Monday 12 October 2020

शैतानुर अज़ीम


शैतानुर अज़ीम          

अल्लाह ने मिटटी और गारे का एक पुतला बनाया और अपने सबसे 
बड़े फ़रिश्ते को हुक्म दिया कि इसको सजदा कर. 
फ़रिश्ते ने लाहौल (धिक्कार) पढ़ी और कहा मैं अग्नि निर्मित 
और इस माटी के माधो को सजदा करूँ ?
अल्लाह को ग़ुस्सा आया और फ़रिश्ते को इब्लीस मरदूद क़रार दे दिया 
और जन्नत से बाहर का रास्ता दिखलाया. 
जाते जाते इब्लीस शैतान ने अल्लाह को गच्चा देते हुए 
उसके कुछ अख़्तियार ले ही गया.
अपनी हिकमत ए अमली के बदौलत वह बन्दों का ख़ुदाए सानी बन गया 
अर्थात अल्लाहु असग़र, गोया मिनी शैतान. 
शैतान अल्लाह की तरह हर जगह विराजमान है, 
क़ुरआन की हर सूरह में शैतानुर रजीम का नाम पहले आता है, 
बिस्म अल्लाह का नाम बाद में (एक को छोड़ कर) 
इस्लाम में शैतान पेश पेश है और अल्लाह पस्त पस्त. 
इंसान के हर अमल में शैतान का दख़्ल है. 
करम अच्छे हों या बुरे, 
नतीजा ख़राब है तो शैतान के नाम 
अगर अच्छे रहे तो अअल्लाह के नाम .
(इस बे ईमानी को हज़रत ए इंसान ख़ुद तस्लीम करते हैं.) 
अल्लाह की तरह शैतान किसी की जान नहीं लेता, 
यह उसकी ख़ैर है .
शैतान ने ही इंसान को इल्म जदीद, मन्तिक़ और साइंस की ऐसी घुट्टी पिलाई कि वह सय्यारों पर पहुँच गया है. 
और अल्लाह के बन्दे याहू ! याहू !! रटने में लगे हैं. 
शैतान ही इंसान को नई तलाश में गामज़न रखता है, 
अक़ीदे जिसे वुस्वुसा, ग़ुनाह और ग़ुमराही कहते हैं।
अल्लाह की बख़्शी हुई ऊबड़ खाबड़ ज़मीन को शैतानी बरकतों ने 
पैरिस, लन्दन, न्यूयार्क, टोटियो, दुबई और बॉम्बे का रूप दे दिया है। 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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