Wednesday 27 June 2018

Soorah Kahaf 18 Q 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-5 ) 
अल्लाह कहता है - - - 

''और आप अपने को उन लोगों के साथ मुक़य्यद रखा कीजिए जो सुब्ह शाम अपने रब की इबादत महज़ उसकी रज़ा जोई के लिए करते हैं और दुन्यावी ज़िन्दगी की रौनक़ के ख़याल से आप की आँखें उन से हटने न पाएँ और ऐसे लोगों का कहना न मानिए जिन के दिलों को हम ने अपनी याद से ग़ाफ़िल कर रखा है, वह अपनी नफ़सानी ख़वाहिश पर चलता है - - -
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (२८)

''और आप कह दीजिए कि हक़ तुम्हारे रब की तरफ़ से है सो जिसका जी चाहे ईमान ले आवे और जिस का जी चाहे काफ़िर बना रहे. बेशक हमने ऐसे ज़ालिमों के लिए आग तैयार कर रखी है कि इनकी क़नातें उनको घेरे होंगी और अगर फ़रयाद करेंगे तो ऐसे पानी से उनकी फ़रयाद पूरी की जाएगी जो तेल की तलछट की तरह होगा, मुँहों को भून डालेगा. क्या ही बुरा पानी होगा, और क्या ही बुरी जगह होगी.''
'सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (२९)

यह मुहम्मदी आयतें इस बात का सुबूत हैं कि तुम को मुहम्मद अपने पयम्बरी के क़ैद ख़ाने में मुक़य्यद करने में कामयाब हैं. 
अब वक़्त की आवाज़ सुनो, जो तुम्हें इस से आज़ाद कराना चाहता है. 
बस मुसलमान से मोमिन बन जाओ और इस गाफ़िल करने वाले शैतान की मानिंद अल्लाह से नजात पाओ, कि जो ख़ुद अपनी कमज़ोरियों का शिकार है. आज़ाद होकर अपनी नफ़सानी और फ़ितरी ज़िन्दगी जियो. 
तुम से तुम्हारी नफ़्स इल्तेजा कर रही है कि अपनी नस्लों को मुकम्मल इन्सान बनाओ. 
नफ़्स क्या है ? 
सिर्फ़ ऐश और अय्याशी को नफ़्स नहीं कहते, 
ज़मीर की आवाज़ भी नफ़्स है, इन्सान की ज़ेहनी आज़ादी भी नफ़्स है, 
मोहम्मद तो ऐश ओ अय्याशी को ही नफ़्स जानते हैं, 
अंतर आत्मा जिसको पाने को तड़पती हो वह नफ़्स है. 
तुम्हारी अंतर आत्मा की आवाज़ इस वक़्त क्या है? 
ऊपर अल्लाह की बख़्शी हुई हूरें या अपने बच्चों का रौशन मुस्तक़बिल? 
ईमान की गहराइयों को गवाह कर के बतलाओ.
यह क़ुरान की साफ़ साफ़ आवाज़ है जिसको बड़े मौलाना शौकत अली थानवी ने उर्दू में अनुवाद किया है, किसी हदीसे-ज़ईफ़ की नक़्ल नहीं. 
देखो कि कितना बुरा अल्लाह है, 
कितना नाइंसाफ़ है 
कि ऐसे खौ़फ़ो से डराता है कि अगर तुम 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कह कर मरते तो क्या से क्या हो सकता था, 
क्या तुम आतिशी क़नातों में घिरी दोज़ख में जलना पसंद करोगे ?
और तेल की तलछट की तरह पानी पीना ? 
जो मुँहों को भून डाले. 
बस बहुत हो गया, 
इस अक़ीदे को सर से झटक कर ज़मीन पर रख्खे कूड़ेदान में डाल दो.
याद रख्खो अल्लाह अगर है तो तुम्हारे बाप कि तरह शफ़ीक़ होगा, 
क़ुरआन में बके हुए मुहम्मदी अल्लाह की मानिंद नहीं. 
इस ज़िन्दगी को बेख़ौफ़ होकर जीना सीखो.

''बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे काम किए तो हम ऐसों का उज्र ज़ाया न करेंगे ऐसे लोगों के लिए हमेशा रहने के बाग़ हैं, इनके नीचे नहरें बहती होंगी और इनको वहाँ सोने के कँगन पहनाए जाएँगे और सब्ज़ रंग के कपड़े बारीक और दबीज़ रेशम पहनेंगे और वहाँ मसेहरियों पर टेक लगाए होंगे क्या ही अच्छा सिला है और क्या ही अच्छी जगह है. और आप उन में से दो लोगों का हाल बयान कीजिए 
(बे सर ओ पर की कहानी - - -आप पढ़ना पसंद न करेगे और मुझे लिखने में कराहियत होती है. जिसका इख़्तेसार है कि अल्लाह के न मानने वाले की कमाई जल कर साफ़ मैदान हो गया और उसे मानने वाला सुर्ख सुर्ख़रू रहा.")
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (३० -४४)

ऐ लोगो! 
ख़ुदा न ख़ास्ता अगर मुहम्मदी ईमान को लेकर ही उठे तो तुम्हारे ऊपर बड़ी ख़राबी होगी. सब्ज़ रंग के बारीक और दबीज़ रेशम के कपड़े पहने पहने तमाम उम्रे-मतनाही लिए बैठे रहोगे कि कोई काम काज न होगा, कोई ज़मीन न होगी 
जिसको उपजाऊ बनाने के लिए अपनी ज़िन्दगी वक़्फ़ करो, 
कोई चैलेंज न होगा, न कोई आगे की मंजिल, 
नफ़्स की कोई माँग न होगी, सब कुछ बे माँगे मिलता रहेगा. 
अंगूर और खजूर खाने की तलब भर हुई कि 
उसकी शाखें तुम्हारे होटों के सामने होंगी. 
सोने का कंगन होगा ? उसकी क़ीमत तो इसी दुन्या में है, 
जिसे तुम खो रहे हो, 
वहाँ सोने के मकान होंगे जिसमें सोने का कमोड होगा, 
फिर सोना लादना हिमाक़त ही लगेगा. 
आख़िर ऐसी बे मक़सद ज़िन्दगी का अंजाम क्या होगा? 
फिर याद आएगी यही अपनी यह दुन्या जिसको तुम गँवा रहे हो, 
मोहम्मदी झांसों में आकर.

''अल्लाह ज़मीन से पहाड़ों को हटा कर ज़मीन पर रोज़े-महशर सजाता है, ईमान का बदला देता है और फिर ईमान न लाने वाले मातम करते हैं," 
ये मुख़्तसर है इन आयतों का. 
ये नौटंकी क़ुरआन में बार बार देखने को मिलेगी"
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (४५-४९)

''मैंने उनको न आसमान और ज़मीन को पैदा करने के वक़्त बुलाया, और न ख़ुद उनके पैदा होने के वक़्त और मैं ऐसा न था कि गुमराह करने वालों को अपना दोस्त बनाता. और उस दिन हक़ तअल्ला फ़रमाएगा जिन को तुम हमारा शरीक समझते थे उनको पुकारो, वह उनको पुकारेंगे सो वह उनको जवाब ही न देंगे और हम उनके दरमियान में एक आड़ कर देंगे और मुजरिम लोग दोज़ख को देखेंगे कि वह उस में गिरने वाले हैं और इससे कोई बचने की राह न पाएगा."
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (५१ ५३)

मतलब ये कि अल्लाह ने तुमको बड़ी आसानी से अकेले ही जन दिया, 
उसको किसी दाई, आया, नर्स या डाक्टर की ज़रूरत नहीं थी.
मुसलमानों! 
क्यूँ अपनी रुसवाई ज़माने भर में करवाने पर आमादः हो ? 
सारा ज़माना इन आयात को पढ़ रहा है और तुम पर थूक रहा है. 
क्या सदियों से इस्लामी बेड़ियों में जकड़े जकड़े तुम को इन बेड़ियों से प्यार हो गया है? 
चलो ठीक है ! 
मगर क्या ये जेहालत की बेड़ियाँ अपने बच्चों के पैरों में भी पहनाने का इरादा है? 
दुन्या के करोरो इंसानों को जगाने का वक़्त, 
इक्कीसवीं सदी तुम को आगाह कर रही है कि 
''तुम्हारी दास्ताँ रह जाएगी बस दस्तानों में.''

"और हम ने इस क़ुरआन में लोगों की हिदायत के वास्ते हर क़िस्म के उम्दा मज़ामीन तरह तरह से बयान फ़रमाए हैं और आदमी झगड़े में सब से बढ़ कर है.''
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (५४)

ऐ दुश्मने-इंसानियत मुहम्मदी अल्लाह ! 
तूने शर, बोग्ज़, नफ़रत, जेहालत, बे ईमानी और हिमाक़त ही बका है, 
इस क़ुरआन में. 
अपनी ख़ूबियाँ बखानने वाले! 
क्यूँ न आदमी को शरीफ़ तबअ मख़्लूक़ बनाया,? 
अपने पैग़म्बर को पहले तालीम दी होती कि बातें करना सीखे, 
फिर सच बोलना सीखे, 
उसके बाद इंसानों की ज़िन्दगी की क़ीमत आँके 
कि जिसने लाखों सदियों से तेरी आपदाओं से बच बचा कर मानव जति को यहाँ तक ले आई है. 
वह तो इसे काफ़िर, मुशरिक, मुनकिर, मुल्हिद, यहाँ तक कि ईसाइयों और मूसाइयों को जानवरों की तरह मार देने की तअलीम दे रहा है. 
 ऐ मुसलमानों !
कब तक ऐसे अल्लाह और उसके रसूल के आगे सजदा करते रहोगे?? ?   



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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