र्च करते तो इन के क़ुलूब में इत्तेफ़ाक़ पैदा न कर पाते. लेकिन अल्लाह ने ही इन के दिलों में इत्तेफ़ाक़ पैदा कर दिया. बेशक वह ज़बरदस्त है और हिकमत वाला है.''
सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत  (६३)



इंसान अपनी फ़ितरत में लालची होता है और अगर पेट की रोटी किसी अमल से जुड़ जाए तो वह अमल जायज़ लगने लगता है, जब कोई पैगंबर बन कर इसकी ताईद करे तो फिर इस अमल में सवाब भी नज़र आने लगता है. 
यही पेट की रोटी भुखमरे अरबी मुसलामानों में इत्तेहाद और इत्तेफ़ाक़ पैदा करती है जिसे अल्लाह की इनायत मनवाया जा रहा है. 
मुहम्मद अपनी ज़ेहानत ए बेजा की पकड़ को अल्लाह की हिकमत क़रार दे रहे हैं. जंगी तय्यारियों से इंसानी सरों को तन से जुदा करने की साज़िश को अपने अल्लाह की मर्ज़ी बतला रहे हैं.




''ऐ पैग़म्बर! आप मोमनीन को जेहाद की तरग़ीब दीजिए. अगर तुम में से बीस आदमी साबित क़दम होंगे तो दो सौ पर ग़ालिब आ जाएँगे और अगर तुम में सौ होंगे तो एक हज़ार पर ग़ालिब आ जाएंगे.''

सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत  (६४)



मुहम्मदी अल्लाह अपने रसूल को गणित पढ़ा रहा है, मुसलमान क़ौम उसका हाफ़िज़ा करके अपने बिरादरी को अपाहिज बना रही और इन इंसानी ख़ून ख़राबे की आयातों से अपनी आक़बत सजा और संवार रही है, अपने मुर्दों को बख़्शवा रही है, इतना ही नहीं इनके हवाले अपने बच्चों को भी कर रही है. इसी यक़ीन को लेकर क़ुदरत की बख़्शी हुई इस हसीन नेमत को ख़ुद सोज़ बमों के हवाले कर रही है. 
क्या एक दिन ऐसा भी आ सकता है की मुसलमान इस दुन्या से नापैद हो जाएं जैसा कि ख़ुद रसूल ने एहसासे जुर्म के तहत अपनी हदीसों में पेशीन गोई भी की है.




मुहम्मद अल्लाह के कलाम के मार्फ़त अपने जाल में आए हुए मुसलमानों को इस इतरह उकसाते हैं - - -

''तुम में हिम्मत की कमी है, इस लिए अल्लाह ने तख़फ़ीफ़ (कमी) कर दी है, सो अगर तुम में के सौ आदमी साबित क़दम रहने वाले होंगे तो वह दो सौ पर ग़ालिब होंगे. नबी के लायक़ नहीं की यह इनके क़ैदी रहें,
जब कि वह ज़मीन पर अच्छी तरह ख़ून रेज़ी न कर लें.  
सो तुम दुन्या का माल व असबाब चाहते हो और अल्लाह आख़िरत को चाहता है और अल्लाह तअला बड़े ज़बरदस्त हैं और बड़े हिकमत वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत  (६७)



इसके पहले अल्लाह एक मुसलमान को दस काफ़िरों पर भारी पड़ने का वादा करता है मगर उसका तख़मीना बनियों के हिसाब की तरह कुछ ग़लत लगा तो अपने रियायत में बख़ील हो रहा है.

अब वह दो काफ़िरों पर एक मुसलमान को मुक़ाबिले में बराबर ठहरता है।
अल्लाह नहीं मल्लाह है नाव खेते खेते हौसले पस्त हो रहे हैं.
इधर संग दिल मुहम्मद को क़ैदी पालना पसंद नहीं,
चाहते है इस ज़मीन पर खूब अच्छी तरह ख़ून रेज़ी हो जाए ,
काफ़िर मरें चाहे मुस्लिम उनकी बला से. 
मरेगे तो इंसान ही जिन के वह दुश्मन हैं,
तबई दुश्मन, फ़ितरी दुश्मन, जो बचें वह ज़ेहनी ग़ुलाम और लौंडियाँ.
और वह उनके परवर दिगार बन कर मुस्कुराएँ.
मुहम्मद पुर अमन तो किसी को रहने ही नहीं देना चाहते थे, 
चाहे वह मुसलमान हो चुके सीधे, टेढ़े लोग हों, 
चाहे मासूम और ज़हीन काफ़िर.
दुन्या के तमाम मुसलमानों के सामने यह फ़रेबी क़ुरआन के रसूली फ़रमान मौजूद हैं मगर ज़बान ए ग़ैर में जोकि वास्ते तिलावत है.
इस्लाम के मुजरिमान ए दीन डेढ़ हज़ार साल से इस क़दर झूट का प्रचार कर रहे हैं कि झूट सच ही नहीं बल्कि पवित्र भी हो चुका है,
मगर यह पवित्रता बहर सूरत अंगार पर बिछी हुई राख की परत की तरह है. अगर मुसलमानों ने आँखें न खोलीं तो वह इसी अंगार में एक रोज़ भस्म हो जाएँगे, उनको अल्लाह की दोज़ख़ भी नसीब न होगी.
 
