Wednesday 20 June 2018

सूरह कहफ़ 18 (क़िस्त-2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
 हदीसें सिर्फ़ "बुख़ारी'' 
और  ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-2) 

अल्लाह सूरह कहफ़ में कहफ़ (गुफा ) से हट कर ईसा की बातें करने लगता है - - - 

''और ताकि लोगों को डराइए जो (यूं) कहते हैं (नौज़ बिल्लाह) कि अल्लाह तअला औलाद रखता है, न कोई इसकी कोई दलील उनके पास है, न उनके बाप दादों के पास थी. बड़ी भारी बात है जो उनके मुँह से निकलती है. वह लोग बिलकुल झूट बकते हैं,''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(५)

मुहम्मद सिर्फ़ काफ़िर, मुशरिक से ही नहीं सारे ज़माने से बैर पालते थे. 
यहाँ इशारा ईसाइयों की तरफ़ है जो ईसा को ख़ुदा का बेटा मानते हैं. 
तुम ख़ुदा के नबी हो सकते हो,वह तुमको आप जनाब करके चोचलाता है, 
कोई दूसरा ख़ुदा का बेटा क्यूँ नहीं हो सकता ?
क्यूँ ? अल्लाह के लिए क्या मुश्किल है ''कुन फियाकून '' का फ़ॉर्मूला उसके पास है, एक अदद बेटा बना लेना उसके लिए कौन सी मुश्किल है?

 ईसा कट्टर पंथी यहूदी धर्म का एक बाग़ी यहूदी था. 
एक मामूली बढ़ई यूसुफ़ क़ी मंगेतर मरियम थी, 
जिनका शादी से पहले ही अपने मंगेतर के साथ यौन संबंध हो गया था और नतीजतन वह गर्भ वती हो गई, 
बच्चा हुआ जो यहूदी धर्म में अमान्य था, 
जैसे आज मुसलमानों में ऐसे बच्चे नाजायज़ क़रार पाते हैं. 
ईसा को बचपन से ही नाजायज़ होने का तअना सुनना पड़ा. 
जिसकी वजह से वह अपने माँ बाप से चिढ़ने लगा था. 
वह चौदह साल का था, माँ बाप उसे अपने साथ योरोसलम तीर्थ पर ले गए, 
जहाँ वह गुम हो गया, बहुत ढूँढने के बाद वह योरोसलम के एक मंदिर में मरियम को वह मिला. मरियम ने झुंझला कर ईसा घसीटते हुए कहा,
''तुम यहाँ हो और तुम्हारा बाप तुम्हारे लिए परेशान है.'' 
ईसा का जवाब था मेरा कोई बाप और माँ नहीं, 
मैं ख़ुदा का बेटा हूँ और यहीं रहूँगा. 
ईसा अड़ गया, यूसुफ़ और मरियम को ख़ाली हाथ वापस लौटना पड़ा. 
ईसा के इसी एलान ने उसे ख़ुदा का बेटा बना दिया. 
वह कबीर क़ी तरह यहूदी धर्म क़ी उलटवासी कहने लगा, 
थे न दोनों समाज के नाजायज़ संतान.
वह धर्म द्रोही हुवा और सबील पर यहूदी शाशकों ने उसे लटका दिया. 
इस तरह वह  ''येसु ख़ुदा बाप का बेटा'' बन गया. 
और उसके नाम से ही एक धर्म बन गया. 
ईसाई उसे कुंवारी मारिया का बेटा कहते हैं, 
जिसमें झूट और अंध विश्वास न हो तो वह धर्म कैसा? ''

"और आप जो उन पर इतना ग़म खाते (हैं) सो शायद आप उनके पीछे अगर यह लोग इस मज़मून (क़ुरआनी) पर ईमान न लाए तो ग़म से अपनी जान दे देंगे (यानी इतना गम न करें कि क़रीब-ब-हलाकत कर दे).''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(६)

देखिए कि मुहम्मद ख़ुद को अल्लाह से कैसा दुलरा रहे हैं. 
लगता है अल्लाह और उनका चचा भतीजे का रिश्ता हो, 
क्यूँ कि बेटे तो हो नहीं सकते. 
मुल्ला कहता है क़ुरआन को ज़ारो क़तार हो कर पढ़ा जाए, 
हैं न मुहम्मद का भारी नाटक कि अगर उनकी उम्मत उनके लिए राज़ी न होती तो वह जान दे देते.

''हमने ज़मीन पर की चीज़ों को इस (ज़मीन) के लिए बाइसे-रौनक़ बनाया ताकि हम इन लोगों की आज़माइश करें कि इन में ज़्यादः अच्छा अमल कौन करता है और हम इस (ज़मीन) पर की तमाम चीज़ों को एक साफ़ मैदान (यानी फ़ना) कर देंगे।''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(७-८)

मुहम्मद क़ी नियत में हर जगह नफ़ी का पहलू नज़र आता है, 
एक मुसलमान बग़ैर खौ़फ़ के कोई ख़ुशी मना ही नहीं सकता. 
क़ुदरत की रौनक़ भी देखने से पहले अपनी बर्बादी का ख़याल रक्खो. 
इस कशमकश के अक़ीदे से लोग बेज़ार भी नहीं होते.

''क्या आप ये ख़याल करते हैं कि ग़ार वाले और पहाड़ वाले हमारी अजाएबात (क़ुदरत) में से कुछ तअज्जुब की चीज़ थे (वह वक़्त काबिले-ज़िक्र है) जब कि इन नव जवानो ने इस ग़ार में जाकर पनाह ली और कहा के ऐ हमारे परवर दिगार हमको अपने पास से रहमत (का सामान) अता फ़रमाइए और हमारे लिए (इस) काम में दुरुस्ती का सामान मुहय्या कर दीजिए.''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(९-१०)

ग़ार वालों क़ी कहानी में ग़ार वालों और पहाड़ियों को अल्लाह ख़ुद अजाएबात और तअज्जुब की चीज़ बतला कर शुरू करता है, 
अल्लाह ख़ुद अपनी रचना पर तअज्जुब करता है.
 मुहम्मद तबलीग़ में लगे यहाँ तक कि पौराणिक कथा में भी ख़ुद  को क़ायम करने लगे. 
सिकंदर युगीन जवानों से अल्लाह की रहमत क़ी दरख़्वास्त करवाते हैं, 
गोया वह भी मुसलमान थे. 
(इस क़िस्त में ब्रेकट में रखे अल्फ़ाज़ तर्जुमा निगार के हैं, अल्लाह के नहीं.ऐसे ही पूरे क़ुरआन में तर्जुमान अल्लाह का उस्ताद बना हुवा है.)




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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