Wednesday 13 June 2018

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ (क़िस्त 5)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**************

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५
(क़िस्त 5)


''यह लोग आप से रूह के बारे में पूछते हैं. आप फ़रमा दीजिए कि रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है और तुम को बहुत थोड़ा उम्र दिया है.''

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८५)



कहते हो कि यह कलामे-इलाही है. 
अल्लाह ने अरबी माहौल, अरबी ज़ुबान और अरब सभ्यता में इसको नाज़िल किया, 
तो क्या उसे अरबी तमाज़त भी नहीं आती थी ? 
वह कभी उम्मी मुहम्मद को आप जनाब करके बात करता है, 
कभी तुम कहता है तो कहीं पर तू कह कर मुख़ातिब करता है? 
क्या अल्लाह भी मुहम्मद की तरह ही उम्मी था ? ?
इन्सान बहुत थोड़े वक़्त के दुन्या में आया है, जग जाहिर है, 
अल्लाह इसकी इत्तेला हम को देता है??? 
क्या इसके कहने से हम मान जाएँगे कि रूह कोई बला होती है? 
जब कि अभी तक यह सिर्फ़ अफ़वाहों में गूँज रही है, 
अल्लाह बतलाता तो यूं बतलाता ''हाथ कंगन को आरसी क्या?''
रूहानियत के धंधे ने हमारे समाज को अँधा बनाए रक्खा है. 
ये बात क्यूं आलिमुल ग़ैब  की पकड़ में नहीं आती?



''और अगर हम चाहें तो जिस क़द्र वह्यि (ईशवानी) आप पर भेजी है,सब सलब (ज़ब्त) कर लें, फिर इसके लिए हमारे मुक़ाबिले में कोई हिमायती न मिले. मगर आप के रब की रहमत है, बेशक आप पर उसका बड़ा फ़ज़ल है.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८६)



देखें की अल्लाह किस तरह सियासत की बातें करता है. 
वह मुहम्मद को ब्लेक मेल कर रहा है, 
या फिर मुहम्मद इंसानों को ब्लेक मेल कर रहे हैं? 

दोस्तो ! अपने अक़्ल  पर पड़े अक़ीदत के भूत को उतार कर क़ुरआन की बातों को परखो. कोई गुनाह या अज़ाब तुम नाज़िल नहीं होगा. 
दर असल ये क़ुरआन ही क़ौम को अज़ाब की तरह पीछे किए हुए है.



"आप फ़रमा दीजिए कि अगर इंसान और जिन्नात जमा हो जाएँ कि ऐसा क़ुरआन बना लावें, तब भी ऐसा न ला सकेंगे. अगर एक दूसरे के मददगार भी बन जाएँ.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८७-८८)



क्या इंसानों की तरह जिन्नात भी कोई प्राणी होता है ? 
इस बात को आज तक इस वैज्ञानिक युग में क़ुरआन ही मुसलामानों से मनवाए हुए है. 
इस चैलंज को मुहम्मद क़ुरआन में बार बार दोहराते हैं. 
मुहम्मद शायर थे (मगर मुशायर) (ज़बरदस्ती के बने हुए शायर) 
ये शायरों की ग़लत फ़हमी होती है कि उन्हों ने जो कहा लाजवाब है. 
यही शायराना फ़ितरत मुहम्मद बार बार इस जुमले को कहलाती है. 

उस वक़्त तथा कथित काफ़िर जवाबन मुहम्मद को ईश वाणी, 
उनकी तरह ही नहीं बल्कि क़वायद को सुधार के मुहम्मद को मुँह पर मारते थे कि अपनी भाषा को संवारते हुए ऐसी आयते अपने अल्लाह से मंगाया करो, मगर मुहम्मद तो बस 
''जो कह दिया सो कह दिया'' अल्लाह की भेजी हुई बात है. 
आज भी थोडा दीवानगी का आलम ला कर क़ुरआन जैसी बात कोई भी बड़बड़ा सकता है.



''और हमने लोगों के लिए इस क़ुरआन में हर क़िस्म का उम्दा मज़मून तरह तरह से बयान किया है फिर भी अक्सर लोग बे इंकार किए न रहे.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८९)



क़ुरआन में कोई उम्दा बात जो उस की अपनी हो, ढूंढने से नहीं पाओगे. 
बस क़ुरआन में क़ुरआन की तारीफ़ ही तारीफ़ बखानी गई है, 
किस बात की तारीफ़ है? 
नहीं मालूम जो मुल्ला बतला दें वही होगा, 
इस धोके में मुसलमान अपनी ज़िद में अडिग है. 
पसे-पर्दा नहीं जानता कि तलाश करे फिर सामीक्षा करे. 



''और ये लोग कहते हैं कि हम आप पर हरगिज़ ईमान न लाएँगे जब तक कि आप हमारे लिए ज़मीन से कोई चश्मा न जारी करदें या ख़ास आप के लिए खजूर या अंगूर का बाग़ न हो, फिर इस बाग़ में बीच बीच में जगह जगह बहुत सी नहरें न जारी कर दें, या आप जैसा कहा करते हैं - - - आप आसमान के टुकड़े न हम पर गिरा दें या आप अल्लाह और फ़रिश्तों को सामने न कर दें. या आप के पास सोने का बना हुवा घर न हो या आप आसमान पर मेरे सामने न चढ़ जाएँ. और हम तो आप के चढ़ने का भी यक़ीन नहीं करेंगे, जब तक आप हमारे सामने एक नविश्ता (लिखा हुआ क़ुरआन) न लावें जिसको हम पढ़ भी लें. आप फ़रमा दीजिए कि सुबहान अल्लाह! बजुज़ इसके कि एक आदमी हूँ, पैगम्बर हूँ और क्या हूँ ? और जब उन लोगों के पास हिदायत पहुँच चुकी, उस वक़्त उनको ईमान लाने से बजुज़ इसके और कोई बात रुकावट न बनी कि उन्हों ने कहा अल्लाह तअला ने बशर को रसूल बना कर भेजा है. आप फ़रमा दीजिए कि अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते होते कि उसनें चलते बसते तो अलबत्ता हम उन पर आसमान से फ़रिश्ते को रसूल बना कर भजते''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (९०-९५)



तहरीर पर ग़ौर करिए, 
यह बातें अल्लाह से कहलवा रहे है मुहम्मद ? 
इनका रोना अल्लाह रो रहा है? 
या खुद मुहम्मद रो रहे है कुरआन में.
लोगों को मुहम्मद की बातों का कोई असर नहीं था, 
मुहम्मद जब मक्का में फेरी लगा लगा कर लोगों को पकड़ पकड़ कर क़ुरआनी आयतों का मन गढ़ंत झूट प्रचारित करते तब लोग उनसे इस तरह का परिहास करते. मज़ाक़न कोई कहता है 
''आप आसमान पर मेरे सामने न चढ़ जाएँ. और हम तो आप के चढ़ने का भी यक़ीन नहीं करेंगे जब तक आप हमारे सामने एक नविश्ता (लिखा हुआ) न लावें जिसको हम पढ़ भी लें.'' 
इस लिए कि आसमान की सैर कल्पनाओं में कर आए थे जिसको क़ुरआन में आगे क़िससए-मेराज बयान करेंगे.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment