Wednesday 6 June 2018

सूरह बनी इस्राईल -१७ (क़िस्त 2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह बनी इस्राईल -१७
(क़िस्त 2)

अल्लाह मूसा से कहता है और सुनते है मुहम्मद - - - 


''फ़िरऔन  पर तुम्हारा ग़लबा कर देंगे और मॉल और बेटों से हम तुम्हारी मदद करेंगे और हम तुम्हारी जमाअत को बढ़ा देंगे. अगर अच्छे काम करते रहोगे तो अपने ही नफ़े के लिए अच्छे काम करोगे. और अगर बुरे काम करोगे तो भी अपने लिए, फिर जब पिछली की मीयाद आएगी ताकि तुम्हारे मुँह बिगाड़ दें और जिस तरह वह पहली बार मस्जिद में घुसे थे, यह लोग भी इस में घुस पड़ें और जिन जिन पर इनका ज़ोर चले सब को बर्बाद कर डालें. अजब नहीं कि तुम्हारा रब तुम पर रहेम फ़रमा दे और अगर वही करोगे तो हम फिर वही करेंगे और हमने जहन्नम को काफिरों का जेल ख़ाना बना रखा है. बिला शुबहा ये क़ुरआन ऐसे को हिदायत देता है जो बिलकुल सीधा है. और ईमान वालों को जो कि नेक काम करते हैं, ये ख़ुश ख़बरी देता है कि उसको बहुत बड़ा सवाब है. और जो आख़रत पर ईमान नहीं लाते उनके लिए दर्दनाक सजा तैयार है,

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६-१०)



ये है क़ुरानी अल्लाह की ज़ेहन्यत और इस्लाम की रूह. 

ऐसी तसवीर लेकर आप ज़माने के सामने जाकर इस्लाम की तबलीग़ करने लायक़ तो रह नहीं गए क्यूँकि इसमें कुछ दम नहीं और इसे सब जान चुके है और इससे बुरे इस्लामी एहकाम को भी, लिहाज़ा अब 
तबलीग़ियो ! मुसलमानों के मुहल्लों में ही जा कर उनके नव उम्रों को भड़काते फिरते हो,  तुम इशारों में उनको समझाते हो,
अल्लाह तुम को जैशे मुहम्मद की तरफ़ बुला रहा है. 
इस तरह एक नया ख़तरा मुसलमानों पर आन खड़ा हुवा है. 
ज़रुरत है निडर होकर मैदान में आने की, 
इस एलान के साथ कि आप हसन बसरी की तरह सिर्फ़ मोमिन हैं. 
आप जागिए और लोगों को जगाइए.



''और हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाया, सो रात की निशानी को तो हमने धुंधला बनाया और दिन की निशानी को हमने रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो 

और ताकि तुम बरसों का शुमार और हिसाब मालूम कर लो और हम ने हर चीज़ को खूब तफ़सील के साथ बयान कर दिया है. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१२)



मुहम्मद रात को कोई ऐसी शय मानते हैं जो ढक्कन नुमा होती हो और रौशनी को ढक कर उस पर ग़ालिब हो जाती हो और दिन को एक रौशन शय जो आकर सूरज को रौशन कर देता हो,

जैसे बल्ब में फ़िलामेंट. 
हदीसें बतलाती हैं कि वह सूरज को रात में मसरुफ़े सफ़र जानिबे अल्लाह बराय सजदा रेज़ी होना जानते हैं. 
मुहम्मद कहते हैं ''हमने दिन को रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो'' 
बन्दे का रब उसकी तलाश की हुई कौन सी रोज़ी खाता है? 
मुतरजजिम लिखता है गोया बन्दों की रोज़ी. 
अब रात पायली काम होने लगे, 
बरसों का शुमार और हिसाब रात और दिन पर कभी मुनहसर नहीं रहे. मुसलमान सच मुच इतना ही पीछे है जितना इसका क़ुरान. 
ओलिमा इन्हें अपनी बेहूदा तफ़सीरों में मुब्तिला किए हुए है.




''हर इंसान को आमल नामे के मुताबिक सज़ा मिलेगी, साथ में अल्लाह ये भी सहेज देता है कि और हम सज़ा नहीं देते जब तक किसी रसूल को नहीं भेज लेते.''

