Sunday 18 October 2020

नक़्श ए फ़रियादी


नक़्श ए फ़रियादी 

 

नक़्श फ़रियादी है किसकी शोखिए तहरीर का ,
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर ए तहरीर का .

ग़ालिब के दीवान का यह पहला शेर है, 
जिसमे उन्होंने अपने मिज़ाज के एतबार से हम्द (ईश गान) का इशारा किया है. 
अजीब ओ ग़रीब और अनबूझे ख़ुदा की तरफ़ सिर्फ़ नज़रें उठाई हैं, 
न उसकी तारीफ़ की है, न हम्द, 
बल्कि एक हैरत का इज़हार है. 
यही अब तक के ख़ुदाओं की हक़ीक़त है. 
उसको लोग अपने हिसाब से शक्ल देकर इंसान को सिर्फ़ ग़ुमराह कर रहे हैं .
ग़ालिब कहता है कि वह कौन सी ताक़त है कि 
मख़लूक का हर नक़्श (आकृति) फ़रियादी है 
और अपनी तशकील ओ तामीर की तहरीरी, तकमीली, तजस्सुस लिए हुए है 
कि वह क्या है ? 
क्यों है ? 
कौन है उसका ख़ालिक़ और मालिक ?
गोया ग़ालिब अब तक के ख़ुदाओं को इंकार करते हुए 
उनके लिए एक सवालिया निशान ही छोड़ता है. 
वह क़ुदरत को पूजने का ढोंग नहीं करता बल्कि 
उसको अपने महबूब की तरह शोख़ और शरीर बतलाता है, 
जो बराबरी का दर्जा रखता है. 
अगर क़ुदरत को इसी हद तक तस्लीम करके जिया जाए तो 
इंसान का वर्तमान सार्थक बन सकता है और इंसान का मुस्तक़्बिल भी. 
ग़ालिब शेर के दूसरे मिसरे में मअनी पिरोता है कि 
हर वजूद का लिबास काग़ज़ी यानी आरज़ी है. 
यही वजूद का सच है बाक़ी तमाम बातें ख़ारजी हैं .
ब्रिज मोहन चकबस्त ग़ालिब के फ़लसफ़े को और ख़ुलासा करते हुए कहते हैं - - -
ज़िन्दगी क्या है अनासिर में ज़हूर ए तरतीब,
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परीशाँ होना.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment