Monday 11 June 2018

सूरह बनी इस्राईल -१७ (क़िस्त 4)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह बनी इस्राईल -१७
(क़िस्त 4)


''और जब आप कुरआन पढ़ते हैं तो हम आप के और जो ईमान नहीं रखते उनके दरमियान एक पर्दा हायल कर देते हैं और हम उनके दिलों पर हिजाब डाल देते हैं, इस लिए कि वह इसको समझें और उनके कानों में डाट दे देते हैं. जब आप कुरआन में अपने रब का ज़िक्र करते हैं तो लोग नफ़रत करते हुए पुश्त फेरकर चल देते हैं,''

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (46)

धन्य हैं वह लोग जो ऐसी क़ुरआन को नाचीज़ समझते थे और अफ़सोस होता है आज के लोग उसी इबारत की इबादत बना कर दिलो-दिमाग में बसाते हैं. 
जंगों की मार, माले-ग़नीमत की लूट और बेज़मीर ओलिमा की क़ल्मों की नापाक बरकत है जो मुसलमानों पर आज अज़ाब की शक़्ल में तारी है. 
देखिए कि मुहम्मद का खुदाए बरतर कितने कमतर काम करता है, 
कहीं इंसानों के कानों में डाट ठोकता है तो कभी उनके आँखों के सामने पर्दा हायल करता है. 
क्या आपको अपने समझदार बुजुर्गों की तरह ही इन बातों से नफ़रत नहीं होती?



''और कुफ़्फ़ार की कोई ऐसी बस्ती नहीं कि जिसको हम क़यामत से पहले हलाक ना करदें.या इसको अज़ाब सख़्त ना दे दें, ये किताब में लिखी हुई है. और हमको ख़ास मुअज्ज़ात के भेजने से मना किया गया है कि पहले लोग इस का मज़ाक उड़ा चुके हैं''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (५७-५९)



मिट तो सभी जाएँगे, क्या काफ़िर क्या मुस्लिम मगर ऐ नआक़बत अंदेश (अपरिणामदर्शी) मुहम्मदी अल्लाह ! 
तेरी इस क़ुरआन की वजेह से मुसलमानों का ज़वाल बहुत पहले होगा और काफ़िरों का वजूद बाद में ? 
तेरा मज़ाक पहले भी उड़ा करता था और आज तो पूरी दुन्या में उड़ रहा है. 
तूने मुसलमानों को जेहाद की तालीम देकर वह जुर्म किया है कि आने वाले दिनों में कोई तेरा नाम लेवा नहीं रह जाएगा. 
काश कि इन मुसलमानों की आँखें इस से खुल जाएँ कि वह तर्क इस्लाम करके सिर्फ़ मोमिन हो जाएँ, जिसकी ज़रुरत और लोगों को भी है. 
मोमिन यानी फ़ितरी ईमान वाले.

जिन आयातों को मैं अपनी तहरीर में नहीं लेता हूँ वह ऐसी होती हैं कि मुहम्मद उसमे अपनी बात को दोहराते रहते हैं. 
अक्सर अल्लाह अपनी तारीफें और हिकमत दोहराता रहता है. 
शैतान और आदम की कहानी रूप बदल बदल कर बार बार आती ही रहती है. 



अल्लाह कहता है - - -
''अल्लाह अपने इल्म से तमाम लोगों को घेरे हुए है. हम ने जो तमाशा आप को दिखलाया था''

गोया अल्लाह को और कोई काम नहीं है इंसानों की घेरा बंदी के सिवा. 

यह तमाशे मुहम्मद के गढ़े हुए क़िस्सा ए मेराज की तरफ़ है.



''जिस पेड़ की कुरआन में मज़म्मत की गई है. हम तो इनको डराते रहते हैं मगर इनकी सरकशी बढ़ती ही जाती है.''