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३)



गोया अल्लाह पाबन्द है रसूलों का कि वह आकर मुझे जन्नतियों कि लिस्ट दे. यहाँ पर भी मुहम्मद भोले भालों को चूतिया बनाते हैं कि फ़िलहाल तुम्हारा रसूल तो मैं ही हूँ. 

असली दीन की अदालत में जिस दिन आलमी मुजरिमों पर मुक़दमा चलेगा, मुहम्मद सब से बड़े जहन्नमी साबित होंगे.



अल्लाह कहता है
''जो शख़्स  दुन्या की नीयत रखेगा हम उस शख़्स को दुन्या में जितना चाहेंगे, जिसके वास्ते चाहेंगे, फ़िलहाल दे देंगे फिर उसके लिए हम जहन्नम तजवीज़ करेंगे और वह उस में बदहाल रांदे दरगाह होकर दाख़िल होगाऔर जो शख़्स आख़िरत की नीयत रखेगा और इसके लिए जैसी साईं करना चाहिए वैसी ही साईं करेगा बशर्ते ये कि वह शख़्स मोमिन भी हो, सो ऐसे लोगों की ये साईं मकबूल होगी.
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३-२२)




यहाँ पर पहली बात तो ये साबित होती है कि मुहम्मदी अल्लाह परले दर्जे का शिकारी है कि शिकार के लिए दाना डालता है, आदमी दाना चुगने लगे और चैन कि साँस ले कि वह इसको दबोच लेता है? 

दूसरी बात ये कि जैसे मैं पहले बयान कर चुका हूँ कि आप लाख नेक इन्सान हों, अल्लाह आपकी नेकियों का कोई वास्ता नहीं अगर आप मुस्लिम ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहने वाले नहीं,




''अल्लाह अपने बालिग़ बच्चों को समझाता है 
कि माँ बाप के फ़रायज़ याद रखना, 
उनसे हुस्ने सुलूक से पेश आना, 
क़राबत दारों के हुक़ूक़ भी याद दिलाता है, 
फ़ुज़ूल ख़र्ची को मना करता है मगर बुख़ालत को भी बुरा भला कहता है, मना करता है कि औलादों को तंग दस्ती के बाईस मार डालना भारी गुनाह है, 
ज़िना कारी को बे हयाई बतलाता है. 
साथ साथ अपनी अज़मत को ख़ुद अपने मुँह से बघारना नहीं भूलता.''

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (२३-३२)



जिस तरह बच्चों को इख़लाक़यात सिखलाया और पढ़ाया जाता है उसी तरह मुहम्मद क़ुरआन के ज़रीए मुसलामानों को सबक़ देते हैं लगता है उस वक़्त अरब में सब जंगली और वहशी रहे होंगे, 

ख़ुद दूसरों को नसीहत देने वाले मुहम्मद अपने चचाओं पर कैसा ज़ुल्म ढाया कोई तवारीख़ से पूछे. 
ज़िना कारी और हराम कारी को बे हयाई गिनवाने वाले मुहम्मद पर दस्यों इलज़ाम हैं कि इसके कितने बड़े मुजरिम वह ख़ुद थे.
हदीस है - - - 
मुहम्मद फ़रमाते हैं 
''जो शख़्स  मेरे वास्ते दो चीज़ों का ज़ामिन हो जाय ,
पहली दोनों जबड़ों के दरमियान जो ज़ुबान है, 
दूसरी दोनों पैरों के बीच जो शर्मगाह (लिंग) है, 
तो मैं उस शख़्स के वास्ते जन्नत का ज़ामिनदार हो जाऊँगा. (बुखारी २००७)



अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब जोकि इनके मुँह बोले बेटे ज़ैद बिन हारसा की बीवी थी, के साथ मुँह काला करते हुए उसके शौहर ज़ैद बिन हारसा ने हज़रात को पकड़ा तो तूफ़ान खड़ा हुवा, 
जिंदगी भर उसको बिन निकाही बीवी बना के रक्खा 
और चले हैं बातें करने. 
आगे क़ुरआन में ही इस वाकेआ पूरा हाल आने वाला है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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