Tuesday 27 October 2020

ऐ खुदा!


ऐ खुदा!

ऐ ख़ुदा! तू ख़ुद से पैदा हुवा, ऐसा बुजुर्गों का कहना है.
मगर तू है भी या नहीं ? ये मेरा ज़ेहनी तजस्सुस और तलाश है.
दिल कहता है तू है ज़रूर कुछ न कुछ. ब्रहमांड को भेदने वाला!
हमारी ज़मीन की ही तरह लाखों असंख्य ज़मीनों को पैदा करके उनका संचालन करने वाला!
क्या तू इस ज़मीन पर बसने वाले मानव जाति की ख़बर भी रखता है ?
तेरे पास दिल, दिमाग, हाथ पाँव, कान नाक, सींग और एहसासात हैं क्या ?
या इन तमाम बातों से तू लातअल्लुक़ है ?
तेरे नाम के मंदिर, मस्जिद,गिरजे और तीरथ बना लिए गए हैं,
धर्मों का माया जाल फैला हुवा है, सब दावा करते हैं कि वह तुझसे मुस्तनद हैं,
इंसानी फ़ितरत ने अपने स्वार्थ के लिए मानव को जातियों में बाँट रख्खा है,
तेरी धरती से निकलने वाले धन दौलत को अपनी आर्थिक तिकड़में भिड़ा कर,
 ज़हीन लोग अपने क़ब्जे में किए हुवे हैं.
दूसरी तरफ़ मानव दाने दाने का मोहताज हो रहा है.
कहते हैं सब भाग्य लिखा हुआ है जिसको भगवान ने लिखा है.
क्या तू ऐसा ही कोई ख़ुदा है ?
सबसे ज़्यादः भारत भूमि इन हाथ कंडों का शिकार है.
इन पाखंडियों द्वरा गढ़े गए तेरे अस्तित्व को मैं नकारता हूँ.
तेरी तरह ही हम और इस धरती के सभी जीव भी अगर ख़ुद से पैदा हुए हें,
तो सब ख़ुदा हुए ?
नहीं, तो! तेरे कुछ जिज्ञासू कहते हैं,
''कण कण में भगवन ''
मैं ने जो महसूस किया है, वह ये कि तू बड़ा कारीगर है।
तूने कायनात को एक सिस्टम दे दिया है,
एक फार्मूला सच्चाई का २+२=४ का सदाक़त और सत्य,
कर्म और कर्म फल,
इसी धुरी पर संसार को नचा दिया है कि धरती अपने मदार पर घूम रही है।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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