अल्लाह अजब है अपने बनाए हुए दरख़्त की मज़म्मत करता है. 
उसने अपने बन्दों को क्यूं निडर बनाया ?
वह समझदार है कि बात की माक़ूलियत को समझता है , 
उसको डरना नहीं पड़ रहा है. 
इन्सान उसका बन्दा होते हुए भी उसके साथ सर कशी करता है?



''तुम्हारा रब ऐसा है जो तुम्हारे लिए कश्ती को दरया में ले जाता है कि तुम उस में अपनी ख़ूराक तलाश करो, फिर जब तुमको दरया में कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो सिवाए उसके कोई दूसरा याद नहीं आता कि तुम जिनकी इबादत करते थे. 
फिर जब खुश्की में आते हो तो उसको भूल जाते हो, डरते नहीं कि वह तुम को ज़मीन में धँसा दे या फिर तेज़ हवा कंकर पत्थर बरसाने लगे. डरते नहीं कि फिर तुम को दरया में ले जाए और कोई तूफ़ान आए और तुम्हारे कुफ़्र के चलते तुम को डुबो दे.''

यह है क़ुरआन की बे सनद नहीं बल्कि बे सबब बातें जिनको एक झक्की बका करता था.
जिसे कि क़लम की ताक़त से यह आयाते-कुरानी बन गई हैं. 

वाकई क़ाबिले नफ़रत हैं क़ुरआन की बातें अह्ल्र मक्का ठीक ही कहते थे.
एक बार फिर क़यामत का ख़ाक़ा पेश करते हुए अल्लाह आमाल नामा को उठाता है.



अल्लाह अपने रसूल से कहता है - - -
''अगर हमने आप को साबित क़दम न बनाया होता तो आप उनकी तरफ़ कुछ कुछ झुकने के क़रीब जा पहुचते तो हम आप को हालते-हयात में या बाद मौत दोहरा मज़ा चखाते फिर आपको हमारे मुकाबले में कोई मददगार भी मिलता - - -''



मुहम्मद का ज़ेहनी मकर उलटी चाल भी चलता है. 
लोगों को डराते डराते ख़ुद भी बड़ी नादानी से अल्लाह का शिकार होने से बच गए.



''रात ढलने के बाद रात के अँधेरे तक नमाज़ अदा कीजिए, सुब्ह की नमाज़ भी कि फरिश्तों के आने वक़्त होता है और रात के हिस्से में भी तहज्जुद अदा कीजिए, उम्मीद है आपका रब आप को मुक़ाम ऐ महमूद 
(आलिमों का गढ़ा हुवा ''तफसीरी चूँ चूँ का मुरब्बा'' के तहत कोई मुक़ाम) 
में जगह देगा"
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६०-८२)



अपने नबी को देखें कि नमाज़ों की भरमार से सराबोर हो रहे है ताकि लोग उनकी पैरवी करें. मुसलमान इसी इबादत में रह गए मस्जिदों के घेरे में, ईसाई, यहूदी भी इन्ही बंधनों में थे कि बंधन तोड़ कर ख़लाओं में तैर रहे हैं, मुसलमान उनकी टेकनिक के मोहताज बन कर रह गए हैं. 
मुहम्मद ने इनके सरों में उस दुन्या का तसव्वुर जो भर दिया है.



मेरे भोले भले मुसलमान भाइयो ! 
जागो ! 
इक्कीसवीं सदी की सुब्ह हुए 18 साल होने को हैं, यह ज़ालिम टोपी और दाढ़ी वाले मुल्ला तुम को इस्लामी अफ़ीम खिला कर सुलाए हुए हैं. 
सब कुछ यहीं मौजूद ज़िन्दगी में हैं, इसके बाद कुछ भी नहीं है, 
तुम्हारे बाद रह जाएगी तुम्हारी विरासत, 
कि अपने नस्लों को क्या दिया है. 
कम से कम उनको इल्म जदीद तो दो ही, कि तुमको याद करें. 
इल्म जदीद पा जाने के बाद तो यह सब कुछ हासिल कर लेंगे. 

मगर हाँ! इन्हें इन ज़हरीले ओलिमा से बचाओ. 







जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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