Saturday 17 October 2020

आदमी को मयस्सर नहीं इंसाँ होना


आदमी को मयस्सर नहीं इंसाँ होना

कोई ताक़त तो है जो संसार को संचालित करती है, 
वह भी इस बारीकी के साथ कि यह धरती अपनी धुरी पर वर्षों से क्षण भर के अंतर बिना चक्कर लगा रही है. 
इस अनबूझी ताक़त का नाम कल्पित रख लिया जाता है, 
चाहे वह अकेला हो या कोई समूह में. 
यहाँ तक तो बात ठीक ही लगती है कि इस पहेली का कोई हल मिला, 
अब इस पर माथा पच्ची ख़त्म हो. 
यह कल्पित प्राणी जब पूज्य बन जाता है, माबूद बन जाता है,
अल्लाह बन जाता है, 
या भगवानो का रूप, तो झगड़ा वहीं से शुरू हो जाता है. 
किस महा पुरुष ने बतलाया कि वह ताक़त अल्लाह है? 
मुहम्मद ने, 
जो कल्पित अल्लाह के क़ानून क़ायदे तय करते हैं. 
ख़ुद बयक वक़्त नौ पत्नियाँ और 26 लौंडियों के अकेले उप भोगता होते हैं और हर जगह, हर वक़्त हर औरत को उपभोग करने को तैयार रहते हैं. (दुखतर जान की मिसाल मौजूद) 
जिस क़ौम का पयंबर ऐसा हो उस क़ौम  की हालत कैसी होगी ? 
दुन्या में फैले हुए मुसलमान देखे जा सकते हैं. 
इस बात पर हिन्दुओं के ठहाके उनकी खिसयाहट में बदल जाएँगे, 
जब उनको याद दिलाया जाएगा कि उनके पूज्य देवता और भगवान् 60-60 हज़ार पत्नियों और उप पत्नियों के मालिक हुवा करते थे. 
भारत उपमहाद्वीप की विडंबना यह है कि यहाँ मानव, मानव नहीं, 
हिन्दू और मुसलमान पैदा होता है. 
मानव जाति को हिन्दू और मुसलमान तो बनाया जा सकता है 
मगर हिन्दू और मुसलमान को मानव बनाना बड़ा मुश्किल है.
बसकि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,
आदमी को मयस्सर नहीं इंसाँ होना.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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