Friday 1 June 2018

सूरह नह्ल १६ Q- 6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त 6 )

देखिए कि मुहम्मदी हिमाक़तें क्या क्या गुल खिलाती हैं . . .

''और वह लोग ख़ुदा के नेमत को पहचानते हैं, फिर इसके मुनकिर होते हैं, और ज़्यादा तर इनमें न सिपास हैं.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (८३)

सूरह ८४-९० में अल्लाह क़यामती पंचायत क़ायम करता है जिसमें वह ख़ुद और उसके नबी गवाह होते हैं.
काफ़िर का मुद्दई बन कर मुक़दमा दायर करना, 
अल्लाह बेढब की सज़ा बढ़ा देना, 
ऐसा बार बार मुहम्मद अपने क़ुरआनी बकवास में दोहराते हैं.
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (८४-९०)



''और तुम लोग उस औरत के मुशाबह मत बनो जिसने अपना सूत काते, पीछे बोटी बोटी करके नोच डाला.  . . . और अल्लाह तअला को अगर मंज़ूर होता तो वह सब को एक तरह का ही बना देते लेकिन जिस को चाहते हैं, बे राह कर देते हैं और जिसको चाहते हैं राह पर डाल देते हैं और तुम से तुम्हारे आमाल की बाज़पुर्स ज़रूर होगी.''

सूरह नह्ल पर१४ आयत (९१-९३)



''तो जब आप क़ुरआन पढ़ना चाहें तो शैतान मरदूद से अल्लाह की पनाह मांग लिया करें यक़ीनन इसका क़ाबू उन लोगों पर नहीं चलता जो ईमान रखते हैं और अपने रब पर भरोसा रखते हैं.

सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (९८-९९)



यानी शैतान इंसानी दिमाग़ पर इतना ग़ालिब रहता है कि अल्लाह भी इस का क़ायल है. इसके ग़लबा से महफूज़ रहने के लिए अल्लाह की पनाह मांगी जाय. 

ज़ालिम है ही ऐसी चीज़, 
लाख दे पनाह अल्लाह, चंद लम्हों में अंगड़ाई लेती हुई महबूबा की शक़्ल में शैतान आँखों के सामने आया कि अल्लाह फुर्र. 
बेकारों के लिए ज़रीआ मुआश मफ्रूज़ा ख़ुदा है, उसका कलाम क़ुरआन. 
साइंस दानों के लिए उक़्दा कुशाई मंजिले मक़सूद है क़ुरआन नहीं, 
मुहम्मद की रची हुई क़ुरआन, नक़ायस इंसानी ही नहीं, बल्कि नक़ायस ए मख़लूक़ात का दर्जा रखती है. 



''और जब हम किसी आयत को बजाए दूसरी आयत के बदलते हैं और हालांकि अल्लाह तअला जो हुक्म देता है, इसको वही खूब जनता है तो यह लोग कहते हैं कि आप इफ़तरा करने वाले हैं बल्कि इन्हीं में से कुछ लोग जाहिल हैं. आप फ़रमा दीजिए कि इसको रूहुल क़ुद्स, आप के रब की तरफ़ से हिकमत के मुवाफ़िक़ लाए हैं ताकि ईमान वालों को साबित क़दम रखें और मुसलमानों के लिए ख़ुश ख़बरी हो जाए. और हम को मालूम है कि लोग कहते हैं इनको तो आदमी सिखला जाता है. जिस शख़्स  की तरफ़ यह निसबत करते हैं उसकी ज़ुबान तो अजमी है और यह क़ुरआन साफ़ अरबी में है.''

सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (१०१-१०३) 



इंसानों पर बहुत ही गराँ वक़्त था क्या हिंदी क्या अरबी. मुहम्मद के गिर्द निहायत लाख़ैरे क़िस्म के लोग रहा करते थे, उस वक़्त पेट भर जाने का मसअला ही बहुत बड़ा था, उनमे अरबी अजमी, ईसाई ,यहूदी और काफ़िर व मुशरिक सभी नज़र्यात की टोली मुहम्मद के समर्थकों में थी. 
ऐसे में वह लोग मुहम्मद की मदद करते क़ुरआनी आयतों में, कभी कोई ग़लत आयत मुहम्मद के मुँह से बहैसियत क़ुरआनी आयत निकल जाती और उसके जानकर शोर मचाते तो उसको वापस लेना पड़ता 

तब अवाम तअना देती कि क्या अल्लाह भी ग़लती करता है? 
तब मुहम्मद बड़ी बे शर्मी के साथ उनका मुक़ाबिला करते. 
द्ल्लाम नाम के एक ईसाई की उस वक़्त बड़ी चर्चा थी कि वह मुहम्मद का क़ुरआनी रहबर है. यह आयत उसी के संदर्भ में है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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