Friday 9 October 2020

दीन के मअनी हैं दियानत दारी.


दीन के मअनी हैं दियानत दारी.      

इस्लाम को दीन कहा जाता है मगर इसमें कोई दियानत दारी नहीं है. 
अज़ानों में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल कहने वाले 
बद दयानती का ही मुज़ाहिरा करते हैं . 
वह अपने साथ तमाम मुसलमानों को ग़ुमराह करते हैं, 
उन्हों ने अल्लाह को नहीं देखा कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बना रहा हो, न अपनी आँखों से देखा और न अपने कानों से सुना, 
फिर अज़ानों में इस बे बुन्याद आक़ेए की गवाही दियानत दारी कहाँ रही ? 
क़ुरआन  की हर आयत दियानत दारी की पामाली करती है जिसको अल्लाह का कलाम कह गया है. 
नई साइंसी तहक़ीक़ व तमीज़ आज हर मौज़ूअ को निज़ाम ए क़ुदरत के मुताबिक़ सही या ग़लत साबित कर देती है. 
साइंसी तहक़ीक़ के सामने धर्म और मज़हब मज़ाक मालूम पड़ते हैं. 
बद दयानती को पूजना और उस पर ईमान रखना ही 
इंसानियत के ख़िलाफ़ एक साज़िश है या फ़िर नादानी है. 
हम लाशऊरी तौर पर बद दयानती को अपनाए हुए हैं. 
जब तक बद दयानती को हम तर्क नहीं करते, 
इंसानियत की आला क़द्रें क़ायम नहीं हो सकतीं 
और तब तक यह दुन्या जन्नत नहीं बन सकती. 
आइए हम अपनी आने आली नस्लों के लिए इस दुन्या को जन्नत नुमा बनाएँ. 
इस धरती पर फ़ैली हुई धर्म व मज़हब की गन्दगी को ख़त्म करें, 
अल्लाह है तो अच्छी बात है और नहीं है तो कोई बात नहीं.
 अल्लाह अगर है तो दयानत दारी और ईमान ए सालेह को ही पसंद करेगा, 
न कि इन साज़िशी जालों को जो मुल्ला और पंडित फैलाए हुए हैं. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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