Sunday 4 October 2020

ईमानी कमजोरियाँ

ईमानी कमजोरियाँ 

मैं वयस्कता से पहले ईमान का मतलब लेन देन के तकाजों को ही समझता थ. (और आज भी सिर्फ़ इसी को समझता हूँ) 
मगर इस्लामी समझ आने के बाद मालूम हुवा कि इस्लामी ईमान का 
अस्ल तो कुछ और ही है, वह है 'कलमा ए शहादत', 
यानीअल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखना, 
क़समे-आम और क़समे-पुख़्ता. 
इन बारीकियों को मौलाना जब समझ जाते है कि अल्लाह 
झूट को  कितना दर ग़ुज़र करता है तो वह लेन देन की बेईमानी भरपूर करते हैं. 
मेरे एक दोस्त ने बतलाया कि उनके क़स्बे के एक मौलाना, 
जो मस्जिद के पेश इमाम हैं, मदरसे के मुतवल्ली, क़ुरआन के आलिम, 
बड़े मोलवी, साथ साथ ग्राम प्रधान रहे.
हज़रात ने क़स्बे की एक रंडी हशमत जान का खेत पटवारी को पटा कर जीम का नुकता बदलवा कर नीचे से ऊपर करा दिया जो जान की जगह ख़ान हो गया. हज़रात के वालिद मरहूम का नाम हशमत ख़ान था. 
विरासत हशमत ख़ान के बेटे, बड़े मोलवी साहब उमर ख़ान की हो गई, 
हशमत रंडी की सिर्फ़ एक बेटी छम्मी थी (अभी जिंदा है), उसने उसको मोलवी के क़दमों पर लाकर डाल और कहा- - -
"मोलवी साहब इस से मैं रंडी पेशा न कराऊँगी, रहम कीजिए, 
अल्लाह का खौ़फ़  खाइए - - - 
मगर मोलवी का दिल न पसीजा उसका ईमान कमज़ोर नहीं था,
 बहुत मज़बूत था. 
उसके दो बेटे हैं, मेरे दोस्त बतलाते हैं दोनों डाक्टर है, 
और पोता कस्बे का चेयर मैन है. 
रंडी की और मदरसे की हडपी हुई जायदादें सब उनके काम आ रही हैं. 
यह है ईमान की बरकत. 
मुसलमानो के इस ईमानी झांसे में हो सकता है ग़ैर मुस्लिम इन से 
ज़्यादः धोका खाते हों कि ईमान लफ्ज़ अहद को समझते हों.
अहद की बात आई तो तसुव्वुर क़ायम हुवा
 "प्राण जाए पर वचन न जाए" 
***

 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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