Monday 4 June 2018

सूरह बनी इस्राईल -१७ (क़िस्त 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह बनी इस्राईल -१७
(क़िस्त 1)



मुहम्मदुर रसूलिल्लाह

(मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं)  


मुहम्मद की फ़ितरत का अंदाज़ा क़ुरआनी आयतें निचोड़ कर निकाला जा सकता है कि वह किस क़द्र ज़ालिम ही नहीं कितने मूज़ी तअबा शख़्स थे. क़ुरआनी आयतें जो ख़ुद मुहम्मद ने वास्ते तिलावत बिल ख़ुसूस महफ़ूज़ कर दीं, इस एलान के साथ कि ये बरकत का सबब होंगी न कि इसे समझा जाए. 

अगर कोई समझने की कोशिश भी करता है तो उनका अल्लाह उस पर एतराज़ करता है कि ऐसी आयतें मुशतबह मुराद (संदिग्ध) हैं जिनका सही मतलब अल्लाह ही जानता है. 
इसके बाद जो अदना (सरल) आयतें हैं और साफ़ साफ़ हैं वह अल्लाह के किरदार को बहुत ही ज़ालिम, जाबिर, बे रहम, मुन्तक़िम और चालबाज़ साबित करती है बल्कि अल्लाह इन अलामतों का ख़ुद एलान करता है कि अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' (मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं) को मानने वाले न हुए तो. अल्लाह इतना ज़ालिम और इतना क्रूर है कि इंसानी खालें जला जला कर उनको नई करता रहेगा, इंसान चीख़ता चिल्लाता रहेगा और तड़पता रहेगा मगर उसको मुआफ़ करने का उसके यहाँ कोई जवाज़ नहीं है, कोई कांसेप्ट नहीं है. 

मज़े की बात ये कि दोबारा उसे मौत भी नहीं है कि मरने के बाद नजात की सूरत हो सके, 
उफ़! इतना ज़ालिम है मुहमदी अल्लाह? 
सिर्फ़ इस ज़रा सी बात पर कि उसने इस ज़िन्दगी में 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' क्यूं नहीं कहा. 

हज़ार नेकियाँ करे इन्सान, कुरआन गवाह है कि सब हवा में ख़ाक की तरह उड़ जाएँगी अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' नहीं कहा, क्यों कि हर अमल से पहले ईमान शर्त है और ईमान है ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' . इस क़ुरआन का ख़ालिक़ कौन है जिसको मुसलमान सरों पर रखते हैं ? 
मुसलमान अपनी नादानी और नादारी में यक़ीन करता है कि उसके अल्लाह की मर्ज़ी है, जैसा रख्खे. 
वह जिस दिन बेदार होकर क़ुरआन को ख़ुद पढ़ेगा तब समझेगा कि इसका ख़ालिक़ तो दग़ाबाज़ ख़ुद साख़्ता अल्लाह का बना हुवा रसूल मुहम्मद है. 
उस वक़्त मुसलमानों की दुन्या रौशन हो जाएगी.

मुहम्मद कालीन मशहूर सूफ़ी ओवैस करनी जिसके तसव्वुफ़ के क़द्र दान मुहम्मद भी थे, जिसको कि मुहम्मद ने बाद मौत के अपना पैराहन (परिधान) पहुँचाने की वसीअत की थी, 
सूफ़ी मुहम्मद से दूर जंगलों में छिपता रहता कि इस ज़ालिम से मुलाक़ात होगी तो कुफ़्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' मुँह पर लाना पड़ेगा. 
इस्लामी वक्तों के माइल स्टोन हसन बसरी और राबिया बसरी इस्लामी हाकिमों से छुपे छुपे फिरते थे कि 
यह ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को कुफ़्र मानते थे. 

मक्के के आस पास फ़तेह मक्का के बाद इस्लामी गुंडों का राज हो गया था. किसी की मजाल नहीं थी कि मुहम्मद के ख़िलाफ़ मुँह खोल सके. 
मुहम्मद के मरने के बाद ही मक्का वालों ने हुकूमत को टेक्स देना बंद कर दिया 
कि ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहना हमें मंज़ूर नहीं, 
'लाइलाहा इल्लिल्लाह' (अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं)तक ही सही है. 
अबुबकर ख़लीफ़ा ने इसे मान लिया मगर उनके बाद ख़लीफ़ा उमर आए और उन्हों ने फिर बिल जब्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' पर अवाम को आमादः कर लिया . 
इसी तरह पुश्तें गुज़रती गईं, सदियाँ गुज़रती गईं, 
जब्र, ज़ुल्म, ज़्यादती और बे ईमानी ईमान बन गया.
आज तक चौदह सौ साल होने को हैं सूफ़ी मसलक, 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को मज़ाक़ ही मानता है, 
वह अल्लाह को अपनी तौर पर तलाश करता है, 
पाता है कि किसी स्वयंभू भगवन के अवतार और उसके दलाल बने पैग़म्बर के रूप में दर्शाते हैं - - -
अब क़ुरआन वाणी पर आइए ,



''मस्जिदे अक़सा तक जिसके गिर्दा गिर्द हम ने बरकतें कर रखी हैं, ले गया ताकि हम उनको अपने कुछ अजायब दिखला दें. बेशक अल्लाह तअला बड़े सुनने और देखने वाले हैं. और हमने मूसा को किताब दी और हमने उसको बनी इस्राईल के लिए हिदायत बनाया कि तुम मेरे सिवा किसी और को कारसाज़ मत क़रार दो. ऐ उन लोगो की नस्ल! जिन को हमने नूह के साथ सवार किया था वह बड़े शुक्र गुज़र बन्दे थे. और हमने बनी इस्राईल को किताब में बतला दी थी कि तुम सर ज़मीन पर दोबारा ख़राबी करोगे और बड़ा ज़ोर चलाओगे. फिर जब उन दो में से पहली की मीयाद आवेगी, हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.''

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१-५)



पाठको क्या समझे? 

तर्जुमा कर शौकत अली थानवी ने ब्रेकेट की खपच्चियाँ लगा लगा कर बड़ी रफ़ू गरी की मगर जब जेहालत सर पर चढ़ कर बोले तो कौन मुँह खोले? 
अल्लाह कहता है ''हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.'' 
यानी अल्लाह का भी वतीरा होता है? 

बद क़िमाश सियासत दानों की तरह, वह ख़ुद जंगजू तालिबान को पैदा किए हुए है, जो मासूम बच्चियों को इल्म के लिए घरों से बाहर तो निकलने नहीं देते और दूसरे के घरों में ऐसी आयतों का सहारा लेकर घुस जाते हैं और मनमानी करते हैं.
मुसलमानों तुम कितने बद नसीब हो कि तुम्हारी आँखें ही नहीं खुलतीं. 
कितने बेहिस हो? 
कितने डरपोक? 
कितने बुज़दिल? 
कितने अहमक हो ? 
जागो, 
अभी तो तुमको तुम में से ही जगा हुवा एक मोमिन जगा रहा है, 
मुमकिन है कि कल दूसरों के लात घूंसे खा कर तुम्हारी आँखें खुलें.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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