ऊपर की इन आयातों में मुहम्मदी अल्लाह नव मुस्लिम बने लोगों को जेहाद के लिए वरग़लाता है, इनके लिए कोई हद, कोई मंज़िल नहीं, बस लड़ते जाओ, मरो, मारो वास्ते सवाब. 
सवाब ?
एक पुर फ़रेब तसव्वुर, एक कल्पना, एक मफ़रूज़ा जन्नत, ख़यालों में बसी हूरें और लामतनाही ऐश की ज़िन्दगी जहाँ शराब और शबाब मुफ़्त, बीमारी आज़ारी का नम व निशान नहीं.
कौन बेवक़ूफ़ इन बातों का यक़ीन करके इस दुन्या की अज़ाबी ज़िन्दगी से नजात न चाहेगा?
हर बेवक़ूफ़ इस ख़्वाब में मुब्तिला है.
मुहम्मद कहते हैं कि पहला हल तो यहीं दुन्या में धरा हुवा है, 
जंग जीते तो ज़न, ज़र, ज़मीन तुम्हारे क़दमों में, 
हारे, तो शहीद हुए इस से वहाँ लाख गुना रक्खा है.
अजीब बात है कि ख़ुद मुहम्मद ठाठ बाट की शाही ज़िन्दगी जीना पसंद नहीं करते थे, न महेल, न रानियाँ, पट रानियाँ, न सामान ए ऐश.
मरने के बाद विरासत में उनके खाते में बाँटने लायक कुछ ख़ास न था.
वह ऐसे भी नहीं थे कि अवामी फलाह की अहमियत की समझ रखते हों,
कोई शाह राह बनवाई हो,
कुएँ खुदवाए हों,
मुसाफ़िर ख़ाने तामीर कराए हों,
तालीमी इदारे क़ायम किया हो.
यह काम अगर उनकी तहरीक होती तो आज मुसलामानों की सूरत ही कुछ और होती.
मुहम्मद काफ़िरों, मुशरिकों, यहूदियों, ईसाइयों, आतिश परस्तों और मुल्हिदों के दुश्मन थे, तो मुसलमानों के भी दोस्त न थे.
मामूली इख़्तलाफ़ पर एक लम्हा में वह अपने साथी मुस्लमान को मस्जिद के अन्दर इशारों इशारों में काफ़िर कह देते.
उनके अल्लाह की राह में फ़िराख़ दिली से ख़र्च न करने वाले को जहन्नुमी क़रार दे देते.
उनकी इस ख़सलत का असर पूरी क़ौम पर रोज़े अव्वल से लेकर आज तक है.
उनके मरते ही आपस में मुसलमान ऐसे लड़ मरे की काफ़िरों को बदला लेने की ज़रुरत ही न पड़ी.
गोकि जेहाद इस्लाम का कोई रुक्न नहीं मगर जेहाद क़ुरान का फ़रमान- ए-अज़ीम है जो कि मुसलमानों के घुट्टी में बसा हुवा है. 
क़ुरान मुहम्मद की वाणी है, जिसमे उन्हों ने उम्मियत की हर अदा से चाल घात के उन पहलुओं को छुआ है जो इंसान को मुतास्सिर कर सकें.
अपनी बातों से मुहम्मद ने ईसा, मूसा बनने की कोशिश की है, बल्कि उनसे भी आगे बढ़ जाने की.
इसके लिए उन्हों ने किसी के साथ समझौता नहीं किया, चाहे सदाक़त हो, चाहे शराफ़त, चाहे उनके चचा और दादा हों, 
यहाँ तक की चाहे उनका ज़मीर हो.
अपनी तालीमी कमियों को जानते हुए, अपने खोखले कलाम को मानते हुए, वह अड़े रहे कि ख़ुद को अल्लाह का रसूल तस्लीम कराना है.
मुहम्मद का अनोखा फ़ार्मूला था लूट मार के माल को ''माल ए ग़नीमत'' क़रार देना.यानी इज्तेमाई डकैती को ज़रीया मुआश बनाना. 
बेकारों को रोज़ी मिल गई थी. बाक़ी दुन्या पर मुसलमान ग़ालिब हो गए थे. आज बाक़ी दुन्या मिल कर मुसलामानों की घेरा बंदी कर रही है,
तो कोई हैरत की बात नहीं.

मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने गरेबान में मुँह डाल कर देखें और तर्क इस्लाम करके मजहब ए इंसानियत अपनाएं जो इंसान का असली रंग रूप है. सारे धर्म नक़ली रंग व रोग़न में रंगे हुए हैं सिर्फ़ और सिर्फ़ इंसानियत ही इंसान का असली धर्म है जो उसके अन्दर ख़ुद से फूटता रहता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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